वर्ष -1, पहला सप्ताह, बुधवार

पहला पाठ : इब्रानियो 2:14-18

14) परिवार के सभी सदस्यों का रक्तमास एक ही होता है, इसलिए वह भी हमारी ही तरह मनुष्य बन गये, जिससे वह अपनी मृत्यु द्वारा मृत्यु पर अधिकार रखने वाले शैतान को परास्त करें

15) और दासता में जीवन बिताने वाले मनुष्यों को मृत्यु के भय से मुक्त कर दें।

16) वह स्वर्गदूतों की नहीं, बल्कि इब्राहीम के वंशजों की सुध लेते हैं।

17) इसलिए यह आवश्यक था कि वह सभी बातों में अपने भाइयों के सदृश बन जायें, जिससे वह ईश्वर -सम्बन्धी बातों में मनुष्यों के दयालु और ईमानदार प्रधानयाजक के रूप में उनके पापों का प्रायश्चित कर सकें।

18) उनकी परीक्षा ली गयी है और उन्होंने स्वयं दुःख भोगा है, इसलिए वह परीक्षा में दुःख भोगने वालों की सहायता कर सकते हैं।


सुसमाचार : मारकुस 1:29-39

29) वे सभागृह से निकल कर याकूब और योहन के साथ सीधे सिमोन और अन्द्रेयस के घर गये।

30) सिमोन की सास बुख़ार में पड़ी हुई थी। लोगों ने तुरन्त उसके विषय में उन्हें बताया।

31) ईसा उसके पास आये और उन्होंने हाथ पकड़ कर उसे उठाया। उसका बुख़ार जाता रहा और वह उन लोगों के सेवा-सत्कार में लग गयी।

32) सन्ध्या समय, सूरज डूबने के बाद, लोग सभी रोगियों और अपदूतग्रस्तों को उनके पास ले आये।

33) सारा नगर द्वार पर एकत्र हो गया।

34) ईसा ने नाना प्रकार की बीमारियों से पीडि़त बहुत-से रोगियों को चंगा किया और बहुत-से अपदूतों को निकाला। वे अपदूतों को बोलने से रोकते थे, क्योंकि वे जानते थे कि वह कौन हैं।

35) दूसरे दिन ईसा बहुत सबेरे उठ कर घर से निकले और किसी एकान्त स्थान जा कर प्रार्थना करते रहे।

36) सिमोन और उसके साथी उनकी खोज में निकले

37) और उन्हें पाते ही यह बोले, "सब लोग आप को खोज रहे हैं"।

38) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, "हम आसपास के कस्बों में चलें। मुझे वहाँ भी उपदेश देना है- इसीलिए तो आया हूँ।"

39) और वे उनके सभागृहों में उपदेश देते और अपदूतों को निकलाते हुए सारी गलीलिया में घूमते रहते थे।

📚 मनन-चिंतन

हमारे रोग और बीमारियाँ हमारी उस छवि को कुरूपित करती हैं जिसमें ईश्वर ने हमें बनाया है। प्रभु येसु ईश्वर की उसी छवि को फिर से स्थापित करने के आए। आज हम मनन-चिंतन करते हैं कि किस तरह प्रभु येसु अनेक लोगों को उनकी बीमारीयों और रोगों से चंगा करते हैं और उन्हें शैतान के चंगुल से मुक्त करते हैं। और हम देखते हैं कि बड़े सवेरे ही वह उठकर एकांत में जाते हैं और वहाँ प्रार्थना में समय बिताते हैं। एक तरफ़ तो हम देखते हैं कि प्रभु येसु लोगों की भीड़ के बीच व्यस्त रहते हैं, वहीं दूसरी ओर हम देखते हैं कि वही प्रभु एकांत में प्रार्थना भी करने जाते हैं। एक तरफ़ व्यस्त जीवन दूसरी तरफ़ प्रार्थनामय जीवन।

हमारा काम और प्रार्थना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। आज की दुनिया बहुत व्यस्त हो गई है, लोगों को अगर आज की भाग-दौड़ में बने रहना है तो एक कदम आगे रहना पड़ेगा। हम जीवन की भाग-दौड़ में बहुत अधिक व्यस्त हो जाते हैं। हमारी ज़रूरतें और इच्छाएँ खतम नहीं होती हैं। जब एक इच्छा पूरी होती है, दूसरी जन्म ले लेती है। आज प्रभु येसु हमें यह संदेश देते हैं कि हम जीवन में चाहे कितने भी व्यस्त ना हो जाएँ, तो भी हमें प्रार्थना द्वारा ईश्वर के साथ अपने सम्बन्ध को मज़बूत करने के लिए समय निकालने की ज़रूरत है। प्रार्थना और ईश्वर की आशीष के बिना हमारा परिश्रम व्यर्थ है। आमेन।

-फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Our sicknesses and infirmities distort the image and likeness in which we are created by God. Jesus came to restore the same image. Today we reflect about how Jesus heals many people of many sicknesses and infirmities and people flock to him with their sicknesses and he heals them and casts out Demons. Early in the morning he goes to a deserted place and there he prays. On the one hand we see Jesus busy doing his work amidst the crowds and on the other hand we see same Jesus going to a private place to pray.

Work and prayer go hand-in-hand. Today world is very competitive, people have to be one step ahead if they have to keep themselves up in the race. We are very busy in making a life for ourselves. Our needs and desires don't seem to end. When one desire is fulfilled, another comes up. Today Jesus gives us the message, that even if we are dead busy in our day-to-day life we still need to take out time to renew our relationship with God through prayers. Without prayer and God’s blessings our hard work and labour will be meaningless and fruitless. Amen.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!