वर्ष -1, दूसरा सप्ताह, मंगलवार

पहला पाठ : इब्रानियो 6:10-20

10) ईश्वर अन्याय नहीं करता। आप लोगों ने उसके प्रेम से प्रेरित हो कर जो कष्ट उठाया, सन्तों की सेवा की और अब भी कर रहे हैं, ईश्वर वह सब नहीं भुला सकता।

11) मैं चाहता हूँ कि आपकी आशा के परिपूर्ण हो जाने तक आप लोगों में हर एक वही तत्परता दिखलाता रहे।

12) आप लोग ढि़लाई न करें, वरन् उन लोगों का अनुसरण करें, जो अपने विश्वास और धैर्य के कारण प्रतिज्ञाओं के भागीदार होते हैं।

13) ईश्वर ने जब इब्राहीम से प्रतिज्ञा की थी, तो उसने अपने नाम की शपथ, खायी; क्योंकि उस से बड़ा कोई नहीं था, जिसका नाम ले कर वह शपथ खाये।

14) उसने कहा-मैं तुम पर आशिष बरसाता रहूँगा। और तुम्हारे वंशजों को असंख्य बना दूँगा।

15) इब्राहीम ने बहुत समय तक धैर्य रखने के बाद प्रतिज्ञा का फल प्राप्त किया।

16) लोग अपने से बड़े का नाम ले कर शपथ खाते हैं। उन में शपथ द्वारा कथन की पुष्टि होती है और सारा विवाद समाप्त हो जाता है।

17) ईश्वर प्रतिज्ञा के उत्तराधिकारियों को सुस्पष्ट रूप से अपने संकल्प की अपरिवर्तनीयता दिखलाना चाहता था, इसलिए उसने शपथ खा कर प्रतिज्ञा की।

18) वह इन दो अपरिवर्तनीय कार्यों, अर्थात् प्रतिज्ञा और शपथ में, झूठा प्रमाणित नहीं हो सकता। इस से हमें, जिन्होंने ईश्वर की शरण ली है, यह प्रबल प्रेरणा मिलती है कि हमें जो आशा दिलायी गयी है, हम उसे धारण किये रहें।

19) वह आशा हमारी आत्मा के लिए एक सुस्थिर एवं सुदृढ़ लंगर के सदृश है, जो उस मन्दिरगर्भ में पहुँचता है,

20) जहाँ ईसा हमारे अग्रदूत के रूप में प्रवेश कर चुके हैं; क्योंकि वह मेलखि़सेदेक की तरह सदा के लिए प्रधानयाजक बन गये हैं।


सुसमाचार : मारकुस 2:23-28

23) ईसा किसी विश्राम के दिन गेहूँ के खे़तों से हो कर जा रहे थे। उनके शिष्य राह चलते बालें तोड़ने लगे।

24) फ़रीसियों ने ईसा से कहा, "देखिए, जो काम विश्राम के दिन मना है, ये क्यों वही कर रहे हैं?"

25) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, "क्या तुम लोगों ने कभी यह नहीं पढ़ा कि जब दाऊद और उनके साथी भूखे थे और खाने को उनके पास कुछ नहीं था, तो दाऊद ने क्या किया था?

26) उन्होंने महायाजक अबियाथार के समय ईश-मन्दिर में प्रवेश कर भेंट की रोटियाँ खायीं और अपने साथियों को भी खिलायीं। याजकों को छोड़ किसी और को उन्हें खाने की आज्ञा तो नहीं थी।"

27) ईसा ने उन से कहा, "विश्राम-दिवस मनुष्य के लिए बना है, न कि मनुष्य विश्राम-दिवस के लिए।

28) इसलिए मानव पुत्र विश्राम-दिवस का भी स्वामी है।"

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में प्रभु येसु यहूदियों के नियमों व परंपराओं के विरोधी प्रतीत होते हैं, जब वे कहते हैं, “विश्राम-दिवस मनुष्य के लिए बना है, न कि मनुष्य विश्राम-दिवस के लिए।” प्रभु येसु के इस तरह कहने का कुछ न कुछ कारण है। फरिसियों और शास्त्रियों के लिए विश्राम दिवस नियम मात्र के लिए था, और इस नियम का हर हाल में पालन किया जाना था, फिर इसके लिए चाहे किसी को कोई कष्ट हो या किसी की जान ख़तरे में क्यों ना पड़ जाए। कभी-कभी वे अपने स्वार्थ के लिए इन नियमों में बदलाव भी कर लेते थे। इसलिए प्रभु येसु पुराने व्यवस्थान से राजा दाऊद और उसके साथियों का उदाहरण देते हैं।

ईश्वर ने विश्राम-दिवस को आराम करने के लिए ठहराया थे, इसलिए फरीसी लोगों को कुछ भी करने के लिए मना करते थे, कोई परिश्रम नहीं, कोई काम नहीं केवल आराम करना है क्योंकि ईश्वर ने भी इस दिन आराम किया था। लेकिन वे भूल जाते हैं कि यह दिवस ईश्वर से पाए हुए वरदानों व कृपाओं के लिए उसे धन्यवाद देने और उसकी आराधना करने के लिए है। हमारा जीवन भी ईश्वर का दिया हुआ महान वरदान है। इस जीवन की रक्षा करके और अच्छी तरह देख-भाल करके भी हम ईश्वर की आराधना करते हैं। जीवन प्रदान करना और उसको सुरक्षित रखना हमारा परम कर्तव्य व सबसे बढ़कर है, इसलिए प्रभु येसु कहते हैं, “विश्राम-दिवस मनुष्य के लिए बना है, न कि मनुष्य विश्राम-दिवस के लिए।”

-फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION


In today's gospel Jesus seems to sound a bit rebellious against Jewish traditions and laws when he says, “The sabbath was made for man not man for sabbath.” There is a reason and background behind this statement of Jesus. The Pharisees considered sabbath as a matter of law, and it had to be followed, even at the cost of human life and suffering. These laws and regulations were sometimes changed as per the requirements. That's why Jesus gives example from the old Testament about King David and his men.

The Lord created sabbath as the day of rest and that's why Pharisees forbade people from doing anything on sabbath, no work, no labour, only rest because God rested on this day. But they forget that this day is actually meant for praising and worshipping God for what he has given us and done for us. One of the greatest gifts that God has given us is life. We also give him praise and worship by preserving and protecting this life. Saving life is a sacred duty, above everything, therefore Jesus says, ‘Sabbath was made for man, not man for Sabbath.’

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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