वर्ष -1, दूसरा सप्ताह, बुधवार

पहला पाठ : इब्रानियो 7:1-3,15,17

1) जब इब्राहीम राजाओं को हरा कर लौट रहे थे, तो सालेम के राजा और सर्वोच्च ईश्वर के पुरोहित वही मेलखि़सेदेक उन से मिलने आये और उन्होंने इब्राहीम को आशीर्वाद दिया।

2) इब्राहीम ने उन्हें सब चीज़ों का दशमांश दिया। मेलखि़सेदेक का अर्थ है -धार्मिकता का राजा। वह सालेम के राजा भी है, जिसका अर्थ है- शान्ति के राजा।

3) उनके न तो पिता है, न माता और न कोई वंशावली। उनके जीवन का न तो आरम्भ है और न अन्त। वह ईश्वर के पुत्र के सदृश हैं और वह सदा पुरोहित बने रहते हैं।

15) यह सब और भी स्पष्ट हो जाता है, यदि हम इस पर विचार करें कि एक अन्य पुरोहित प्रकट हुआ, जो मेलखि़सेदेक के सदृश है,

17) उसके विषय में धर्मग्रन्थ यह साक्ष्य देता है - तुम मेलखि़सेदेक की तरह सदा पुरोहित बने रहोगे।


सुसमाचार : मारकुस 3:1-6

1) ईसा फिर सभागृह गये। वहाँ एक मनुष्य था, जिसका हाथ सूख गया था।

2) वे इस बात की ताक में थे कि ईसा कहीं विश्राम के दिन उसे चंगा करें, और वे उन पर दोष लगायें।

3) ईसा ने सूखे हाथ वाले से कहा, "बीच में खड़े हो जाओ"।

4) तब ईसा ने उन से पूछा, "विश्राम के दिन भलाई करना उचित है या बुराई, जान बचाना या मार डालना?" वे मौन रहे।

5) उनके हृदय की कठोरता देख कर ईसा को दुःख हुआ और वह उन पर क्रोधभरी दृष्टि दौड़ा कर उस मनुष्य से बोले, "अपना हाथ बढ़ाओ"। उसने ऐसा किया और उसका हाथ अच्छा हो गया।

6) इस पर फ़रीसी बाहर निकल कर तुरन्त हेरोदियों के साथ ईसा के विरुद्ध परामर्श करने लगे कि हम किस तरह उनका सर्वनाश करें।

📚 मनन-चिंतन

कलीसिया का संचालन एक क़ानून के अनुसार होता है जिसका नाम है कैनन लॉ। इस क़ानून में सारे नियमों का विवरण देने के बाद अंतिम अनुच्छेद में संकेत किया गया है कि ‘आत्माओं की मुक्ति, जो कलीसिया का सर्वोच्च क़ानून है, सभी को सदा याद रखना है।’ जिसका अर्थ है कि किसी भी नियम-क़ानून का वास्तविक उद्देश्य जीवन की रक्षा और मानव मूल्यों को बढ़ावा देना है। मानव जीवन एवं मानव मूल्य किसी भी नियम-क़ानून से बढ़कर हैं। लेकिन कुछ लोग नियमों एवं क़ानूनों के वास्तविक उद्देश्यों को भूल जाते हैं और उन्हें निर्दोषों को फँसाने या बेवजह परेशान करने का ज़रिया बना लेते हैं। क़ानून के रखवाले ही कभी-कभी क़ानून को दूसरों के लीए बोझ बना देते और उन्हें डराने-धमकाने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

आज फरीसियों के साथ-साथ हमें भी प्रभु येसु याद दिलाते हैं कि नियम मनुष्यों की भलाई के लिये बने हैं। और सबसे बड़ा नियम जिसका सभी को पालन करना है, वह है अपने ईश्वर और पड़ौसी को प्यार करने का नियम। यदि हम इस नियम का पालन करते हैं तो सबका भला होगा और हम ईश्वर के प्रति वफ़ादार बनेंगे। यदि कोई नियम लोगों का भला नहीं करता, ऐसा नियम व्यर्थ है। यदि कोई नियम जीवन की रक्षा की बजाय उसका विनाश करता है तो ऐसे नियम से छुटकारा पा लेना ही बेहतर है। प्रभु येसु ने सभागृह में उस सूखे हाथ वाले को विश्राम-दिवस के दिन भी चंगा किया क्योंकि उनके लिए मानव जीवन की गरिमा को पुनः बनाने एवं नवजीवन प्रदान करना उनके लिए सर्वोच्च था, वह स्वयं नया नियम स्थापित करते हैं।

-फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION


The church is governed by a set of laws known as the code of Canon Law. After giving all the laws about various aspects of the life of the church, the last canon hints that ‘salvation of souls which must always be the supreme law in the church, is to be kept before one's eyes.’ Meaning any rules or regulations and laws that we make, their ultimate end should be to preserve the sanctity of life, human life and values are above every rule and laws. But some people forget the real purpose of laws and rules and use them to trap and condemn people. The keepers of the law sometimes make it a burden and terror weapon for the ordinary people.

Today through Pharisees, Jesus reminds us that the laws are for the good of the people. The only supreme law that all should follow is the law of loving God and neighbour. When we do so we will do good to all and obey God in everything. If the law does not focus on doing good, then such law is useless. If a law instead of saving life, destroys it, then better to get rid of such a law. Jesus healed the person with withered hand in the synagogue because for him restoring human life and well-being was above every law, he himself becomes the new law.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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