वर्ष -1, तीसरा सप्ताह, गुरुवार

पहला पाठ : इब्रानियो 10:19-25

19) भाइयो! ईसा का रक्त हमें निर्भय हो कर परमपावन मन्दिर-गर्भ में प्रवेश करने का आश्वासन देता है।

20) उन्होंने हमारे लिए एक नवीन तथा जीवन्त मार्ग खोल दिया, जो उनके शरीर-रूपी परदे से हो कर जाता है।

21) अब हमें एक महान् पुरोहित प्राप्त हैं, जो ईश्वर के घराने पर नियुक्त किये गये हैं।

22) इसलिए हम अपने हृदय को पाप के दोष से मुक्त कर और अपने शरीर को स्वच्छ जल से धो कर निष्कपट हृदय से तथा परिपूर्ण विश्वास के साथ ईश्वर के पास चलें।

23) हम अपने भरोसे का साक्ष्य देने में अटल एवं दृढ़ बने रहें, क्योंकि जिसने हमें वचन दिया है, वह सत्यप्रतिज्ञ है।

24) हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम किस प्रकार भ्रातृप्रेम तथा परोपकार के लिए एक दूसरे को प्रोत्साहित कर सकते हैं,

25) हम भाइयों की सभा से अलग न रहें, जैसा कि कुछ लोग किया करते हैं, बल्कि हम एक दूसरे को ढारस बंधायें। जब आप उस दिन को निकट आते देख रहे हैं, तो ऐसा करना और भी आवश्यक हो जाता है।


सुसमाचार : मारकुस 4:21-25

21) ईसा ने उन से कहा, "क्या लोग इसलिए दीपक जलाते हैं कि उसे पैमाने अथवा पलंग के नीचे रखें? क्या वे उसे दीवट पर नहीं रखते?

22) ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, जो प्रकट नहीं किया जायेगा और कुछ भी गुप्त नहीं है, जो प्रकाश में नहीं लाया जायेगा।

23) जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले!’

24) ईसा ने उन से कहा, "ध्यान से मेरी बात सुनो। जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जायेगा और सच पूछो तो तुम्हें उस से भी अधिक दिया जायेगा;

25) क्योंकि जिसके पास कुछ है, उसी को और दिया जायेगा और जिसके पास कुछ नहीं है, उस से वह भी ले लिया जायेगा, जो उसके पास है।"

📚 मनन-चिंतन

दीपक का उद्देश्य दूसरों को प्रकाश प्रदान करना है। और यदि एक दीपक के प्रकाश का उपयोगी होना है तो उसे ऐसे स्थान पर रखना ज़रूरी है जहाँ से वह लोगों को दिखाई दे और बहुत से लोग उसके प्रकाश से लाभान्वित हो पाएँ। यदि एक दीपक को या उसके प्रकाश को छुपाकर रखा जाए तो वह व्यर्थ हो जाता है। हम भी दीपक हैं जो प्रभु के प्रेम की ज्योति से प्रज्वलित हैं और हमारे भले कार्य हमारा प्रकाश हैं। प्रभु चाहते हैं कि हम ऐसी जगह पर रखे जाएँ जहाँ से दूसरे लोग हमारे भले कार्यों को देख पाएँ और प्रभु की उसी ज्योति से प्रज्वलित हों और ईश्वर की महिमा करें।

जब हम प्रभु में बपतिस्मा ग्रहण करते हैं तो हमें जलती हुई मोमबत्ती दी जाती है, जिसका अर्थ है कि हम अपने बपतिस्मा के बाद उस जलती हुई मोमबत्ती के समान बन जाते हैं। यह जलती हुई मोमबत्ती ख्रिस्त की ज्योति से प्रकाशित होती है, क्योंकि वही संसार की ज्योति है। लेकिन कभी-कभी हम अपनी इस ज्योति को दीवट पर ना रखकर पलंग के नीचे रख देते हैं, जिससे धीरे-धीरे इसकी लौ धीमी पड़ जाती है, और उसका प्रकाश धुँधला पड़ जाता है। यदि हमारे अन्दर ख्रिस्त की ज्योति और उसका प्रकाश नहीं चमकता है तो हम सच्चे ख्रिस्तीय कैसे कहला सकते हैं? अगर हम इसका उपयोग नहीं करेंगे तो वह समाप्त हो जाएगा, हमसे ले लिया जाएगा।ईश्वर हमें चमकती ज्योति और प्रज्वलित अग्नि से भर दे ताकि हम उसके प्रेम और कृपाओं को दुनिया को दिखा सकें। आमेन।

-फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION


The purpose of the lamp is to give light to others. And if a lamp has to give light to others, it should be placed in such a place from where it's light can be seen by many so that many may benefit from it. If you hide the lamp or its light, then it loses its meaning. We are the lamps, all of us who are enkindled by the fire of God's love and our good works are our light. We are called to place ourselves in such a place from where others can see our good works and be enkindled with the same fire, and give glory to God.

When we are baptised in the Lord, we are given a lighted candle, symbolising that we now become like the lighted candle after our baptism. This lighted candle receives its light from Christ himself, because he is the light of the world. But sometimes it happens that we hide this light of Christ under the bushel, and slowly it starts becoming dim and we lose the shine and light of it. If we have no shine and light within us then what is the meaning in being called baptised or Christian? If we don't use it, we will lose it. May God bless us with bright light and fire to show the world God’s love and graces. Amen.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!