वर्ष -1, चौथा सप्ताह, गुरुवार

पहला पाठ : इब्रानियों के नाम पत्र 12:18-19,21-24

18) आप लोग ऐसे पर्वत के निकट नहीं पहुँचे हैं, जिसे आप स्पर्श कर सकते हैं। यहाँ न तो सीनई बादल की धधकती अग्नि है और न काले बादल; न घोर अन्धकार, बवण्डर,

19) तुरही का निनाद और न बोलने वाले की ऐसी वाणी, जिसे सुन कर इस्राएली यह विनय करते थे कि वह फिर हम से कुछ न कहे;

21) वह दृश्य इतना भयानक था कि मूसा बोल उठे, "मैं भय से काँप रहा हूँ"।

22) आप लोग सियोन पर्वत, जीवन्त ईश्वर के नगर, स्वर्गिक येरूसालेम के पास पहुँचे, जहाँ लाखों स्वर्गदूत,

23) स्वर्ग के पहले नागरिकों का आनन्दमय समुदाय, सबों का न्यायकर्ता ईश्वर, धर्मियों की पूर्णता-प्राप्त आत्माएँ

24) और नवीन विधान के मध्यस्थ ईसा विराजमान हैं, जिनका छिड़काया हुआ रक्त हाबिल के रक्त से कहीं अधिक कल्याणकारी है।

सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 6:7-13

7) ईसा शिक्षा देते हुए गाँव-गाँव घूमते थे। वे बारहों को अपने पास बुला कर और उन्हें अपदूतों पर अधिकार दे कर, दो-दो करके, भेजने लगे।

8) ईसा ने आदेश दिया कि वे लाठी के सिवा रास्ते के लिए कुछ भी नहीं ले जायें- न रोटी, न झोली, न फेंटे में पैसा।

9) वे पैरों में चप्पल बाँधें और दो कुरते नहीं पहनें

10) उन्होंने उन से कहा, "जिस घर में ठहरने जाओ, नगर से विदा होने तक वहीं रहो!

11) यदि किसी स्थान पर लोग तुम्हारा स्वागत न करें और तुम्हारी बातें न सुनें, तो वहाँ से निकलने पर उन्हें चेतावनी देने के लिए अपने पैरों की धूल झाड़ दो।"

12) वे चले गये। उन्होंने लोगों को पश्चात्ताप का उपदेश दिया,

13) बहुत-से अपदूतों को निकाला और बहुत-से रोगियों पर तेल लगा कर उन्हें चंगा किया।

📚 मनन-चिंतन

प्रिय दोस्तों, हम ईश्वर और इस दुनिया के मूल्यों के बीच एक बड़ा अंतर अथवा विरोधाभास पाते हैं। संसार की निगाह में धन - दौलत होना किसी व्यक्ति की एक बड़ी ताकत माना जाता है। जबकि एक ईश्वर भक्त के लिए सांसारिक चीज़ों से विमुखता रखना बड़ा धन है। आज के सुसमाचार में येसु बारहों को मिशन के लिए खाली हाथ भेजते है। उन्हें भौतिक दौलत के बिना भेजा गया था लेकिन ईश्वर की आत्मा से वे भरे हुए थे । उनका मिशन भौतिक चीजों के मामले में खाली था, लेकिन वे आध्यात्मिक रूप से समृद्ध थे। उन्हें जो तोहफा मिला, वह था आत्मा के द्वारा बुराई को कुचलना और अच्छाई को लोगों बाँटना। यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि उनकी ताकत दुनिया और दुनिया की चीजों से नहीं बल्कि ईश्वर से आती है।

प्रत्येक बपतिस्मा प्राप्त ईसाई एक मिशनरी है जिसे आत्मा के दानों के साथ सुसमाचार की घोषणा करने के लिए भेजा गया है। हमें दुनिया को बदलने के लिए दुनिया में भलाई और ईश्वरीय ज्योति बहाल करने और खुद ज्योति बनने के लिए बुलाया गया है। आज हमारी मिशनरी गतिविधियों में, हमें अपने स्वयं के कार्यों के बजाय ईश्वर के प्रबंध में विश्वास करना सीखना होगा। आइए हम अपने मिशनरी बुलावे को नवीनीकृत करें और प्रभु में हमारी श्रद्धा और विश्वास को गहरा करें, तथा साहस और आनंद के साथ एक गवाही का जीवन के जीने लिए ईश्वर से कृपा माँगे।

-फादर प्रीतम वसूनिया (इन्दौर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION


Dear Friends, we find a big contrast between the values the Kingdom of God and this world. For the world material possession and wealth is the power, whereas for the Kingdom of God detachment from the worldly possessions is a great value. In the Gospel today Jesus sends the Twelve empty handed for mission. They were sent without material possession but filled with the Spirit of God. Their mission was scanty in terms of material things but they were rich spiritually. The gift they received was the power of the Spirit to crush the evil and to nourish good. Jesus told his disciples that their strength does not come from the world and the things of the world but from God.

Every Baptized Christian is a missionary sent out to proclaim the Good News with the same gift of the Spirit. We are called to restore the good and become leaven and light of the world to transform the world. In our missionary activities today, we need to learn to trust in God’s care rather than in our own recourses. Let us renew our missionary call and ask Jesus to deepen our faith and trust in the Lord and help us to live a life of witness with courage and joy.

-Fr. Preetam Vasuniya (Indore)


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Praise the Lord!