वर्ष -1, पाँचवाँ सप्ताह, गुरुवार

पहला पाठ : उत्पत्ति ग्रन्थ 2:18-25

18) प्रभु ने कहा, ''अकेला रहना मनुष्य के लिए अच्छा नहीं। इसलिए मैं उसके लिए एक उपयुक्त सहयोगी बनाऊँगा।''

19) तब प्रभु ने मिट्ठी से पृथ्वी पर के सभी पशुओं और आकाश के सभी पक्षियों को गढ़ा और यह देखने के लिए कि मनुष्य उन्हें क्या नाम देगा, वह उन्हें मनुष्य के पास ले चला; क्योंकि मनुष्य ने प्रत्येक को जो नाम दिया होगा, वही उसका नाम रहेगा।

20) मनुष्य ने सभी घरेलू पशुओं, आकाश के पक्षियों और सभी जंगली जीव-जन्तुओं का नाम रखा। किन्तु उसे अपने लिए उपयुक्त सहयोगी नहीं मिला।

21) तब प्रभु-ईश्वर ने मनुष्य को गहरी नींद में सुला दिया और जब वह सो गया, तो प्रभु ने उसकी एक पसली निकाल ली और उसकी जगह को मांस से भर दिया।

22) इसके बाद प्रभु ने मनुष्य से निकाली हुई पसली से एक स्त्री को गढ़ा और उसे मनुष्य के पास ले गया।

23) इस पर मनुष्य बोल उठा, ''यह तो मेरी हड्डियों की हड्डी है और मेरे मांस का मांस। इसका नाम 'नारी' होगा, क्योंकि यह तो नर से निकाली गयी है।

24) इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ेगा और अपनी पत्नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक शरीर हो जायेंगे।

25) वह मनुष्य और उसकी पत्नी, दोनों नंगे थे, फिर भी उन्हें एक दूसरे के सामने लज्जा का अनुभव नहीं होता था।

सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 7:24-30

24) ईसा वहाँ से विदा हो कर तीरूस और सिदोन प्रान्त गये। वहाँ वे किसी घर में ठहरे और वे चाहते थे कि किसी को इसका पता न चले, किन्तु वे अज्ञात नहीं रह सके।

25) एक स्त्री ने, जिसकी छोटी लड़की एक अशुद्ध आत्मा के वश में थी, तुरन्त ही इसकी चर्चा सुनी और वह उनके पास आ कर उनके चरणों पर गिर पड़ी।

26) वह स्त्री ग़ैर-यहूदी थी; वह तो जन्म से सूरुफि़नीकी थी। उसने ईसा से विनती की कि वे उसकी बेटी से अपदूत को निकाल दें।

27) ईसा ने उस से कहा, ’’पहले बच्चों को तृप्त हो जाने दो। बच्चों की रोटी ले कर पिल्लों के सामने डालना ठीक नहीं है।’’

28) उसने उत्तर दिया, ’’जी हाँ, प्रभु! फिर भी पिल्ले मेज़ के नीचे बच्चों की रोटी का चूर खाते ही हैं’’।

29) इस पर ईसा ने कहा, ’’जाओ। तुम्हारे ऐसा कहने के कारण अपदूत तुम्हारी बेटी से निकल गया है।’’

30) अपने घर लौट कर उसने देखा कि बच्ची खाट पर पड़ी हुई है और अपदूत उस से निकल चुका है।

📚 मनन-चिंतन

येसु के पास आने वाली महिला आज के सुसमाचार में सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक है। येसु एक गैर यहूदी इलाके में थे और उनकी मुलाकात एक सिरोफिनी नारी से हो जाती है । यीशु उसके साथ बातचीत करने के लिए अनिच्छा दिखाते हुए कहते हैं - "पहले बच्चों को तृप्त हो जाने दो। बच्चों की रोटी ले कर पिल्लों के सामने डालना ठीक नहीं है।" ऐसा लगता है कि पहले पहल येसु का मिशन सिर्फ यहूदियों के लिए था और बाद में गैर यहुदूयों के लिए। हालांकि, यह गैर यहूदी स्त्री फिर भी बड़ी चतुराई से कहती है- "जी हाँ, प्रभु! फिर भी पिल्ले मेज़ के नीचे बच्चों की रोटी का चूर खाते ही हैं"। दूसरे शब्दों में, वह ये कह रही थी कि ऐसा कोई कारण नहीं कि बच्चे और घर के कुत्ते, यहूदी और गैर यहूदी एक ही समय में भोजन नहीं कर सकते।

उसकी अंतर्दृष्टि और दृढ़ता के जवाब में, यीशु ने उसे तुरंत अनुग्रहित किया उसकी बेटी चंगी हो गयी। पुराने विधान में ईश्वर और याकूब के बीच कुश्ती का वर्णन है। और आज के सुसमाचार में उस गैर यहूदी महिला की कम से कम मौखिक रूप से यीशु के साथ कुश्ती समझा जा सकता है। कभी-कभी हम अपने आप को प्रभु से कुश्ती में पाते हैं। हम भी येसु के साथ हमारे प्रार्थणमय वार्तालाप में और हमारी प्रार्थनाओं में दृढ विश्वास बनाये रखें। आमेन।

-फादर प्रीतम वसूनिया (इन्दौर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION


The woman in today’s Gospel reading is one of the most striking characters in the Gospel of Mark. Jesus is in pagan territory, in the region of Tyre, and is approached by a pagan woman. Jesus shows a marked reluctance to engage with her, ‘it is not fair to take the children’s food and throw it to the house dogs’. The children, the people of Israel, should be fed first. Jesus seems to have seen his mission as initially a mission to the Jews and only later, after his death and resurrection, as a mission that also embraced the pagans. However, this particular pagan woman was not prepared to wait. She cleverly retorted that the house dogs can be quite happy with the crumbs that fall from the children’s table. In other words, there is no reason why the children and the house dogs, the Jews and the pagans, cannot eat at the same time.

In response to her insight and perseverance, Jesus promptly ministers to her. There is a story in the Jewish Scriptures of Jacob wrestling with God. The pagan woman could be understood as wrestling with Jesus, at least verbally. Sometimes we might find ourselves wrestling with the Lord. We don’t take at face value what the Lord appears to be saying to us; we come back at him, as it were. This morning’s gospel reading suggests that such a way of relating to the Lord is not lacking in reverence. The Lord relates to us out of the fullness of his heart and he wants us to relate to him out of the fullness of our hearts, without censoring what is to be found there.

-Fr. Preetam Vasuniya (Indore)


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Praise the Lord!