वर्ष -1, आठवाँ सप्ताह, सोमवार

पहला पाठ : प्रवक्ता-ग्रन्थ 17:20-28

20) ईश्वर पश्चात्ताप करने वालों को अपने पास लौटने देता और निराश लोगों केा ढ़ारस बँधाता है।

21) पाप छोड़ कर सर्वोच्च ईश्वर के पास लौट जाओ।

22) उस से प्रार्थना करो और उसे अप्रसन्न मत किया करो।

23) अन्याय छोड़ कर सर्वोच्च ईश्वर के पास लौट जाओ और अधर्म से अत्यधिक घृणा करो।

24) ईश्वर का न्यायोचित निर्णय पहचान लो और सर्वोच्च प्रभु से विनय और प्रार्थना करो।

25) यदि जीवित लोग ईश्वर का धन्यवाद नहीं करते, तो अधोलोक में कौन उसका स्तुतिगान करेगा?

26) अधर्मियों की भ्रान्ति में मत रहो और मृत्यु से पहले प्रभु की स्तुति करो। जो मर चुका है, वह प्रभु का स्तुतिगान नहीं करता।

27) जो जीवित और सकुशल है, वही प्रभु को धन्य कहता है। जीवित और सकुशल रहते हुए प्रभु को धन्य कहो। प्रभु की स्तुति करो और उसकी दया पर गौरव करो।

28) कितनी महान् है ईश्वर की दया और उसके पास लौटने वालों के लिए उसकी क्षमाशीलता!

सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 10:17-27

17) ईसा किसी दिन प्रस्थान कर ही रहे थे कि एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और उनके सामने घुटने टेक कर उसने यह पूछा, "भले गुरु! अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?"

18) ईसा ने उस से कहा, "मुझे भला क्यों कहते हो? ईश्वर को छोड़ कोई भला नहीं।

19) तुम आज्ञाओं को जानते हो, हत्या मत करो, व्यभिचार मत करो, चोरी मत करो, झूठी गवाही मत दो, किसी को मत ठगो, अपने माता-पिता का आदर करो।"

20) उसने उत्तर दिया, "गुरुवर! इन सब का पालन तो मैं अपने बचपन से करता आया हूँ"।

21) ईसा ने उसे ध्यानपूर्वक देखा और उनके हृदय में प्रेम उमड़ पड़ा। उन्होंने उस से कहा, "तुम में एक बात की कमी है। जाओ, अपना सब कुछ बेच कर ग़रीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हारे लिए पूँजी रखी रहेगी। तब आ कर मेरा अनुसरण करों।“

22) यह सुनकर उसका चेहरा उतर गया और वह बहुत उदास हो कर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।

23) ईसा ने चारों और दृष्टि दौड़ायी और अपने शिष्यों से कहा, "धनियों के लिए ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन होगा!

24) शिष्य यह बात सुन कर चकित रह गये। ईसा ने उन से फिर कहा, "बच्चों! ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है!

25) सूई के नाके से हो कर ऊँट निकलना अधिक सहज है, किन्तु धनी का ईश्वर के राज्य में प्रवेश़्ा करना कठिन है?"

26) शिष्य और भी विस्मित हो गये और एक दूसरे से बोले, "तो फिर कौन बच सकता है?"

27) उन्हें स्थिर दृष्टि से देखते हुए ईसा ने कहा, "मनुष्यों के लिए तो यह असम्भव है, ईश्वर के लिए नहीं; क्योंकि ईश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है"।


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