वर्ष -1, नौवाँ सप्ताह, गुरुवार

पहला पाठ : टोबीत का ग्रन्थ 6:10-12; 7:1,9-12,15-16; 8:1,4-9

6:10) मेदिया में प्रवेश करने के बाद और एकबतना के पास पहुँच कर

11) रफ़ाएल ने युवक से कहा, "भाई टोबीयाह! "उसने उत्तर दिया, "मैं प्रस्तुत हूँ"। उसने कहा, "हमें यह रात रागुएल के यहाँ बितानी है। वह तुम्हारा सम्बन्धी है और उसके सारा नामक एक पुत्री है।

12) उसके कोई पुत्र नहीं है और सारा के सिवा उसके कोई पुत्री भी नहीं। तुम उसके सब से निकट सम्बन्धी हो। तुम को उसके साथ विवाह करने और उसके पिता की सम्पत्ति का पहला अधिकार है। क़न्या समझदार, स्वस्थ और बहुत भली है। उसका पिता उसे बहुत प्यार करता है।"

7:1) एकबतना पहुँच कर उसने कहा, "भाई अज़र्या! मुझे सीधे हमारे भाई रागुएल के पास ले जाओ"। वह उसे रागुएल के घर ले गया। वह अपने आँगन के द्वार पर बैठा हुआ था। उन्होंने उसे पहले प्रणाम किया। उसने उन से कहा, "भाइयो! भले-चंगे रहो। तुम्हारा स्वागत है|" वह उन्हें घर के अन्दर ले गया

9) रागुएल ने अपनी भेड़ों में से एक का वध किया और उनका सहर्ष स्वागत किया। उन्होंने नहाया और अपने को पवित्र किया और जब वे भोजन करने बैठे, तो टोबीयाह ने रफ़ाएल से कहा, "भाई अज़र्या! रागुएल से कहो कि वह मुझे मेरी बहन सारा को दे दें"।

10) रागुएल ने यह सुन कर युवक से कहा, "भाई! इस रात आनन्द मनाते हुए खाओ-पिओ तुम्हारे सिवा कोई मनुष्य मेरी पुत्री सारा से विवाह करने योग्य नहीं है। तुम को छोड़ कर उसे दूसरे पुरुष को देने का मुझे अधिकार भी नहीं है, क्योंकि तुम सब से निकट सम्बन्धी हो।

11) मैं उसे अपने भाइयों में से सात पुरुषों को दे चुका हूँ और जिस रात वे उसके पास गये, उसी रात सब की मृत्यु हो गयी। पुत्र! अब खाओ-पियो! प्रभु तुम दोनों का भला करे।" टोबीयाह ने उत्तर दिया, "जब तब आप मुझे अपनी पुत्री सारा को देने की प्रतिज्ञा नहीं करेंगे, तब तक मैं कुछ नहीं खाऊँगा-पिऊँगा"। रागुएल ने उस से कहा, "प्रतिज्ञा करता हूँ। मूसा की संहिता के निर्णयों के अनुसार वह तुम्हारी है। उसके साथ तुम्हारा विवाह स्वर्ग में निश्चित किया गया है। अपनी बहन को अपनाओ। अब से तुम उस के भाई हो और वह तुम्हारी बहन है। आज वह सदा के लिए तुम्हें दी जाती है। पुत्र! स्वर्ग का ईश्वर तुम्हारा कल्याण करे और इस रात तुम पर दया करे और शान्ति प्रदान करे।"

12) रागुएल ने अपनी पुत्री सारा को बुलाया और वह उसके पास आयी। उसने उसका हाथ पकड़ कर यह कहते हुए उसे टोबीयाह को दिया, "मूसा के ग्रन्थ में निर्धारित विवाह-विधि के अनुसार इसे अपनाओ। यह तुम्हारी पत्नी है। इसे सकुशल अपने पिता के घर ले जाओ। स्वर्ग का ईश्वर तुम लोगों को सुरक्षित यात्रा और शान्ति प्रदान करे।"

15) रागुएल ने अपनी पत्नी एदना को बुला कर उस से कहा, "बहन! दूसरा कमरा तैयार करो और सारा को वहाँ ले जाओ"।

16) उसने जा कर उसके कहने के अनुसार पलंग तैयार किया और अपनी पुत्री को कमरे में ले जा कर उसके लिए रोने लगी। तब उसने आँसू पोंछ कर उस से कहा, "बेटी! ढारस रखो। स्वर्ग का ईश्वर तुम को दुःख के बदले आनन्द प्रदान करे। ढारस रखो।" इसके बाद वह चली गयी।

8:1) वे भोजन के बाद विश्राम करना चाहते थे। उन्होंने युवक को ले जा कर सारा के कमरे में पहुँचा दिया।

4) माता-पिता ने कमरे से बाहर आ कर उसका दरवाज़ा बन्द कर दिया। टोबीयाह ने पलंग से उठ कर सारा से कहा, "बहन! उठो। हम प्रार्थना करें और अपने प्रभु से निवेदन करें कि वह हम पर दया करें और हमें सुरक्षित रखे"।

5) वह उठी और दोनों प्रार्थना करने लगे। उन्होंने प्रभु से निवेदन किया कि वह उन्हें सुरक्षित रखे। वे कहने लगे, "हमारे पूर्वजों के प्रभु! तू धन्य है! तेरा नाम युग-युग तक धन्य है। आकाश और सारी सृष्टि तुझे अनन्त काल तक धन्य कहे।

6) तूने आदम की सृष्टि की और उसे स्थायी सहयोगिनी के रूप में हेवा को प्रदान किया। उन दोनों से मानवजाति की उत्पत्ति हुई है। तूने कहा कि अकेला रहना मनुष्य के लिए अच्छा नहीं। इसलिए हम उसके लिए सदृश एक सहयोगिनी बनायें।

7) अब मैं काम-वासना से प्रेरित हो कर नहीं, बल्कि धर्म के अनुसार अपनी इस बहन को पत्नी के रूप में ग्रहण करता हूँ। इस पर और मुझ पर दया कर और ऐसा कर कि हम दोनों बुढ़ापे तक सकुशल साथ रहें।"

8) दोनों ने कहा, "आमेन! आमेन!

9) और वे रात बिताने के लिए पलंग पर लेट गये।

सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 12:28-34

28) तब एक शास्त्री ईसा के पास आया। उसने यह विवाद सुना था और यह देख कर कि ईसा ने सदूकियों को ठीक उत्तर दिया था, उन से पूछा, “सबसे पहली आज्ञा कौन सी है?“

29) ईसा ने उत्तर दिया, “पहली आज्ञा यह है- इस्राएल, सुनो! हमारा प्रभु-ईश्वर एकमात्र प्रभु है।

30) अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी बुद्धि और सारी शक्ति से प्यार करो।

31) दूसरी आज्ञा यह है- अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो। इनसे बड़ी कोई आज्ञा नहीं।“

32) शास्त्री ने उन से कहा, “ठीक है, गुरुवर! आपने सच कहा है। एक ही ईश्वर है, उसके सिवा और कोई नहीं है।

33) उसे अपने सारे हृदय, अपनी सारी बुद्धि और अपने सारी शक्ति से प्यार करना और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करना, यह हर प्रकार के होम और बलिदान से बढ़ कर है।“

34) ईसा ने उसका विवेकपूर्ण उत्तर सुन कर उस से कहा, “तुम ईश्वर के राज्य से दूर नहीं हो"। इसके बाद किसी को ईसा से और प्रश्न करने का साहस नहीं हुआ।

📚 मनन-चिंतन

विधि-विवरण गंन्थ 6:4-5 में हम पढ़ते हैं। इस्राइल सुनो। हमारा प्रभु-ईश्वर एक मात्र प्रभु है। तुम अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी शक्ति से प्यार करो। ये पंक्तियाँ हर धर्म परायण व्यक्ति के लिए एक औषधि की तरह है। क्योंकि मनुष्य का जीवन एक संघर्ष है। संसार एव अध्यामिकता के बीच का संघर्ष है। जब हम आज के सुसमाचार पर मनन चितंन करते है, तो हमें ज्ञात होता है कि आज्ञापालन जीवन के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण है, चाहे यह पारिवारिक जीवन हो, समाजिक जीवन हो या अध्यात्मिक। इसलिए जब शास्त्री ने ईसा से पूछा, सबसे पहली आज्ञा कौन सी है। संत योहन के सुसमाचार में ईसा उसे कहते हैं, तुम लोग यह समझकर धर्मग्रन्थ का अनुशीलन करते हो कि उसमें तुम्हें अनन्त जीवन का मार्ग मिलेगा।

शास्त्री और ईसा के बीच का प्रसंग हमारे जीवन के लिए स्तंभ खडा करने जैसा है, जहाँ से हम ईसा की शिक्षा को अच्छी तरह सुन और समझ सकते है। इसे संत पौलुस तिमथी के नाम अपने दूसरे पत्र अध्याय 2:7 में कहते हैं, तुम मेरी बातों पर अच्छी तरह विचार करो, क्योंकि प्रभु सब बातें पूर्णरूप से समझने में तुम्हारी सहायता करेगा।

आइये हम आज के सुसमाचार को समझने का प्रयास करें तथा दृढ़ संकल्प लें कि हम ईश्वर के आज्ञापालन में हमेशा तत्पर रह कर ईश्वर के राज्य का रहस्य के योग्य रीति से जी सकें तथा इसके प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें।

फादर आइजक एक्का

📚 REFLECTION


We read in the book of Deuteronomy 6:4-5, Hear, O Israel: The Lord is our God, the Lord alone. You shall love the Lord your God with all your heart, and with all your soul, and with all your might. These lines are like a medicine for a righteous man, because there is a constant tow between the powers of the just and the unjust powers. And when we reflect on this passage we come to know that obedience is an imperative in every aspect of our life; may it be the family life, social life, or religious life. Which is why the Scribe asks Jesus in the gospel today,” which commandment is the first of all’. In the gospel of St. John Jesus says,’ you search the scriptures because you think that in them you have eternal life; and it is they that testify on my behalf’.

The context between the Scribe and Jesus is like a foundation from where we can and understand the teachings of Jesus clearly. To this St. Paul in his epistle to Timothy says,’ Think over what I say, for the Lord will give you understanding in all things’.

Today let us try to understand the core message of the gospel and take a resolution to practice it in our daily lives; that we may be able to live the values of the kingdom of God.

-Fr. Isaac Ekka


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Praise the Lord!