वर्ष -1, दसवाँ सप्ताह, गुरुवार

पहला पाठ : 2 कुरिन्थियों 3:15-4:1,3-6

15) जब मूसा का ग्रन्थ पढ़ कर सुनाया जाता है, तो उनके मन पर आज भी वह परदा पड़ा रहता है।

16) किन्तु जब कोई प्रभु की ओर अभिमुख हो जाता है, तो वह परदा हटा दिया जाता है;

17) क्योंकि प्रभु तो आत्मा है, और जहाँ प्रभु का आत्मा है, वहाँ स्वतन्त्रता है।

18) जहाँ तक हम सबों का प्रश्न है, हमारे मुख पर परदा नहीं है और हम सब दर्पण की तरह प्रभु की महिमा प्रतिबिम्बित करते हैं। इस प्रकार हम धीरे-धीरे उसके महिमामय प्रतिरूप में रूपान्तरित हो जाते हैं और वह रूपान्तरण प्रभु अर्थात् आत्मा का कार्य है।

4:1) ईश्वर की दया ने हमें यह सेवा-कार्य सौंपा है, इसलिए हम कभी हार नहीं मानते।

3) यदि हमारा सुसमाचार किसी तरह गुप्त या अस्पष्ट है, तो उन लोगों के लिए, जो विनाश के मार्ग पर चलते हैं।

4) इस संसार के देवता ने अविश्वासियों का मन इतना अन्धा कर दिया है कि वे ईश्वर के प्रतिरूप, मसीह के महिमामय सुसमाचार की ज्योति को देखने में असमर्थ हैं।

5) हम अपना नहीं, बल्कि प्रभु ईसा मसीह का प्रचार करते हैं। हम ईसा के कारण अपने को आप लोगों का दास समझते हैं।

6) ईश्वर ने आदेश दिया था कि अन्धकार में प्रकाश हो जाये। उसी ने हमारे हृदयों को अपनी ज्योति से आलोकित कर दिया है, जिससे हम ईश्वर की वह महिमा जान जायें, जो मसीह के मुखमण्डल पर चमकती है।

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 5:20-26

(20) मैं तुम लोगों से कहता हूँ - यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फ़रीसियों की धार्मिकता से गहरी नहीं हुई, तो तुम स्वर्गराज्य में प्रवेश नहीं करोगे।

(21) "तुम लोगों ने सुना है कि पूर्वजों से कहा गया है- हत्या मत करो। यदि कोई हत्या करे, तो वह कचहरी में दण्ड के योग्य ठहराया जायेगा।

(22) परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ - जो अपने भाई पर क्रोध करता है, वह कचहरी में दण्ड के योग्य ठहराया जायेगा। यदि वह अपने भाई से कहे, ’रे मूर्ख! तो वह महासभा में दण्ड के योग्य ठहराया जायेगा और यदि वह कहे, ’रे नास्तिक! तो वह नरक की आग के योग्य ठहराया जायेगा ।

(23) "जब तुम वेदी पर अपनी भेंट चढ़ा रहे हो और तुम्हें वहाँं याद आये कि मेरे भाई को मुझ से कोई शिकायत है,

(24) तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ कर पहले अपने भाई से मेल करने जाओ और तब आ कर अपनी भेंट चढ़ाओ।

(25) "कचहरी जाते समय रास्ते में ही अपने मुद्दई से समझौता कर लो। कहीं ऐसा न हो कि वह तुम्हें न्यायाकर्ता के हवाले कर दे, न्यायाकर्ता तुम्हें प्यादे के हवाले कर दे और प्यादा तुम्हें बन्दीगृह में डाल दे।

(26) मैं तुम से यह कहता हूँ - जब तक कौड़ी-कौड़ी न चुका दोगे, तब तक वहाँ से नहीं निकल पाओगे।

📚 मनन-चिंतन

आज का सुसमाचार संत मत्ती 5:20-26, में हम सुनते हैं कि हमें किस प्रकार अधार्मिकता को नियंत्रित करना है, हमारी मानवीय स्वभाव है कि हम क्रोध, बदले की भवना, बुरी आदतें और घृणा से ग्रसित हैं। मैं समझता हूँ कि इस प्रकार की भावनाओं से कोई भी व्याक्ति अच्छूता नहीं है। इसे हम उत्पत्ति ग्रन्थ 4:6-7 में पाते हैं। प्रभु ने काइन से कहा, ’’तुम क्यों क्रोध करते हो और तुम्हारा चेहरा क्यों उतरा हुआ है? जब तुम भला करोगे, तो प्रसन्न होगे। यदि तुम भला नहीं करोगे, तो पाप हिंस्र पशु की तरह तुम पर झपटने के लिए तुम्हारे द्वार पर घात लगा कर बैठेगा। क्या तुम उसका दमन कर सकोगे? इस प्रकार की भावनाएँ हमारे जीवन का अंग है। हमारी भावनाएँ अच्छी या बुरी हो सकती है। अच्छी भावनाएँ हमें सदगुणों से सम्पन्न करती है, जबकि अवगुण हमें बुरी विचारों से भरकर बुरी सोचने के लिए बाध्य करता है।

आज प्रभु येसु अपने शिष्यों और हमें बताते हैं कि कैसे सही गुणों का चुनाव किया जाए। हम उन गुणों का चुनाव करें जिससे हमारी अधार्मिकता दूर हो सके। जैसे प्रेम, आशा, दया और विश्वास। सुसमाचार में हम पाते हैं कि नाकेदार, वेश्याएँ, परस्त्रीगामियों, अपराधियों समाज से तिरष्कृत लोगों ने प्रभु येसु को पहचाना, लेकिन स्थापित धार्मिक अधिकारियों ने नहीं। धर्मान्तरित अपने विश्वास पर हमेशा प्रसंनचित होगें क्योंकि उन्होंने अपने पुराने गहरे घाव (तिनका) अपने हदय में बसा था। और जो आंधे थे वे हमेशा खुशी महसूस करेगें क्योंकि उन्होंने अंधकार से ज्योति में प्रवेश किया।

फादर आइजक एक्का

📚 REFLECTION


In today’s gospel reading Mt.5: 20-26, we hear that how we need to control our unrighteousness. It is our human nature that we are easily prone to anger, hatred, jealousy, evil intention creep in us. I think from these nobody is an exception. We find it in Gen.4:6-7, The Lord said to Cain, “why are you angry and why has your countenance fallen? If you do well, will you not be accepted? And if you do not do well, sin is lurking at the door; its desire is for you, but you must master it.” As human beings we experience these emotions in our life. They are part and parcel of our life. Our emotions can be positive or negative. Positive emotions lead us to do well, whereas negative emotions compel us to think contrary or opposite.

Today Jesus tells his disciples choose the right perspective of life. We need to choose right perspective which enables us to overcome our unrighteousness. We find in the gospels that the tax collectors, prostitutes, adulterers, criminals, rejects of the society recognised who Christ was before most of the established religious authorities did. Converts to the faith will always have a much deeper appreciation for the faith because they had a deeper wound (splinter) in their heart. The blind will always cherish their sight more than those could see because they went from darkness to light.

-Fr. Isaac Ekka


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Praise the Lord!