वर्ष -1, ग्यारहवाँ सप्ताह, सोमवार

पहला पाठ : 2 कुरिन्थियों 6:1-10

1) ईश्वर के सहयोगी होने के नाते हम आप लोगों से यह अनुरोध करते हैं कि आप को ईश्वर की जो कृपा मिली है, उसे व्यर्थ न होने दे;

2) क्योंकि वह कहता है - उपयुक्त समय में मैंने तुम्हारी ुसुनी; कल्याण के दिन मैंने तुम्हारी सहायता की। और देखिए, अभी उपयुक्त समय है, अभी कल्याण का दिन है।

3) हम हर बात में इसका ध्यान रखते हैं कि किसी को हमारी ओर उंगली उठाने का अवसर न मिले। कहीं ऐसा न हो कि हमारे सेवा-कार्य पर कलंक लगे।

4 (4-5) हम कष्ट, अभाव, संकट, कोड़ों की मार, कैद और उपद्रव में धीर बने हुए हैं और अथक परिश्रम, जागरण तथा उपवास करते हुए, हर परिस्थिति में, ईश्वर के योग्य सेवक की तरह आचरण करने का प्रयत्न करते हैं।

6) (6-7) हमारी सिफ़ारिश है- निर्दोष, जीवन, अन्तर्दृष्टि, सहनशीलता, मिलनसारी, पवित्र आत्मा के वरदान, निष्कपट प्रेम, सत्य का प्रचार, ईश्वर का सामर्थ्य। हम दाहिने और बायें हाथ में धार्मिकता के शस्त्र लिये संघर्ष करते रहते हैं।

8) सम्मान और अपमान, प्रशंसा और निन्दा- यह सब हमारे भाग्य में है। हम कपटी समझे जाते हैं, किन्तु हम सत्य बोलते हैं।

9) हम नगण्य हैं, किन्तु सब लोग हमें मानते हैं। हम मरने-मरने को हैं, किन्तु हम जीवित हैं। हम मार खाते हैं, किन्तु हमारा वध नहीं होता।

10) हम दुःखी हैं, फिर भी आप हर समय आनन्दित हैं। हम दरिद्र हैं, फिर भी हम बहुतों को सम्पन्न बनाते हैं। हमारे पास कुछ नहीं है; फिर सब कुछ हमारा है।

सुसमाचार : मत्ती 5:38-42

(38) तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है- आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत।

(39) परंतु मैं तुम से कहता हूँ दुष्ट का सामना नहीं करो। यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड मारे, तो दूसरा भी उसके सामने कर दो।

(40) जो मुक़दमा लड़ कर तुम्हारा कुरता लेना चाहता है, उसे अपनी चादर भी ले लेने दो।

(41) और यदि कोई तुम्हें आधा कोस बेगार में ले जाये, तो उसके साथ कोस भर चले जाओ।

(42) जो तुम से माँगता है, उसे दे दो जो तुम से उधार लेना चाहता है, उस से मुँह न मोड़ो।

📚 मनन-चिंतन

जब हम आज के सुसमाचार को पढ़ते हैं तो हम पाते हैं कि प्रभु येसु के शब्द सभों को आश्चर्य चकित कर देता है, क्योंकि हमारा न्याय प्रक्रिया या सोच अलग है। यहाँ पर हम न्याय को संसारिक तर्क के विरूध्द पाते हैं। संसारिक न्याय दोनों पक्षों को बराबरी का दर्जा देती है, आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत।

लेकिन, प्रभु येसु सुसमाचार में इस से आगे बढ़कर कहते हैं यदि कोई गाल पर थप्पड़ मारे तो उसके साथ रहकर, कुछ समय निकालकर अपने को समर्पित कर दो। और यदि वह कुछ माँगता है, तो उसे और अधिक देना चाहिए। यही प्रभु येसु का नियम है, वह न्याय जो, दूसरी न्याय से सर्वथा अलग है - आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत।

संत पौलुस भी आज के पाठ में ऐसे ही अभिव्यक्ति देते हैं, जिसे हम गाल पर थप्पड़ मारना और उस प्रकार के चीज के अर्थ को समझ सकते हैं। और वे अपने शब्दों को अन्त करते हुए कहते हैं:- जैसे लोगों के पास कुछ नहीं है और फिर भी उनके पास सब कुछ है (2 कुरिन्थ 6:10)

फादर आइजक एक्का

📚 REFLECTION


When we read today’s gospel we find that Jesus’ word surprise everyone. Our thinking of justice is different. This is something that goes against the world’s logic. The worldly justice gives reasonable justice for both; an eye for an eye, and a tooth for a tooth. Because we must defend ourselves, we must fight; we have to defend on our ground. And if someone strikes us once, we will strike them twice and so defend ourselves. This is the normal thinking.

Yet, Jesus goes beyond this and says that after we have been struck, one ought to pause for a while together with the other person, to dedicate sometime to the person. And if he asks for something, we ought to give him even more. This is Jesus’ law: the justice that delivers in another justice, totally different from ‘an eye for an eye, and a tooth for a tooth’. St Paul gives us an expression that may help us to understand the meaning of the blow to the cheek and the other such things. In fact, he ends with the words: as people having nothing, and yet possessing everything (2Cor.6:10).

-Fr. Isaac Ekka


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!