वर्ष -1, बारहवाँ सप्ताह, बुधवार

पहला पाठ : उत्पत्ति 15:1-12,17-18

1) इन घटनाओं के बाद अब्राम ने एक दिव्य दर्शन में ईश्वर की वाणी को यह कहते हुए सुना, ''अब्राम! मत डरो! मैं तुम्हारी ढाल हूँ। तुम्हारा पुरस्कार महान् होगा!''

2) अब्राम ने कहा, ''प्रभु-ईश्वर! तू मुझे क्या दे सकता है? मैं निस्सन्तान हूँ और मेरे घर का उत्तराधिकारी दमिश्क का एलीएजर है।''

3) अब्राम ने फिर कहा, ''तूने मुझे कोई सन्तान नहीं दी। मेरा नौकर मेरा उत्तराधिकारी होगा।''

4) तब प्रभु ने उस से यह कहा, ''वह तुम्हारा उत्तराधिकारी नहीं होगा। तुम्हारा औरस पुत्र ही तुम्हारा उत्तराधिकारी होगा।''

5) ईश्वर ने अब्राम को बाहर ले जाकर कहा, ''आकाश की और दृष्टि लगाओ और सम्भव हो, तो तारों की गिनती करो''। उसने उस से यह भी कहा, ''तुम्हारी सन्तति इतनी ही बड़ी होगी''।

6) अब्राम ने ईश्वर में विश्वास किया और इस कारण प्रभु ने उसे धार्मिक माना।

7) प्रभु ने उस से कहा, ''मैं वही प्रभु हूँ, जो तुम्हें इस देश का उत्तराधिकारी बनाने के लिए खल्दैयों के ऊर नामक नगर से निकाल लाया था।''

8) अब्राम ने उत्तर दिया, ''प्रभु! मेरे ईश्वर! मैं यह कैसे जान पाऊँगा कि इस पर मेरा अधिकार हो जायेगा?''

9) प्रभु ने कहा, ''तीन वर्ष की कलोर, तीन वर्ष की बकरी, तीन वर्ष का मेढा, एक पाण्डुक और एक कपोत का बच्चा यहाँ ले आना''।

10) अब्राम ये सब ले आया। उसने उनके दो-दो टुकड़े कर दिये और उन टुकड़ों को आमने-सामने रख दिया, किन्तु पक्षियों के दो-दो टुकड़े नहीं किये।

11) गीध लाशों पर उतर आये, किन्तु अब्राम ने उन्हें भगा दिया।

12) जब सूर्य डूबने पर था, तो अब्राम गहरी नींद में सो गया और उस पर आतंक छा गया।

17) सूर्य डूबने तथा गहरा अन्धकार हो जाने पर एक धुँआती हुई अंगीठी तथा एक जलती हुई मशाल दिखाई पड़ी, जो जानवरों के उन टुकडों के बीच से होते हुए आगे निकल गयीं।

18) उस दिन प्रभु ने यह कह कर अब्राम के लिए विधान प्रकट किया, मैं मिस्त्र की नदी से लेकर महानदी अर्थात् फ़रात नदी तक का यह देश तुम्हारे वंशजों को दे देता हूँ।

सुसमाचार : मत्ती 7:15-20

15) ’’झूठे नबियों से सावधान रहो। वे भेड़ों के वेश में तुम्हारे पास आते हैं, किन्तु वे भीतर से खूँखार भेडि़ये हैं।

16) उनके फलों से तुम उन्हें पहचान जाओगे। क्या लोग कँटीली झाडि़यों से अंगूर या ऊँट-कटारों से अंजीर तोड़ते हैं?।

17) इस तरह हर अच्छा पेड़ अच्छे फल देता है और बुरा पेड़ बुरे फल देता है।

18) अच्छा पेड़ बुरे फल नहीं दे सकता और न बुरा पेड़ अच्छे फल।

19) जो पेड़ अच्छा फल नहीं देता, उसे काटा और आग में झोंक दिया जाता है।

20) इसलिए उनके फलों से तुम उन्हें पहचान जाओगे।

📚 मनन-चिंतन

आज के पहले पाठ में अब्राम ईश्वर की प्रतिज्ञाओं पर संदेह करने लगते हैं, जो कि ईश्वर उनके लिए निर्धारित किया था। वे इतना सोचने लगते हैं कि वे अपने लिए पुत्र होने के बारे में भी सोचना नहीं चाहते। उसी समय ईश्वर उन्हें बाहर ले जाकर कहा, आकाश की ओर दृष्टि लगाओ और संभव हो, तो तारों की गिनती करो। तुम्हारी संन्तति इतनी ही बड़ी होगी। और जब अब्राम ने अपनी आँख ऊपर उठायी और आकाश के तारों को देखा, उसने ईश्वर पर विश्वास किया। इसी प्रकार जब हम ईश्वर पर दृष्टि लगाकर अपने विश्वास में आगे बढ़ते हैं, तब अच्छा फल उत्पन्न करते हैं। जब निराश होकर कुछ समय संसार की विरूपता को देखेतेे हैं तब हम संदेह के कारण निंदक एवं उलझन में पड़कर अच्छे फल उत्पन्न नहीं करते हैं।

आइये हम अपना सिर उठाकर आकाश और तारों को देखें एवं अपने विश्वास द्वारा ईश्वर के लिए सुन्दर फल उत्पन्न करें।

फादर आइजक एक्का

📚 REFLECTION


In the first reading, Abram was beginning to have his doubts about the promises that God made to him. He was almost thinking of giving up having a son of his own. It was then that God took him outside and said, “Look up to heavens and count the stars if you can. Such will be your descendants”. It was only when Abram lifted up his eyes to look at the heavens and the stars that he put his faith in God.

It is when we keep looking at God and growing in faith towards him that we will bear good fruit. Looking down at the brokenness and at times, the ugliness of the world will only make us lose faith and get cynical and sceptical.

Let us lift up our heads and look at the heavens with its array of stars and we will also lift up our faith to bear beautiful fruits for God.

-Fr. Isaac Ekka


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Praise the Lord!