वर्ष -1, चौदहवाँ सप्ताह, शनिवार

पहला पाठ : उत्पत्ति 49:29-32, 50:15-26a

29) याकूब ने अपने पुत्रों को यह आदेश दिया, ''मैं शीघ्र ही अपने पितरों में सम्मिलित हो जाऊँगा। मुझे मेरे पूर्वजों के साथ एफ्रोन नामक हित्ती के खेत की गुफा में दफ़नाओ।

30) वह गुफा कनान देश में मामरे के पूर्व मकपेला के खेत में हैं।

31) इब्राहीम ने उसे निजी मक़बरे के लिए एफ्रोन हित्ती से ख़रीदा था।

32) वहाँ इब्राहीम और उनकी पत्नी दफ़नाये गये, वहाँ इसहाक और उनकी पत्नी रिबेका दफ़नाये गये और वहाँ मैंने लेआ को दफ़नाया।''

15) यूसुफ़ के भाई अपने पिता के देहान्त के बाद आपस में कहने लगे, ''हो सकता हैं कि यूसुफ़ हम से बैर करे और हमने उसके साथ जो बुराई की है, उसका बदला चुकाये।''

16) इसलिए उन्होंने यूसुफ़ के पास यह सन्देश भेजा,

17) ''मरने से पहले आपके पिताजी ने आप को यह सन्देश कहला भेजा था - ''तुम्हारे भाइयों ने तुम्हारे साथ अन्याय किया है। मेरा निवेदन है कि तुम अपने भाइयों का अपराध और पाप क्षमा कर दो।'' इसलिए आप अपने पिता के ईश्वर के सेवकों के अपराध क्षमा कर दीजिए।'' उनकी ये बातें सुन कर यूसुफ़ फूट-फूट कर रोने लगा।

18) यूसुफ़ के भाइयों ने स्वयं आ कर उसे दण्डवत् किया और कहा, ''आप जैसा चाहें, हमारे साथ वैसा करें। हम आपके दास हैं।''

19) यूसुफ़ ने कहा, ''डरिए नहीं। क्या मैं ईश्वर का स्थान ले सकता हूँ?

20) आपने हमारे साथ बुराई करनी चाही, किन्तु ईश्वर ने उसे भलाई में परिणत कर दिया और इस प्रकार बहुत-से लोगों के प्राण बचाये, जैसा कि आजकल हो रहा है।

21) इसलिए डरिए नहीं। मैं आपके और आपके बच्चों के जीवन-निर्वाह का प्रबन्ध करूँगा।'' इस प्रकार यूसुफ़ ने अपनी प्रेम पूर्ण बातों से उनकी आशंका दूर कर दी।

22) यूसुफ़ और उसके पिता का परिवार मिस्र में निवास करता रहा। यूसुफ़ एक सौ दस वर्ष की उमर तक जीता रहा।

23) और उसने तीसरी पीढ़ी तक एफ्रईम के बाल-बच्चों को देखा और मनस्से के पुत्र माकीर के बाल-बच्चों को भी अपनी गोद में खिलाया।

24) अन्त में यूसुफ़ ने अपने भाइयों से कहा, मैं मरने पर हूँ। ईश्वर अवश्य ही तुम लोगों की सुध लेगा और तुम्हें इस देश से निकाल कर उस देश ले जायेगा, जिसे उसने शपथ खा कर इब्राहीम, इसहाक और याकूब को देने की प्रतिज्ञा की हैं।''

25) यूसुफ़ ने इस्राएल के पुत्रों को यह शपथ दिलायी कि जब ईश्वर तुम लोगों की सुध लेगा, तो यहाँ से मेरी हड्डियाँ अपने साथ ले जाना।

26) इसके बाद यूसुफ़ का देहान्त एक सौ दस वर्ष की उमर में हो गया। उसका शव मसालों से संलिप्त कर मिस्र में ही एक शव-मंजूषा में रख दिया गया।

सुसमाचार : मत्ती 10:24-33

24) ’’न शिष्य गुरू से बड़ा होता है और न सेवक अपने स्वामी से।

25) शिष्य के लिए अपने गुरू जैसा और सेवक के लिए अपने स्वामी जैसा बन जाना ही बहुत है। यदि लोगों ने घर के स्वामी को बेलज़ेबुल कहा है, तो वे उसके घर वालों को क्या नहीं कहेंगे?

26) ’’इसलिए उन से नहीं डरो। ऐसा कुछ भी गुप्त नहीं है, जो प्रकाश में नहीं लाया जायेगा और ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, जो प्रकट नहीं किया जावेगा।

27) मैं जो तुम से अंधेरे में कहता हूँ, उसे तुम उजाले में सुनाओ। जो तुम्हें फुस-फुसाहटों में कहा जाता है, उसे तुम पुकार-पुकार कर कह दो।

28) उन से नहीं डरो, जो शरीर को मार डालते हैं, किन्तु आत्मा को नहीं मार सकते, बल्कि उससे डरो, जो शरीर और आत्मा दोनों का नरक में सर्वनाश कर सकता है।

29) ’’क्या एक पैसे में दो गौरैयाँ नहीं बिकतीं? फिर भी तुम्हारे पिता के अनजाने में उन में से एक भी धरती पर नहीं गिरती।

30) हाँ, तुम्हारे सिर का बाल बाल गिना हुआ है।

31) इसलिए नहीं डरो। तुम बहुतेरी गौरैयों से बढ़ कर हो।

32) ’’जो मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने स्वीकार करूँगा।

33) जो मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने अस्वीकार करूँगा।

📚 मनन-चिंतन

मिशन कार्य की चुनौतियों और कठिनाइयों का वर्णन करने के बाद आज का सुसमाचार हमें हिम्मत और आशा की नई किरण देता है. और वह आशा यह है कि चाहे प्रभु के नाम के कारण हम पर कितने भी कष्ट और विपत्तियाँ आयें, उन सब में ईश्वर हमारे साथ है. झूठ, अन्याय और अत्याचार के इस युद्ध में प्रभु हमारे साथ लड़ता है, और अंत में हमें विजय दिलाएगा. प्रभु हमसे वादा करते हैं कि कोई भी तुम्हारे सिर का बाल भी बाँका नहीं कर सकता. जब ईश्वर गौरैया जैसे छोटे-छोटे पक्षियों और जीवों का इतना ख्याल रखता है, घास-फूँस को भी सुन्दर फूलों से सजाता है, तो सोचो तुम्हारा कितना ख्याल रखेगा, जिसे उसने अपने ही प्रतिरूप में बनाया है, जिसे सारी सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ बनाया है. उसने हमें अपनी हथेली पर खोद रखा है, (इसायाह 49:16), हम उसकी आँखों की पुतली के समान हैं.

प्रभु जब कहते हैं कि मेरा अनुसरण करो, इसका मतलब यही नहीं कि मैंने जो कहा है, उसका पालन करो, बल्कि यह भी कि जैसा जीवन मैंने जिया है, वैसा ही तुम भी जियो. अर्थात् अगर प्रभु येसु ने सत्य के लिए, न्याय के लिए दूसरों के पापों के लिए कष्ट उठाया है, मौत को गले लगाया है, तो निश्चय ही अगर हम प्रभु येसु के शिष्य हैं तो हमें भी उन्हीं हालातों से गुजरना पड़ेगा. गुरु कभी भी शिष्य से बड़ा नहीं हो सकता. अगर गुरु ने कष्ट उठाया है, अगर हमारे गुरु को क्रूस की कष्टकारी मृत्यु इस संसार ने दी है, तो हमें वही संसार कैसे अपना सकता है? लेकिन प्रभु येसु हमें याद दिलाते हैं कि ये सिर्फ शरीर को मार सकते हैं, लेकिन आत्मा को नहीं. न्याय के दिन सबको हिसाब देना होगा. प्रभु से कृपा माँगें कि हम अपने जीवन में प्रभु येसु का सच्चा अनुकरण कर सकें. आमेन.

फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर)

📚 REFLECTION


After describing the challenges and hurdles in the Mission, today’s gospel gives us a ray of hope and courage. And that hope and courage is this – Whatever difficulties and persecutions we face on account of the gospel, God is with us. God is with us in this our battle against darkness, injustice and persecutions, and He only will grant us victory. Jesus assures us that no one touch even the hair of head. If God cares for insignificant sparrow, If He can dress the insignificant grass and plants with beautiful flowers, then why would He not care for us, whom He has created us in His own image, who has created us as best of His creation. He has inscribed each one of us on the palm of His hands (Isaiah 49:16), He takes care of us like the apple of His eyes.

When Jesus says, ‘follow me’ it does not only means that we need to obey the teachings that he gives us, but also live the life that he lived. If Jesus suffered for Justice and truth and died to save others, then we are to follow the same, we are to face the same. Jesus says, a disciple is not greater than the teacher. If our teacher and guru has suffered, if he was given a painful death on the cross, then how can the world accept us? Jesus also assures us that they can only harm us bodily but cannot do anything to the soul. Everyone will be accountable on the day of judgement. Let us pray to God to give us the grace to truly follow Jesus our Guru.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!