वर्ष -1, सत्रहवाँ सामान्य सप्ताह, गुरुवार

पहला पाठ : निर्गमन 40:16-21, 34-38

16) प्रभु ने जो कुछ कहा था, मूसा ने वह सब पूरा किया।

17) दूसरे वर्ष के प्रथम महीने, उस महीने के प्रथम दिन, निवास का निर्माण हुआ।

18) मूसा ने निवास का निर्माण किया। उसने जमीन में र्कुसियाँ डाल दीं और उन पर तख्ते रख कर और छड़ बाँध कर खूँटे खड़े किये।

19) उसने निवास पर तम्बू ताना और उसके ऊपर तम्बू का आवरण रख दिया, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेश दिया था।

20) उसने विधान की पाटियाँ मंजूषा में रखीं, मंजूषा में डण्डे लगाये और उस पर छादन-फलक रखा।

21) उसने मंजूषा निवास में रख कर उसके सामने एक अन्तरपट लगाया और इस प्रकार विधान की मंजूषा आँखों से ओझल कर दी, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेश दिया था।

22) इसके बाद उसने दर्शन-कक्ष में, निवास के उत्तरी भाग में अन्तरपट के सामने मेज रखी

23) और उस पर भेंट की रोटियाँ रखीं; जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेश दिया था।

24) उसने दर्शन कक्ष में, उसके दक्षिणी भाग में, मेज के सामने दीपवृक्ष रखा।

25) उसने प्रभु के लिए दीपक सजाये, जैसा कि प्रभु ने उसे आदेश दिया था।

26) उसने दर्शन कक्ष में, अन्तरपट के सामने, सोने की वेदी रखी।

27) इसके बाद मूसा ने सुगन्धित लोबान जलाया, जैसा कि प्रभु ने उसे आदेश दिया था।

28) तब उसने निवास के प्रवेश-द्वार पर परदा लगाया।

29) उसने निवास, दर्शन-कक्ष के सामने होम बलि की वेदी रखी और उस पर होम-बलि और नैवेद्य चढ़ाया, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेश दिया था।

30) दर्शन-कक्ष और वेदी के बीच चिलमची रखी और उस में जल भर दिया।

31) मूसा, हारून और उसके पुत्रों ने उस से अपने हाथ-पैर धोये।

32) जब-जब वे दर्शन-कक्ष में प्रवेश करते और वेदी के पास जाते, तब-तब वे हाथ-पैर धोते थे, जैसा कि प्रभु ने मूसा को आदेश दिया था।

33) निवास और वेदी के चारों ओर आँगन लगाया गया और आँगन के द्वार पर परदा। इस प्रकार मूसा का काम समाप्त हो गया।

34) तब एक बादल ने दर्शन-कक्ष को ढक लिया और प्रभु की महिमा निवास में भर गयी।

35) मूसा तम्बू में प्रवेश नहीं कर सका, क्योंकि बादल उसे छाये रहता था और निवास प्रभु की महिमा से भर गया था।

36) समस्त यात्रा के समय इस्राएली तभी आगे बढ़ते थे, जब बादल निवास पर से उठ कर दूर हो जाता था।

37) जब बादल नहीं उठता, तो वे प्रतीक्षा करते रहते।

38) उनकी समस्त यात्रा के समय प्रभु का बादल दिन में निवास के ऊपर छाया रहता था, किन्तु रात को बादल में आग दिखाई पड़ती, जिसे सभी इस्राएली देख सकते थे।

सुसमाचार : मत्ती 13:47-53

47) "फिर, स्वर्ग का राज्य समुद्र में डाले हुए जाल के सदृश है, जो हर तरह की मछलियाँ बटोर लाता है।

48) जाल के भर जाने पर मछुए उसे किनारे खींच लेते हैं। तब वे बैठ कर अच्छी मछलियाँ चुन-चुन कर बरतनों में जमा करते हैं और रद्दी मछलियाँ फेंक देते हैं।

49) संसार के अन्त में ऐसा ही होगा। स्वर्गदूत जा कर धर्मियों में से दुष्टों को अलग करेंगे।

50) और उन्हें आग के कुण्ड में झोंक देंगे। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।

51) "क्या तुम लोग यह सब बातें समझ गये?" शिष्यों ने उत्तर दिया, "जी हाँ"।

52) ईसा ने उन से कहा, "प्रत्येक शास्त्री, जो स्वर्ग के राज्य के विषय में शिक्षा पा चुका है, उस ग्रहस्थ के सदृश है, जो अपने ख़जाने से नयी और पुरानी चीज़ें निकालता है"।

53) इन दृष्टान्तों के समाप्त होने पर ईसा वहाँ से चले गये।

📚 मनन-चिंतन

आज माता कलीसिया भारत की प्रथम महिला सन्त जो केरल में जन्मी, सन्त अलफोंसा का पर्व (स्मृति दिवस) मनाती है. आज के सुसमाचार में प्रभु येसु ईश्वरीय राज्य के बारे में दो और उदाहरण देते हैं. प्रभु येसु कहते हैं, ईश्वर का राज्य खेत में छिपे हुए खजाने के समान है. प्रभु येसु दूसरा उदाहरण अनमोल मोती का देते हैं. दोनों ही तरह के खजाने को पाने वाले अपना सब कुछ बेचकर उस खजाने को प्राप्त करते हैं. अर्थात एक तरफ उनकी सारी सम्पत्ति, और धन-दौलत और दूसरी तरफ ईश्वर का राज्य. लेकिन जो ईश्वर के राज्य को नहीं समझते हैं उनके लिए उसका कोई मूल्य नहीं है, ठीक उसी तरह जिस तरह नासमझ व्यक्ति के लिए बहुमूल्य हीरे-मोती किसी सामान्य पत्थर जैसे हैं.

प्रभु येसु के इन दोनों उदाहरणों को हम बहुत से लोगों के जीवन में पूरा होते देखते हैं. एक उदाहरण आज की सन्त अलफोंसा हैं जिन्होंने बचपन से अपने जीवन की हर ख़ुशी को ईश्वर के समर्पित कर दिया. उन्होंने ईश्वर को पाने के लिए अपनी पत्रिक सम्पत्ति दान कर दी और एक धर्म बहन के रूप में ईश्वर की शरण में आ गयी. ऐसे अनेक संतों के उदाहरण हैं जिन्होंने ईश्वर के राज्य की खातिर इस संसार की बड़ी से बड़ी दौलत त्याग दी और अपना जीवन ईश्वरीय राज्य के लिए दे दिया, जैसे कि असीसी के सन्त फ्रांसिस, लोयोला के सन्त इग्नेशियस, सन्त फ्रांसिस ज़ेवियर, सन्त मदर टेरेसा आदि. अगर हम ऐसे लोगों की लिस्ट बनाएं तो वास्तव में एक बहुत लम्बी लिस्ट बन जाएगी. आइये हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि ईश्वर हमें भी स्वर्गराज्य का महत्त्व और मूल्य समझने की कृपा प्रदान करे.आमेन.

फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर)

📚 REFLECTION


We celebrate the feast (memorial) of St. Alphonsa, the first Indian woman saint from Kerala. Jesus gives us two more examples about the nature of the kingdom of God. Jesus tells that the kingdom of God is like a treasure hidden in field. Second example is that of specious pearl of great price. Those who desire to have both of these types of treasures, have to sell everything and own the treasure. In other words on one side is their all wealth and possessions and on the other side is the treasure of the kingdom of God. But those who do not know the kingdom of God, for them it has no value. It is like a person who has no understanding of diamonds and precious stones, for him they are like any other ordinary stones.

We can see these examples beings fulfilled in the lives of many. One such example is today’s saint Alphonsa who sacrificed all her joys and sorrows and offered them to God from her very childhood. She donated all her inheritance and dedicated her life for God as a nun. There are numerous examples of great saints who when found the treasure, gave up all their wordly wealth and possessions in order to own this pearl of great price, they gave their everything including their lives for the kingdom of God. Some of such examples are, St. Francis of Assisi, St. Ignatius of Loyola, St. Francis Xavier, St. Mother Teresa etc. If we make a list of such people, it will be very very long list of names. Let us pray to God to give us the grace to understand the price and importance of the Kingdom of God. Amen.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!