वर्ष -1, सत्रहवाँ सामान्य सप्ताह, शुक्रवार

पहला पाठ : लेवी 23:1, 4-11, 15-16, 27, 34-37

1) प्रभु ने मूसा से कहा,

4) प्रभु के पुण्य-पर्व, जिन्हें समारोह के साथ निश्चित समय पर मनाना चाहिए, इस प्रकार हैं।

5) पहले महीने के चौदहवें दिन संध्या समय प्रभु के आदर में पास्का है

6) और उस महीने के पन्द्रहवें दिन प्रभु के आदर में बेख़मीर रोटियों का पर्व है। तुम सात दिन बेख़मीर रोटियाँ खाओगे।

7) पहले दिन तुम लोगों के लिए एक धर्म-सभा का आयोजन किया जाएगा और तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे।

8) तुम सात दिन तक प्रभु को अन्न-बलि चढ़ाओगे। सातवें दिन एक धर्म-सभा का आयोजन किया जाएगा, और तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे।''

9) प्रभु ने मूसा से कहा,

10) ''इस्राएलियों से यह कहो - जब तुम उस देश में पहुँच जाओगे, जिसे में तुम्हें देने जा रहा हूँ और तुम वहाँ फ़सल काटोगे, तो तुम अपनी फ़सल का पहला पूला याजक के पास ले आओगे।

11) वह विश्राम-दिवस के दूसरे दिन उसे प्रभु के सामने प्रस्तुत करेगा, जिससे तुम्हें ईश्वर की कृपा दृष्टि प्राप्त हो जाये।

15) ''विश्राम-दिवस के दूसरे दिन, जब तुम चढ़ावे का पूला लाते हो, उस दिन से तुम पूरे सात सप्ताह गिनोगे।

16) सातवें सप्ताह के दूसरे दिन अर्थात् पचासवें दिन से तुम प्रभु को नये अनाज का अन्न-बलि चढ़ाओगे।

27) ''सातवें महिने का दसवाँ दिन प्रायश्चित-दिवस है। उस दिन तुम लोगों के लिए धर्म-सभा का आयोजन किया जाएगा। तुम उपवास करोगे और प्रभु को होम-बलि चढ़ाओगे।

34) वह सात दिन तक मनाया जायेगा।

35) उसके प्रथम दिन धर्म-सभा का आयोजन किया जायेगा और तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे।

36) तुम सात दिन प्रभु को होम-बलि चढ़ाओगे। आठवें दिन लोगों के लिए एक धर्म-सभा का आयोजन किया जायेगा और तुम प्रभु को होम-बलि चढ़ाओगे। उस दिन समापन समारोह होगा और तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे।

37) ये प्रभु के पर्व हैं, जिन में तुम धर्म सभा का आयोजन करोगे और प्रत्येक की विधि के अनुसार प्रभु को होम-बलि, अन्न-बलि, शान्ति-बलि और अर्घ चढ़ाओगे।

38) इसके अतिरिक्त प्रभु को अर्पित सामान्य विश्राम दिवसों के बलिदान, मन्नत के कारण या स्वेच्छिक बलिदान चढ़ाओगे।

सुसमाचार : मत्ती 13:54-58

54) वे अपने नगर आये, जहाँ वे लोगों को उनके सभाग्रह में शिक्षा देते थे। वे अचम्भे में पड़ कर कहते थे, ’’इसे यह ज्ञान और यह सामर्थ्य कहाँ से मिला?

55) क्या यह बढ़ई का बेटा नहीं है? क्या मरियम इसकी माँ नहीं? क्या याकूब, यूसुफ, सिमोन और यूदस इसके भाई नहीं?

56) क्या इसके सब बहनें हमारे बीच नहीं रहतीं? तो यह सब इसे कहाँ से मिला?’’

57) पर वे ईसा में विश्वास नहीं कर सके। ईसा ने उन से कहा, ’’अपने नगर और अपने घर में नबी का आदर नहीं होता।’’

58) लोगों के अविश्वास के कारण उन्होंने वहाँ बहुत कम चमत्कार दिखाये।

📚 मनन-चिंतन

हर व्यक्ति में अच्छाईयां और बुराइयाँ दोनों होती हैं. लोग उसी अच्छाई या बुराई को देखते और समझते हैं. लेकिन कभी-कभी लोगों के हृदय पर कुछ ऐसा पर्दा पड़ जाता है कि वे एक अच्छे इन्सान में भी सिर्फ बुराइयाँ खोजते हैं, और अच्छाई को भूल जाते हैं. आज के सुसमाचार में जब प्रभु येसु अपने गृह नगर आते हैं, तो लोग उनकी बातें सुनकर और उनके महान चमत्कारों के बारे में सुनकर चकित हो जाते हैं और उनके बारे में अजीब बातें करने लगते हैं. वे उनके भाई-बहनों, माता-पिता आदि के बारे में बातें करते हैं और इस बात पर यकीन नहीं कर पाते कि उनके बीच में रहा, पला-बढ़ा यह व्यक्ति ईश्वर का पुत्र भी हो सकता है. वे प्रभु येसु की ईश्वरता को नहीं पहचान पाते.

हम जानते हैं कि प्रभु येसु पूर्ण रूप से मनुष्य और पूर्ण रूप से ईश्वर हैं. पूर्ण रूप से मनुष्य होने का अर्थ है कि जो भी एक मनुष्य के अनुभव के रूप में उन्हें अनुभव करना था वह सब उन्होंने अनुभव किया. वे साधारण मानव माता-पिता के अधीन रहे, उनसे सीखा और दुःख-दर्द को महसूस किया. वहीँ दूसरी ओर वह पूर्ण रूप से ईश्वर भी थे, मानव जाति के दुःख-दर्द को दूर करने का प्रयास किया, विभिन्न प्रकार के चिन्ह और चमत्कारों द्वारा अपने ईश्वर होने का प्रमाण दिया. उनके गृह नगर के लोगों की यह कमी थी कि वे प्रभु येसु की मनुष्यता से बढ़कर उनकी ईश्वरता को नहीं पहचान पाए. कभी-कभी हम भी अपने आस-पास लोगों में ईश्वर के निवास को नज़रन्दाज़ कर उनकी कमियों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं. हम दूसरों के अन्दर ईश्वर के दर्शन करने की कृपा माँगें. आमेन.

फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर)

📚 REFLECTION


Every person has good things and also some short comings within themselves. People observe this goodness or weaknesses. But sometimes some people become so much veiled by their prejudiced mind set that they see only one aspect of a person’s life and ignore the other. When Jesus comes to his home town, people are surprised at the words and wisdom of Jesus, they had heard about the mighty works and miracles of Jesus, but still they talk strangely about Jesus. They talk about his parents, his brothers and sisters and are unable to accept and believe that this boy who grew amidst them and lived with them, could be the Son of God. They could not recognise the divinity of Jesus.

Our faith teaches us, that Jesus is fully human and fully God. To be fully human means, he experienced the joys and sorrows of human life. As a human he lived and obeyed human parents, he learnt the scriptures and underwent the pain and happiness like any ordinary human being. On the other hand, as God, he healed people, cast away the demons, changed the lives of people with his teachings and mighty works that proved him to be God. The people of his home town lacked the ability to see beyond the humanity of Jesus. They could not see God in Jesus. We have people around us in whom we look for shortcomings and weaknesses than to see the face of God in them. May God bless us with the grace to recognise the dwelling of divine within all. Amen.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior)


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