वर्ष -1, बाईसवाँ सामान्य सप्ताह, मंगलवार

पहला पाठ : 1 थेसलनीकियों 5:1-6, 9-11

1 (1-2) भाइयो! आप लोग अच्छी तरह जानते हैं कि प्रभु का दिन, रात के चोर की तरह, आयेगा। इसलिए इसके निश्चित समय के विषय में आप को कुछ लिखने की कोई ज़रूरत नहीं है।

3) जब लोग यह कहेंगे: ’अब तो शान्ति और सुरक्षा है’, तभी विनाश उन पर गर्भवती पर प्रसव-पीड़ा की तरह, अचानक आ पड़ेगा और वे उस से बच नहीं सकेंगे।

4) भाइयो! आप तो अन्धकार में नहीं हैं, जो वह दिन आप पर चोर की तरह अचानक आ पड़े।

5) आप सब ज्योति की सन्तान हैं, दिन की सन्तान हैं। हम रात या अन्धकार के नहीं है।

6) इसलिए हम दूसरों की तरह नहीं सोयें, बल्कि जगाते हुए सतर्क रहें।

9) ईश्वर यह नहीं चाहता कि हम उसके कोप-भजन बनें, बल्कि अपने प्रभु ईसा मसीह के द्वारा मुक्ति प्राप्त करें।

10) मसीह हमारे लिए मरे, जिससे वह चाहे जीवित हों या मर गये हों, उन से संयुक्त हो कर जीवन बितायें।

11) इसलिए आप को एक दूसरे को प्रोत्साहन और सहायता देनी चाहिए, जैसा कि आप कर रहे है।।

सुसमाचार : सन्त लूकस 4:31-37

31) वे गलीलिया के कफ़रनाहूम नगर आये और विश्राम के दिन लोगों को शिक्षा दिया करते थे।

32) लोग उनकी शिक्षा सुन कर अचम्भे में पड़ जाते थे, क्योंकि वे अधिकार के साथ बोलते थे।

33) सभागृह में एक मनुष्य था, जो अशुद्ध आत्मा के वश में था। वह ऊँचे स्वर से चिल्ला उठा,

34) ’’ईसा नाज़री! हम से आप को क्या? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं-ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।’’

35) ईसा ने यह कहते हुए उसे डाँटा, ’’ चुप रह, इस मनुष्य से बाहर निकल जा’’। अपदूत ने सब के देखते-देखते उस मनुष्य को भूमि पर पटक दिया और उसकी कोई हानि किये बिना वह उस से बाहर निकल गया।

36) सब विस्मित हो गये और आपस में यह कहते रहे, ’’यह क्या बात है! वे अधिकार तथा सामर्थ्य के साथ अशुद्ध आत्माओं को आदेश देते हैं और वे निकल जाते हैं।’’

37) इसके बाद ईसा की चर्चा उस प्रदेश के कोने-कोने में फैल गयी।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में, एक अशुद्ध आत्मा उस व्यक्ति के अंदर से येसु को चिल्लाती है, 'क्या तुम हमें नष्ट करने आए हो?' उस प्रश्न का उत्तर 'हाँ' है।येसु उन सभी ताकतों और शक्तियों को नष्ट करने आए हैं जिन्होंने लोगों को गुलाम बनाया है और उन्हें ईश्वर की इच्छानुसार पूर्ण मनुष्य बनने से रोकती हैं। हम अक्सर येसु के मिशन को विनाशकारी मिशन नहीं मानते। हम उन्हें विनाशक के बजाय एक उद्धारकर्ता के रूप में देखते हैं और यह एक सही समझ है। फिर भी, वे दोनों थे बचने वाले और नष्ट करने वाले। उनके लिए लोगों को बचाने के लिए, कुछ वास्तविकताओं को नष्ट करना ज़रूरी है।

येसु जानते थे कि उनका संघर्ष दुष्ट की शक्तियों से था। शैतानी ताकतें वे ताकतें है जो मनुष्य के सम्पूर्ण विनाश में सदा लगी रहती है, और येसु के लिए ऐसी ताकतों को नष्ट करना ज़रूरी था। सभागृह में लोगों ने येसु को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जिनके पास जीवन देने और मृत्यु को हारने का अधिकार है। यही वह अधिकार और शक्ति है जिसे पुनर्जीवित प्रभु हम सभी के साथ साझा करना चाहते हैं, ताकि हम बदले में दुनिया में उनके जीवन देने वाले कार्य में हिस्सा ले सकें, एक ऐसा कार्य जो समय के अंत तक जारी रहता है।

फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत

📚 REFLECTION


In this today's gospel reading, the spirit of an unclean demon shouts at Jesus through the person possessed, ‘Have you come to destroy us?’ The answer to that question is ‘yes’. Jesus had come to destroy all the forces and powers that enslaved people and prevented them from becoming the full human beings that God wants them to be. We don’t always think of Jesus’ mission as having a destructive quality. Quite rightly we think of him as a Saviour rather than as a Destroyer. Yet, he was both. For people to be saved, in the full sense of that word, certain realities have to be destroyed.

Jesus was aware that he was in conflict with forces of evil, forces that had to be overcome and destroyed. The people in the synagogue recognized Jesus as a person of authority and power; His was a life-giving authority and power that worked to destroy the forces of death and destruction. That is the kind of authority and power that the risen Lord wants to share with all of us, so that we in turn can share in his life-giving work in the world, a work that continues until the end of time.

-Fr. Preetam Vasuniya


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Praise the Lord!