वर्ष - 2, पहला सप्ताह, सोमवार

📒 पहला पाठ : 1समुएल 1:1-8

1) एफ्ऱईम के पहाड़ी क्षेत्र के रामतईम में एल्काना नामक सूफ़वंशी मनुष्य रहता था। एल्काना यरोहम का, यरोहम एलीहू का, एलीहू तोहू का ओर तोहू एफ्ऱईमवंशी सूफ़ का पुत्र था।

2) एल्काना के अन्ना और पेनिन्ना नामक दो पत्नियाँ थी। पेनिन्ना के सन्तान थी, किन्तु अन्ना के कोई सन्तान नहीं थी।

3) एल्काना प्रति वर्ष विश्वमण्डल के प्रभु की आराधना करने और उसे बलि चढ़ाने अपने नगर से शिलो जाया करता था। वहाँ एली के दोनों पुत्रों होप़नी और पीनहास प्रभु के याजक थे।

4) एल्काना जिस दिन बलि चढ़ाता था, अपनी पत्नी पेनिन्ना और उसके सब पुत्र-पुत्रियों को मांस का एक-एक अंश दिया करता था;

5) किन्तु वह अन्ना को दो हिस्से देता था, क्योंकि वह अन्ना को प्यार करता था, यद्यपि प्रभु ने उसे बाँझ बनाया था,

6) अन्ना की सौत उसे चिढ़ाने के लिए उसकी निन्दा किया करती थी; क्योंकि प्रभु ने उसे बाँझ बनाया था।

7) प्रति वर्ष यही होता था। जब अन्ना प्रभु के मन्दिर जाती, तो पेनिन्ना उसे उसी तरह चिढ़या करती थी और अन्ना रोती और भोजन करने से इनकार करती थी।

8) उसके पति एल्काना ने उस से कहा, "अन्ना! तुम क्यों रोती हो? क्यों नहीं खाती हो? तुम क्यों उदास हो? क्या मैं तुम्हारे लिए दस पुत्रों से बढ़ कर नहीं हूँ?


📙 सुसमाचार : मारकुस 1:14-20

14) योहन के गिरफ़्तार हो जाने के बाद ईसा गलीलिया आये और यह कहते हुए ईश्वर के सुसमाचार का प्रचार करते रहे,

15) "समय पूरा हो चुका है। ईश्वर का राज्य निकट आ गया है। पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो।"

16) गलीलिया के समुद्र के किनारे से हो कर जाते हुए ईसा ने सिमोन और उसके भाई अन्द्रेयस को देखा। वे समुद्र में जाल डाले रहे थे, क्योंकि वे मछुए थे।

17) ईसा ने उन से कहा, "मेरे पीछे चले आओ। मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊँगा।"

18) और वे तुरन्त अपने जाल छोड़ कर उनके पीछे हो लिये।

19) कुछ आगे बढ़ने पर ईसा ने ज़ेबेदी के पुत्र याकूब और उसके भाई योहन को देखा। वे भी नाव में अपने जाल मरम्मत कर रहे थे।

20) ईसा ने उन्हें उसी समय बुलाया। वे अपने पिता ज़ेबेदी को मज़दूरों के साथ नाव में छोड़ कर उनके पीछे हो लिये।

📚 मनन-चिंतन

आज का सुसमाचार हमें येसु के चार प्रथम शिष्यों की बुलाहट के बारे में बताता है। इन चार में से तीन – पेत्रुस, याकूब और योहन – प्रभु येसु के सब से करीब के तीन शिष्यों के समूह के सदस्य बन गये। कुछ विशेष अवसरों पर येसु सिर्फ इन तीन शिष्यों को ही अपने साथ ले गये थे। रूपान्तरण के समय (देखें - मत्ती 17:1), अधिकारी की बेटी को पुनर्जीवित करने के अवसर (देखें - मारकुस 5:37) पर तथा बारी में प्राणपीड़ा के समय (मत्ती 26:37) ये तीन शिष्य येसु के साथ थे। गलातियों के नाम पत्र में संत पौलुस उन्हें कलीसिया के तीन स्वीकृत स्तंभ कहते हैं (देखें - गलातियों 2: 9)। जिनकी प्रारंभिक कलीसिया में बहुत प्रभावशाली भूमिका थी। प्रभु येसु के बुलावे की उचित प्रतिक्रिया प्रकट करते समय एक व्यक्ति को अपने संबंधों, पेशे और संपत्ति को छोड़ना पड़ता है। याकूब और योहन ने अपने पिता ज़ेबेदी, उनके जाल और नाव को छोड़ दिया। येसु के शिष्य को नये संबंधों को विकसित करना, नये लक्ष्य को स्वीकारना, तथा नयी कार्य-योजना को रूप देना भी चाहिए। यह एक मामूली बाहरी परिवर्तन नहीं है, लेकिन पूरे लक्ष्य, अभिविन्यास और मूल्यों को नवीनीकृत करने की आवश्यकता है। कभी-कभी सब कुछ बदलने की ज़रूरत भी होती है। वे अब मछली पकड़ने वाले नहीं होंगे, बल्कि स्वर्गराज्य के लिए लोगों को पकड़ने वाले। इसमें कोई शक नहीं कि येसु की संगति में रहना ही एक बड़ा सौभाग्य था। येसु स्वयं अपने शिष्यों से कहते हैं, "मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - तुम जो बातें देख रहे हो, उन्हें कितने ही नबी और धर्मात्मा देखना चाहते थे; परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं देखा और तुम जो बातें सुन रहे हो, वे उन्हें सुनना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं सुना" (मत्ति 13:17)। पूरी मानवजाति में शिष्य सबसे भाग्यशाली थे क्योंकि जब ईश्वर पृथ्वी पर एक मनुष्य-शरीर में दिखाई देने लगे, तब वे उनके साथी और मित्र थे। आइए हम कलीसिया की प्रेरितिक वर्चस्व के लिए प्रभु को धन्यवाद दें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Today’s Gospel tells us about the call of the first four disciples of Jesus. Of these four, three were fortunate to the in the inner circle of Jesus’ disciples – Peter, James and John. On certain special occasions only these three disciples were with Jesus. At the time of Transfiguration (cf. Mt 17:1, at the raising of the official’s daughter (cf. Mk 5:37) and at the agony in the garden (Mt 26:37) only these three disciples were with Jesus. St. Paul speaks about them as the three acknowledged pillars of the Church (cf. Gal 2:9) having great standing in the early Church. The proper response to the call involves detachment from everything that one has been attached to, and clinging on to Jesus. They had to leave their relatives, profession and possessions. James and John left their father Zebedee, their nets and the boat. There are new attachments to be developed and concerns to be embraced. It is not about a cosmetic change, but the whole goal, orientation and values need to be renewed or, if need be, even changed. They are not anymore those who catch fish, but those who catch people. No doubt, it is a great privilege to be in the company of Jesus. Jesus himself tells his disciples, “Truly I tell you, many prophets and righteous people longed to see what you see, but did not see it, and to hear what you hear, but did not hear it” (Mt 13:17). The disciples were the most fortunate in all whole humanity because when God appeared in the flesh on the earth, they were his companions and friends. Let us thank the Lord for the apostolicity of the Church.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!