वर्ष - 2, पहला सप्ताह, मंगलवार

📒 पहला पाठ: समुएल का पहला ग्रन्थ 1 :9-20

9) किसी दिन जब अन्ना का परिवार षिलो में भोजन कर चुका था, तो वह उठ कर प्रभु के मन्दिर गयी। उस समय याजक एली मन्दिर के द्वार के पास अपने आसन पर बैठा हुआ था। ।

10) अन्ना दुःखी हो कर प्रभु से प्रार्थना करती थी और आँसू बहाती हुई

11) उसने यह प्रतिज्ञा की, ‘‘विश्वमण्डल के प्रभु! यदि तू अपनी दासी की दयनीय दशा देख कर उसकी सुधि लेगा, यदि तू अपनी दासी को नहीं भुलायेगा और उसे पुत्र प्रदान करेगा, तो मैं उसे जीवन भर के लिए प्रभु को अर्पित करूँगी और कभी उसके सिर पर उस्तरा नहीं चलाया जायेगा।

12) जब वह बहुत देर तक प्रभु से प्रार्थना करती रही, तो एली उसका मुख देखने लगा।

13) और धीमे स्वर से बोलती थी। उसके होंठ तो हिल रहे थे, किन्तु उसकी आवाज नहीं सुनाई दे रही थी। इसलिए एली को लगा कि वह नषे में है।

14) उसने उस से कहा, ‘‘कब तक नषे में रहोगी! जाओ और नषा उतरने दो।’’

15) अन्ना ने यह उत्तर दिया, ‘‘महोदय! ऐसी बात नहीं है। मैं बहुत अधिक दुःखी हूँ। मैंने न तो अंगूरी पी और न कोई दूसरी नशीली चीज़। मैं प्रभु के सामने अपना हृदय खोल रही थी।

16) अपनी दासी को बदचलन न समझें- मैं दुःख और शोक से व्याकुल हो कर इतनी देर तक प्रार्थना करती रही।’’

17) एली ने उस से कहा, ‘‘शान्ति ग्रहण कर जाओ। इस्राएल का प्रभु तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करे!’’

18) इस पर अन्ना यह उत्तर दे कर चली गयी, ‘‘आपकी कृपा- दृष्टि आपकी दासी पर बनी रहे।’’ उसने भोजन किया और उसकी उदासी दूर हो गयी।

19) दूसरे दिन वे सबेरे उठे और प्रभु की आराधना करने के बाद रामा में अपने घर लौट गये। एल्काना का अपनी पत्नी अन्ना से संसर्ग हुआ और प्रभु ने उसे याद किया।

20) अन्ना गर्भवती हो गयी। उसने पुत्र प्रसव किया और यह कह कर उसका नाम समूएल रखा, ‘‘क्योंकि मैंने उस को प्रभु से माँगा है।’’

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 1:21-28

21) ईसा सभागृह गये और शिक्षा देते रहे।

22) लोग उनकी शिक्षा सुनकर अचम्भे में पड़ जाते थे; क्योंकि वे शास्त्रियों की तरह नहीं, बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा देते थे।

23) सभागृह में एक मनुष्य था, जो अशुद्ध आत्मा के वश में था। वह ऊँचे स्वर से चिल्लाया,

24) ’’ईसा नाज़री! हम से आप को क्या? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं- ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।’’

25) ईसा ने यह कहते हुए उसे डाँटा, ’’चुप रह! इस मनुष्य से बाहर निकल जा’’।

26) अपदूत उस मनुष्य को झकझोर कर ऊँचे स्वर से चिल्लाते हुए उस से निकल गया।

27) सब चकित रह गये और आपस में कहते रहे, ’’यह क्या है? यह तो नये प्रकार की शिक्षा है। वे अधिकार के साथ बोलते हैं। वे अशुद्ध आत्माओं को भी आदेश देते हैं और वे उनकी आज्ञा मानते हैं।’’

28) ईसा की चर्चा शीघ्र ही गलीलिया प्रान्त के कोने-कोने में फैल गयी।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में सुनते हैं कि येसु कफ़रनाहुम के सभागृह में प्रवेश करते हैं। जब वे वहाँ प्राधिकार के साथ शिक्षा दे रहे थे तब अशुद्ध आत्मा से पीड़ित एक व्यक्ति चिल्लाने लगा, “ईसा नाज़री! हम से आप को क्या? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं- ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।” इस घटना में कई सच्चाइयाँ हमारे सामने आती हैं। सबसे पहले, शैतान डर के साथ येसु की उपस्थिति को पहचानता है। दूसरी बात, शैतान जानता है कि येसु के पास उसका सर्वनाश करने की शक्ति है। तीसरा, शैतान जानता है कि येसु ईश्वर हैं। ‘परमपावन पुरुष’ एक ऐसा नाम है जो पुराने विधान में ईश्वर के लिए ही उपयोग किया जाता है। संत याकूब कहते हैं, "तुम विश्वास करते हो कि केवल एक ईश्वर है। अच्छा करते हो। दुष्ट आत्मा भी ऐसा विश्वास करते हैं, किन्तु काँपते रहते हैं” (याकूब 2:19)। केवल ज्ञान हमें बचा नहीं सकता। शैतान भी सच्चाई जानता है। हम सत्य को जानते हुए भी उस सत्य को नापसंद या अस्वीकार कर सकते हैं। शैतान सच्चाई जानता है, लेकिन उसे खारिज कर देता है। वह झूठ को सच कहना पसंद करता है। येसु उसे झूठा और झूठ का पिता कहते हैं (देखें – योहन 8:44) क्योंकि वह सच्चाई का विरोध करता है। मोक्ष पाने के लिए, हमें सच्चाई को स्वीकार करने और उसे जीने की आवश्यकता है। हमारा शिष्यत्व बौद्धिक ज्ञान के स्तर पर नहीं रह सकता है, इसे हमें येसु के साथ एक प्रेमपूर्ण संबंध के रूप में विकसित करना चाहिए। आइए हम प्रभु से यह वर मांगें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In today’s Gospel passage we hear about Jesus entering the Synagogue in Capernaum. When he was teaching there with authority a man with an unclean spirit started shouting, “What do you want with us, Jesus of Nazareth? Have you come to destroy us? I know who you are: the Holy One of God!” Many truths come to light in this incident. First of all, the devil recognizes the presence of Jesus with fear. Secondly, the devil is aware that Jesus has the power to destroy him. Thirdly, the devil knows that Jesus is God. ‘Holy One’ is name used for God. St. James says, “You believe that God is one; you do well. Even the demons believe and shudder” (Jam 2:19). Knowledge alone cannot save us. Even the devil knows the truth. We may know the truth, but may dislike or reject that truth. The devil knows the truth, but rejects it. He prefers lies to truth. Jesus calls him a liar and father of lies (cf. Jn 8:44) because he is opposed to the truth. To be saved, we need to accept the truth and live the truth. Our discipleship cannot remain at the level of the intellectual knowledge, it has to grow into a loving union with Jesus. Let us ask the Lord for this grace.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!