वर्ष - 2, पहला सप्ताह, बुधवार

📒 पहला पाठ: समुएल का पहला ग्रन्थ 3 :1-10,19-20

1) युवक समूएल एली के निरीक्षण में प्रभु की सेवा करता था। उस समय प्रभु की वाणी बहुत कम सुनाई पड़ती थी और उसके दर्शन भी दुर्लभ थे।

2) किसी दिन ऐसा हुआ कि एली अपने कमरे में लेटा हुआ था उसकी आँखें इतनी कमज़ोर हो गयी थीं कि वह देख नहीं सकता था।

3) प्रभु का दीपवृक्ष उस समय तक बुझा नहीं था और समूएल प्रभु के मन्दिर में, जहाँ ईश्वर की मंजूषा रखी हुई थी, सो रहा था।

4) प्रभु ने समूएल को पुकारा। उसने उत्तर दिया, ‘‘मैं प्रस्तुत हूँ’’

5) और एली के पास दौड़ कर कहा, ‘‘आपने मुझे बुलाया है, इसलिए आया हूँ।’’ एली ने कहा, ‘‘मैंने तुम को नहीं बुलाया। जा कर सो जाओ।’’ वह लौट कर लेट गया।

6) प्रभु ने फिर समूएल को पुकारा। उसने एली के पास जा कर कहा, ‘‘आपने मुझे बुलाया है, इसलिए आया हूँ।’’ एली ने उत्तर दिया, ‘‘बेटा! मैंने तुम को नहीं बुलाया। जा कर सो जाओ।’’

7) समूएल प्रभु से परिचित नहीं था - प्रभु कभी उस से नहीं बोला था।

8) प्रभु ने तीसरी बार समूएल को पुकारा। वह उठ कर एली के पास गया और उसने कहा, ‘‘आपने मुझे बुलाया, इसलिए आया हूँ।’’ तब एली समझ गया कि प्रभु युवक को बुला रहा है। 9) एली ने समूएल से कहा, ‘‘जा कर सो जाओ। यदि तुम को फिर बुलाया जायेगा, तो यह कहना, ‘प्रभु! बोल तेरा सेवक सुन रहा है।’ समूएल गया और अपनी जगह लेट गया।

10) प्रभु उसके पास आया और पहले की तरह उसने पुकारा, ‘‘समूएल! समूएल!’’ समूएल ने उत्तर दिया, ‘‘बोल, तेरा सेवक सुन रहा है।’’

19) समूएल बढ़ता गया, प्रभु उसके साथ रहा और उसने समूएल को जो वचन दिया थे, उन में से एक को भी मिट्टी में नहीं मिलने दिया

20) और दान से ले कर बएर-षेबा तक समस्त इस्राएल यह जान गया कि समूएल प्रभु का नबी प्रमाणित हो गया है।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 1:29-39

29) वे सभागृह से निकल कर याकूब और योहन के साथ सीधे सिमोन और अन्द्रेयस के घर गये।

30) सिमोन की सास बुख़ार में पड़ी हुई थी। लोगों ने तुरन्त उसके विषय में उन्हें बताया।

31) ईसा उसके पास आये और उन्होंने हाथ पकड़ कर उसे उठाया। उसका बुख़ार जाता रहा और वह उन लोगों के सेवा-सत्कार में लग गयी।

32) सन्ध्या समय, सूरज डूबने के बाद, लोग सभी रोगियों और अपदूतग्रस्तों को उनके पास ले आये।

33) सारा नगर द्वार पर एकत्र हो गया।

34) ईसा ने नाना प्रकार की बीमारियों से पीडि़त बहुत-से रोगियों को चंगा किया और बहुत-से अपदूतों को निकाला। वे अपदूतों को बोलने से रोकते थे, क्योंकि वे जानते थे कि वह कौन हैं।

35) दूसरे दिन ईसा बहुत सबेरे उठ कर घर से निकले और किसी एकान्त स्थान जा कर प्रार्थना करते रहे।

36) सिमोन और उसके साथी उनकी खोज में निकले

37) और उन्हें पाते ही यह बोले, ’’सब लोग आप को खोज रहे हैं’’।

38) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, ’’हम आसपास के कस्बों में चलें। मुझे वहाँ भी उपदेश देना है- इसीलिए तो आया हूँ।’’

39) और वे उनके सभागृहों में उपदेश देते और अपदूतों को निकलाते हुए सारी गलीलिया में घूमते रहते थे।

📚 मनन-चिंतन

आज का सुसमाचार येसु के सार्वजनिक कार्यों के दौरान एक दिन को दर्शाता है। सुबह-सुबह वे प्रार्थना करने के लिए एकांत स्थान पर जाते हैं। वहाँ वे स्वर्गिक पिता के प्रेम का अनुभव करते हैं और उनकी योजना को समझ लेते हैं। अपनी प्रार्थना के दौरान उन्हें अपने सार्वजनिक कार्यों के लिए अनुदेश, दिशानिर्देश और शक्ति प्राप्त होती है। वे सार्वजनिक मांगों और लोकप्रियता की मांग के सामने अपने मार्ग से कभी विचलित नहीं होते हैं। वे बस अपने पिता द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करते हैं। वे कभी भी अपने सामने निर्धारित लक्ष्य से नहीं भटकते हैं। इसीलिए जब उन्हें बताया गया कि सभी लोग उन्हें ढूंढ रहे हैं, उन्हें देखने के लिए खोज रहे हैं, तब उन्होंने कहा, “हम आसपास के कस्बों में चलें। मुझे वहाँ भी उपदेश देना है- इसीलिए तो आया हूँ"। वे देर शाम तक कड़ी मेहनत करते हैं। वे पूरे दिन व्यस्त रहते हैं। वे आगे बढ़ते जाते हैं। वे एक के बाद एक काम हाथ में लेते हैं। फिर भी वे काम के पीछे अपने पिता को नहीं भूलते हैं, लेकिन वे स्वर्गिक पिता की इच्छा को पूरा करता है। आइए हम ईश्वर की बात सुनने और उनकी आज्ञा मानने में येसु का अनुकरण करें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Today’s Gospel depicts a typical day during the public ministry of Jesus. Early in the morning he goes off to a lonely place to pray. There he experiences the love of the Heavenly Father and discerns his plan for him. During his prayer he receives directions, guidelines and strength to perform his ministry. He does not get diverted by public demands and popularity seeking. He simply follows the path marked out by his Father. He never goes astray from the goal set before him. That is why when he was told that all people were searching for him, instead of going to see them, he said, “Let us go elsewhere to the neighbouring country towns so that I can proclaim the message there too, because that is why I came”. He works hard until late evenings. His days are hectic. He moves on and on. He takes up one task after another. Yet he is not workaholic, but he simply fulfills the will of the Heavenly Father. Let us imitate Jesus in this – by listening to and obeying God.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!