वर्ष - 2, पहला सप्ताह, शुक्रवार

📒 पहला पाठ: समुएल का पहला ग्रन्थ 8 :4-7,10-22a

4) इस्राएल के सब नेता इकट्ठे हो गये और रामा में समूएल के पास आये।

5) उन्होंने उससे कहा, ‘‘आप बूढ़े हो गये हैं और आपके पुत्र आपके मार्ग का अनुसरण नहीं करते। इसलिए आप हमारे लिए एक राजा नियुक्त करें, जो हम पर शासन करें, जैसा कि सब राष्ट्रों में होता है।‘‘

6) उनका यह निवेदन कि आप हमारे लिए एक राजा नियुक्त करें, जो हम पर शासन करें, समूएल को अच्छा नहीं लगा और उसने प्रभु से प्रार्थना की।

7) प्रभु ने समूएल से कहा, ‘‘लोगो की हर माँग पूरी करो, क्योंकि वे तुम को नहीं, बल्कि मुझ को अस्वीकार कर रहे हैं। वे नहीं चाहते कि मैं उनका राजा बना रहूँ।

10) जिन लोगों ने समूएल से एक राजा की माँग की थी, समूएल ने उन्हें प्रभु की सारी बातें बता दीं।

11) उसने कहा, ‘‘जो राजा तुम लोगो पर शासन करेंगे, वह ये अधिकार जतायेंगे: वह तुम्हारे पुत्रों को अपने रथों तथा घोड़ों की सेवा में लगायेंगे और अपने रथ के आगे-आगे दौड़ायेंगे।

12) वह उन्हें अपनी सेना के सहस्रपति तथा पंचाषतपति के रूप में नियुक्त करेंगे, उन से अपने खेत जुतवायेंगे, अपनी फ़सल कटवायेंगे और हथियार तथा युद्ध-रथों का सामान बनवायेंगे।

13) वह मरहम तैयार करने, भोजन पकाने और रोटियाँ सेंकने के लिए तुम्हारी पुत्रियों की माँग करेंगे।

14) वह तुम्हारे सर्वोत्तम खेत, दाखबारियाँ और जैतून के बाग़ तुम से छीन कर अपने सेवकों को प्रदान करेंगे।

15) वह तुम्हारी फ़सल और दाख़बारियों की उपज का दशमांश लेंगे और उसे अपने दरबारियों तथा सेवको को देदेंगे।

16) वह तुम्हारे दास-दासियों को, तुम्हारे युवकों और तुम्हारे गधों को भी अपने ही काम में लगादेंगे।

17) वह तुम्हारी भेड़-बकरियों का दशमांश लेंगे और तुम लोग भी उनके दास बनोगे।

18) उस समय तुम अपने राजा के कारण, जिसे तुमने स्वयं चुना होगा, प्रभु की दुहाई दोगे, किन्तु उस दिन प्रभु तुम्हारी एक भी नहीं सुनेगा।’’

19) लोगों ने समूएल का अनुरोध अस्वीकार करते हुए कहा, ‘‘हमें एक राजा चाहिए!

20) तब हम सब अन्य राष्ट्रों के सदृश होंगे। हमारे राजा हम पर शासन करेंगे और युद्ध के समय हमारा नेतृत्व करेंगे।’’

21) समूएल ने लोगों का निवेदन सुन कर प्रभु को सुनाया और

22) उसने उत्तर दिया, ‘‘उनकी बात मान लो ओर उनके लिए एक राजा नियुक्त करो।’’

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 2:1-12

1) जब कुछ दिनों बाद ईसा कफ़रनाहूम लौटे, तो यह खबर फैल गयी कि वे घर पर हैं

2) और इतने लोग इकट्ठे हो गये कि द्वार के सामने जगह नहीं रही। ईसा उन्हें सुसमाचार सुना ही रहे थे कि

3) कुछ लोग एक अद्र्धांगरोगी को चार आदमियों से उठवा कर उनके पास ले आये।

4) भीड़ के कारण वे उसे ईसा के सामने नहीं ला सके; इसलिए जहाँ ईसा थे, उसके ऊपर की छत उन्होंने खोल दी और छेद से अद्र्धांगरोगी की चारपाई नीचे उतार दी।

5) ईसा ने उन लोगों का विश्वास देख कर अद्र्धांगरोगी से कहा, ’’बेटा! तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं’’।

6) वहाँ कुछ शास्त्री बैठे हुए थे। वे सोचते थे- यह क्या कहता है?

7) यह ईश-निन्दा करता है। ईश्वर के सिवा कौन पाप क्षमा कर सकता है?

8) ईसा को मालूम था कि वे मन-ही-मन क्या सोच रहे हैं। उन्होंने शास्त्रियों से कहा, ’’मन-ही-मन क्या सोच रहे हो?

9) अधिक सहज क्या है- अद्र्धांगरोगी से यह कहना, ’तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं’, अथवा यह कहना, ’उठो, अपनी चारपाई उठा कर चलो-फिरो’?

10) परन्तु इसलिए कि तुम लोग यह जान लो कि मानव पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार मिला है’’- वे अद्र्धांगरोगी से बोले-

11) ’’मैं तुम से कहता हूँ, उठो और अपनी चारपाई उठा कर घर जाओ’’।

12) वह उठ खड़ा हुआ और चारपाई उठा कर तुरन्त सब के देखते-देखते बाहर चला गया। सब-के-सब बड़े अचम्भे में पड़ गये और उन्होंने यह कहते हुए ईश्वर की स्तुति की- हमने ऐसा चमत्कार कभी नहीं देखा।

📚 मनन-चिंतन

आम तौर पर हम देखते हैं कि प्रभु येसु किसी को चंगाई प्रदान करने के लिए या कुछ विशेष अनुग्रह देने के लिए उस व्यक्ति के विश्वास की माँग करता है। संत पौलुस भी विश्वास मांगता है। प्रेरित-चरित 14: 9-10 में हम उस व्यक्ति के बारे में पढ़ते हैं जो जन्म से लंगडा था। बाइबल कहती है, “पौलुस ने उस पर दृष्टि गड़ायी और उस में स्वस्थ हो जाने योग्य विश्वास देख कर ऊँचे स्वर में कहा, "उठो और अपने पैरों पर खड़े हो जाओ"। वह उछल पड़ा और चलने-फिरने लगा।” जो ठीक होना चाहता है उसका विश्वास एक आवश्यकता प्रतीत होती है। लेकिन मारकुस 2 में लकवाग्रस्त व्यक्ति के उपचार के वर्णन में, सुसमाचार लेखक हमें बताता है कि जो लोग लकवाग्रस्त आदमी को येसु के पास ले गए, उनका विश्वास देखकर उन्होंने लकवाग्रस्त व्यक्ति को चंगा किया। येसु ने कनानी महिला के विश्वास की सराहना की और और उसी के आधार पर उसकी बेटी को चंगा किया जो दुरात्मा से पीड़ित थी। इन घटनाओं से पता चलता है कि हमारा विश्वास हमें और दूसरों को ईश्वर की कृपा पाने में मदद कर सकता है।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Normally we see that Jesus demands faith from the one to be cured or from the one who wants some special grace. St. Paul too demands faith. In Acts 14:9-10 we read about the healing of a man crippled from birth. The Bible says, “Paul, looking at him intently and seeing that he had faith to be healed, said in a loud voice, “Stand upright on your feet.” And the man sprang up and began to walk. ” Faith of the one who is to be cured seems to be a requirement. But in the description of the healing of the paralyzed man in Mark 2, the evangelist tells us that seeing the faith of those who carried the paralysed man to Jesus, he healed the paralytic man. Jesus appreciated and admired the faith of the Cannanite woman and healed her daughter who was possessed by the evil spirit. These incidents show that our faith can help us and others to receive the graces of God.

-Fr. Francis Scaria


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