वर्ष - 2, पहला सप्ताह, शुक्रवार

📒 पहला पाठ: समुएल का पहला ग्रन्थ 9:1-4,17-19,10 1a

1) बेनयामीन प्रान्त में कीष नामक एक धनी मनुष्य रहता था। वह अबीएल का पुत्र था। अबीएल सरोर का, सरोर बकोरत का और बकोरत अफ़ीअह का पुत्र था।

2) कीष के साऊल नामक एक नौजवान और सुन्दर पुत्र था। इस्राएलियों में साऊल से सुन्दर कोई सुन्दर नहीं था। वह इतना लम्बा था कि उसका सिर और उसके कन्धे दूसरे लोगों के ऊपर हो जाते थे।

3) किसी दिन साऊल के पिता कीष की गदहियाँ भटक गयी थीं। उसने अपने पुत्र साऊल से कहा, ‘‘किसी नौकर के साथ गदहियों को खोजने जाओ।’’

4) साऊल ने एफ्ऱईम का पहाड़ी प्रदेश और शालिषा प्रान्त पार किया, किन्तु गदहियों का पता नहीं चला। इसके बाद वे शआलीम प्रदेश और बेनयामीन प्रदेश पार कर गये, किन्तु वहाँ भी गदहियाँ का पता नहीं चला।

17) समूएल ने जैसे ही साऊल को देखा, प्रभु ने उसे यह सूचना दी, ‘‘यह वही है, जिसके विषय में मैं तुमसे कह चुका हूँ। यही मेरी प्रजा का शासन करेगा।’’

18) साऊल ने फाटक पर समूएल के पास आ कर कहा, ‘‘कृपया मुझे यह बता दें कि दृष्टा का घर कहाँ है?’’

19) समूएल ने साऊल को उत्तर दिया, ‘‘मैं ही दृष्टा हूँ। मेरे आगे पहाड़ी पर चढों - तुम आज मेरे साथ भोजन करोगे मैं कल सबेरे तुम्हें विदा करूँगा और तुम जिसके बारे में चिन्ता कर रहे हो, वह भी तुम्हें बताऊँगा।

1) समूएल ने तेल की शीषी ले कर उसे साऊल के सिर पर उँढे़ला।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 2:13-17

13) ईसा फिर निकल कर समुद्र के तट गये। सब लोग उनके पास आ गये और ईसा ने उन्हें शिक्षा दी।

14) रास्ते में ईसा ने अलफ़ाई के पुत्र लेवी को चुंगीघर में बैठा हुआ देखा और उस से कहा, ’’मेरे पीछे चले आओ’’, और वह उठ कर उनके पीछे हो लिया।

15) एक दिन ईसा अपने शिष्यों के साथ लेवी के घर भोजन पर बैठे। बहुत-से नाकेदार और पापी उनके साथ भोजन कर रहे थे, क्योंकि वे बड़ी संख्या में ईसा के अनुयायी बन गये थे।

16) जब फ़रीसी दल के शास्त्रियों ने देखा कि ईसा पापियों और नाकेदारों के साथ भोजन कर रहे हैं, तो उन्होंने उनके शिष्यों से कहा, ’’ वे नाकेदारों और पापियों के साथ क्यों भोजन करते हैं?’’

17) ईसा ने यह सुन कर उन से कहा, ’’निरोगियों को नहीं, रोगियों को वैद्य की ज़रूरत होती है। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।’’

📚 मनन-चिंतन

इस दुनिया में येसु के जीवन काल में नाकेदार समाज में अलोकप्रिय व्यक्ति थे। इस तथ्य के कारण उन्हें रोमन प्रशासन के साथ सहयोगियों के रूप में देखा जाता था। उन्होंने रोमन सम्राट के लिए लोगों से करों का संग्रह किया, साथ ही अपने लिए एक अतिरिक्त राशि भी एकत्र की। चूँकि वे बहुत पैसा लोगों से वसूल करते थे और रोमियों का साथ देते थे, लोग उन्हें नापसंद करते थे और कई लोग उन्हें पापी करार देते थे। फरीसी और सदूकी नाकेदारों को घृणा के दृष्टिकोण से देखते थे। प्रभु येसु ने नाकेदार लेवी या मत्ती को शिष्य बनने के लिए बुलाया और उन्होंने येसु के निमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया। अपने आनंद में उन्होंने अपने सभी दोस्तों के साथ येसु को भोजन पर आमंत्रित किया। जब शास्त्रियों और फरीसियों ने कर संग्राहकों के साथ खाने के लिए येसु की आलोचना की, तब येसु ने कहा, “निरोगियों को नहीं, रोगियों को वैद्य की ज़रूरत होती है। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।” येसु उन लोगों को नहीं बचाते जो स्वयं को ईमानदार कहते हैं। दूसरे शब्दों में, जो अपने आप को ईमानदार मानते हैं, उन्हें येसु नहीं बचाते हैं। वे उन लोगों को बचाते हैं जो पापी होने का एहसास करते और उन्हें स्वीकार करते हैं। येसु शास्त्रियों और फरीसियों की मदद नहीं कर सकते थे क्योंकि उन्हें कभी येसु की मदद की जरूरत महसूस नहीं हुई। येसु उनके पापों को माफ नहीं कर सकते थे, क्योंकि उन्होंने खुद को पापी के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया था। वे अपने आप को धार्मिक मानते थे। आइए हम खुद को ईश्वर की कृपा के योग्य होने के लिए नम्र बनाएं।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Tax collectors were unpopular individuals in society, due to the fact they were seen as siding with the Roman administration. They collected taxes from the people for the Roman emperor, with an added amount collected for themselves. Since they extorted a lot of money and sided with the Romans, the people disliked them and many branded them as sinners. The Pharisees and the Scribes looked down upon the tax collectors. Jesus calls Matthew, the Tax Collector to be a disciple and he readily accepted the invitation. In his joy he invited Jesus to a dinner with all his friends. When the scribes and Pharisees criticized Jesus for eating with the tax collectors, Jesus said, “It is not the healthy who need the doctor, but the sick. I came to call not the upright, but sinners.” Jesus does not save those who think that they are upright. He saves those who are aware of their sinfulness. Jesus could not help the scribes and Pharisees because they never felt the need to be helped. Jesus could not forgive their sins, because they never accepted themselves as sinners. They were self-righteous people. Let us humble ourselves to be worthy of God’s grace.

-Fr. Francis Scaria


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!