वर्ष - 2, दूसरा सप्ताह, मंगलवार

📒 पहला पाठ: समुएल का पहला ग्रन्थ 16:1-13

1) प्रभु ने समूएल से कहा, ‘‘तुम कब तक उस साऊल के कारण शोक मनाते रहोगे, जिसे मैंने इस्राएल के राजा के रूप में अस्वीकार किया है? तुम सींग में तेल भर कर जाओ। मैं तुम्हें बेथलेहेम-निवासी यिशय के यहाँ भेजता हूँ, क्योंकि मैंने उसके पुत्रों में एक को राजा चुना है।"

2) समूएल ने यह उत्तर दिया, ‘‘मैं कैसे जा सकता हूँ? साऊल को इसका पता चलेगा और वह मुझे मार डालेगा।’’ इस पर प्रभु ने कहा, ‘‘अपने साथ एक कलोर ले जाओ और यह कहो कि मैं प्रभु को बलि चढ़ाने आया हूँ।

3) यज्ञ के लिए यिशय को निमन्त्रण दो। मैं बाद में तुम्हें बताऊँगा कि तुम्हें क्या करना है- मैं जिसे तुम्हें दिखाऊँगा, उसी को मेरी ओर से अभिशेक करोगे।’’

4) प्रभु ने जो कहा था, समूएल ने वही किया। जब वह बेथलेहेम पहुँचा, तो नगर के अधिकारी घबरा कर उसके पास दौडे़ आये और बोले, ‘‘कैसे पधारे? कुशल तो है?’’

5) समूएल ने कहा, ‘‘सब कुशल है। मैं प्रभु को बलि चढ़ाने आया हूँ। अपने को शुद्ध करो और मेरे साथ बलि चढ़ाने आओ।’’ उसने यिशय और उसके पुत्रों को शुद्ध किया और उन्हें यज्ञ के लिए निमन्त्रण दिया।

6) जब वे आये और समूएल ने एलीआब को देखा, तो वह यह सोचने लगा कि निश्चय ही यही ईश्वर का अभिषिक्त है।

7) परन्तु ईश्वर ने समूएल से कहा, ‘‘उसके रूप-रंग और लम्बे क़द का ध्यान न रखो। मैं उसे नहीं चाहता। प्रभु मनुष्य की तरह विचार नहीं करता। मनुष्य तो बाहरी रूप-रंग देखता है, किन्तु प्रभु हृदय देखता है।’’

8) यिशय ने अबीनादाब को बुला कर उसे समूएल के सामने उपस्थित किया। समूएल ने कहा, ‘‘प्रभु ने उसे को भी नहीं चुना।’’

9) तब यिशय ने शम्मा को उपस्थित किया, किन्तु समूएल ने कहा, ‘‘प्रभु ने उस को भी नहीं चुना।’’

10) इस प्रकार यिशय ने अपने सात पुत्रों को समूएल के सामने उपस्थित किया। किन्तु समूएल ने यिशय से कहा, ‘‘प्रभु ने उन में किसी को भी नहीं चुना।’’

11) उसने यिशय से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे पुत्र इतने ही है? ’’यिशय ने उत्तर दिया, ‘‘सब से छोटा यहाँ नहीं है। वह भेडे़ चरा रहा है।‘‘ तब समूएल ने यिशय से कहा, ‘‘उसे बुला भेजो। जब तक वह नहीं आयेगा, हम भोजन पर नहीं बैठेंगे।’’

12) इसलिए यिशय ने उसे बुला भेजा। लड़के का रंग गुलाबी, उसकी आँखें सुन्दर और उसका शरीर सुडौल था। ईश्वर ने समूएल से कहा, ‘‘उठो, इसका अभिशेक करो। यह वही है।’’

13) समूएल ने तेल का सींग हाथ में ले लिया और उसके भाइयों के सामने उसका अभिशेक किया। ईश्वर का आत्मा दाऊद पर छा गया और उसी दिन से उसके साथ विद्यमान रहा। समूएल लौट कर रामा चल दिया।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 2:23-28

23) ईसा किसी विश्राम के दिन गेहूँ के खे़तों से हो कर जा रहे थे। उनके शिष्य राह चलते बालें तोड़ने लगे।

24) फ़रीसियों ने ईसा से कहा, ’’देखिए, जो काम विश्राम के दिन मना है, ये क्यों वही कर रहे हैं?’’

25) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, ’’क्या तुम लोगों ने कभी यह नहीं पढ़ा कि जब दाऊद और उनके साथी भूखे थे और खाने को उनके पास कुछ नहीं था, तो दाऊद ने क्या किया था?

26) उन्होंने महायाजक अबियाथार के समय ईश-मन्दिर में प्रवेश कर भेंट की रोटियाँ खायीं और अपने साथियों को भी खिलायीं। याजकों को छोड़ किसी और को उन्हें खाने की आज्ञा तो नहीं थी।’’

27) ईसा ने उन से कहा, ’’विश्राम-दिवस मनुष्य के लिए बना है, न कि मनुष्य विश्राम-दिवस के लिए।

28) इसलिए मानव पुत्र विश्राम-दिवस का भी स्वामी है।’’

📚 मनन-चिंतन

धार्मिक प्रथाओं सहित किसी भी प्रकार के मानव व्यवहार या प्रथा से प्रभु ईश्वर को कोई लाभ नहीं होता है। धर्म मनुष्य के लिए है कि वह अपने जीवन के लिए समझदार लक्ष्य और मूल्य प्रणाली रख सकें। ईश्वर सभी लोगों की भलाई चाहते हैं। ईश्वर केवल एक है। कोई ईसाई ईश्वर, हिंदू ईश्वर या इस्लामी ईश्वर नहीं है। ईश्वर सभी का कल्याण चाहते हैं। वे नहीं चाहते कि कोई भी भूखा, प्यासा, बीमार या परेशानी में रहे। वे चाहते हैं कि सभी लोगों का जीवन आरामदायक और शांतिप्रद हो। येसु के प्रचार के विषय, ईश्वर के राज्य का सारांश भी यही था। प्रभु ने मानव को प्रभु के दिन को पवित्र रखने की आज्ञा दी। वह विश्राम का दिन है। यह कानून मानव के कल्याण के लिए बनाया गया था। हम किसी भी तरह से ईश्वर के नाम पर विभिन्न धार्मिक प्रथाओं को शुरू करके ईश्वर की महानता में कुछ नहीं जोड़ सकते हैं। विश्राम दिवस के आचरण की आज्ञा लोगों को परेशान करने की आज्ञा नहीं थी, बल्कि लोगों को आराम और विश्राम देने के लिए थी। येसु के समय के कुछ निष्ठावान धर्मगुरुओं ने विश्राम दिवस के आचरण के लिए कई नियम बनाये और प्रतिबंध लगाए। वे लोगों के लिए सहायक नहीं थे, लेकिन उन्होंने उनके जीवन को दयनीय बना दिया। हमें अपने नियमों और विनियमों की जांच करने और उन पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है कि क्या वे ईश्वर और पड़ोसी को प्यार करने में सहायक हैं या नहीं।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

God does not benefit from human practices of any kind including religious practices. Religion is meant for human beings to have sensible goal and a value system for their lives. God wills the good of all. There is only one God. There is no Christian God, Hindu God or Islamic God. God wants the welfare of everyone. He does not want any one to remain hungry, thirsty, sick or in trouble. He wants everyone to have a comfortable, peaceful and joyful life. That is the logic of the Kingdom of God, the theme of Jesus’ preaching. The Lord commanded human beings to keep the Sabbath holy. That is a day of rest – a day to rest in God, to breathe the goodness of God. This law was made for the welfare of the human beings. We cannot add in any way to the greatness of God by introducing various new religious practices in the name of God. Sabbath was not meant to be a law to trouble the people of God, but was meant to give rest and relaxation to God’s people. Some of the scrupulous religious leaders of Jesus’ time introduced too many regulations and restrictions for the practice of the Sabbath. They were not helpful to people but made their lives difficult and at times miserable. We need to examine and reconsider our rules and regulations as to whether they are helpful in loving God and the neighbor.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!