वर्ष - 2, दूसरा सप्ताह, शुक्रवार

📒 पहला पाठ: समुएल का पहला ग्रन्थ 24:3-21

3) वह रास्ते के किनारे भेड़-बाड़ों के पास पहुँचा। वहाँ एक गुफा थी और साऊल शौच करने के लिए उस में घुस गया।

4) दाऊद और उसके साथी उस गुफा के भीतरी भाग में बैठे हुए थे।

5) दाऊद के साथियों ने उस से कहा, ‘‘वह दिन आ गया है, जिसके विषय में प्रभु ने आप से कहा था - मैं तुम्हारे शत्रु को तुम्हारे हवाले कर देता हूँ; उसके साथ वही करो, जो तुम्हें उचित लगे।’’ दाऊद ने उठ कर चुपके से साऊल के वस्त्र का टुकड़ा काट दिया।

6) दाऊद का हृदय धड़कने लगा, क्योंकि उसने साऊल के वस्त्र का टुकड़ा काट दिया

7) और उसने अपने साथियों से कहा, ‘‘प्रभु यह न होने दे कि मैं अपने स्वामी, प्रभु के अभिषिक्त पर हाथ डालूँ; क्योंकि प्रभु ने उनका अभिशेक किया है।’’

8) दाऊद ने यह कहते हुए अपने साथियों को रोका और उन्हें साऊल पर आक्रमण करने नहीं दिया। साऊल उठ कर गुफा से बाहर निकला और अपने रास्ते चला गया।

9) दाऊद भी गुफा से निकला और उसने साऊल से पुकार कर कहा, ‘‘मेरे स्वामी, ‘‘मेरे स्वामी, मेरे राजा!’’ साऊल ने मुड़ कर देखा और दाऊल ने मुँह के बल गिर कर उसे दण्डवत् किया।

10) तब दाऊद ने साऊल से कहा, ‘‘आप क्यों उन लोगों की बात सुनते हैं, जो कहते हैं कि दाऊद आपकी हानि करना चाहता है?

11) आपने आज अपनी आँखों से देखा कि प्रभु ने आज गुफा में आप को मेरे हवाले कर दिया था और मेरे साथी चाहते थे कि मैं आपको मारूँ। किन्तु मैंने यह कहते हुए आप को बचाया, ‘मैं अपने स्वामी पर हाथ नहीं डालूँगा, क्योंकि वह प्रभु के अभिषिक्त हैं।’

12) देखिए, पिताजी! अपने वस्त्र का टुकड़ा मेरे हाथ में देखिए। मैंने आपके वस्त्र का टुकड़ा तो काट दिया, किन्तु आप को नहीं मारा- इस से यह जान लीजिए कि मुझ में न तो आपकी बुराई करने का विचार है और न विश्वासघात। मैंने आपके साथ कोई अन्याय नहीं किया, फिर भी आप मेरे प्राण लेने पर उतारू हैं।

13) प्रभु हम दोनों का न्याय करे। प्रभु आप को मेरा बदला चुकाये। मैं आप पर हाथ नहीं डालूँगा।

14) यह पुरानी कहावत है- बुरे लोगों से ही बुराई पैदा होती है। इसलिए मैं आप पर हाथ नहीं डालूँगा।

15) इस्राएल के राजा जिस से लड़ने निकले? आप किसका पीछा कर रहे हैं? मरे हुए कुत्ते का या किसी पिस्सू का?

16) प्रभु निर्णय देगा और हम दोनों का न्याय करेगा। वह विचार करे, मेरा पक्ष ले और मुझे आपके हाथों से छुड़ा कर न्याय दिलाये।’’

17) जब दाऊद साऊल से यह सब बातें कह चुका था, तो साऊल ने कहा, ‘‘दाऊद बेटा! क्या यह तुम्हारी आवाज़ है?’’ इसके बाद साऊल फूट-फूट कर रोने लगा

18) और दाऊद से बोला, ‘‘न्याय तुमहारे पक्ष में है। तुमने मेरे साथ भलाई और मैंने तुम्हारे साथ बुराई की है।

19) तुमने आज इसका प्रमाण दिया कि तुम मेरी भलाई चाहते हो। प्रभु ने मुझे तुम्हारे हवाले कर दिया था और तुमने मुझे नहीं मारा।

20) जब शत्रु वश में आ गया हो, तो कौन उसे यों ही जाने देता है? तुमने आज मेरे साथ जो भलाई की है, प्रभु तुम को उसका बदला चुकाये।

21) अब मैं जान गया हूँ कि तुम अवश्य राजा बन जाओगे और तुम्हारे राज्यकाल में इस्राएल फलेगा -फूलेगा।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 3:13-19

13) ईसा पहाड़ी पर चढ़े। वे जिन को चाहते थे, उन को उन्होंने अपने पास बुला लिया। वे उनके पास आये

14 (14-15) और ईसा ने उन में से बारह को नियुक्त किया, जिससे वे लोग उनके साथ रहें और वह उन्हें अपदूतों को निकालने का अधिकार दे कर सुसमाचार का प्रचार करने भेज सकें।

16) ईसा ने इन बारहों को नियुक्त किया- सिमोन को, जिसका नाम उन्होंने पेत्रुस रखा;

17) ज़ेबेदी के पुत्र याकूब और उसके भाई योहन को, जिनका नाम उन्होंने बोआनेर्गेस अर्थात् गर्जन के पुत्र रखा;

18) अन्दे्रयस, फिलिप, बरथोलोमी, मत्ती, थोमस, अलफ़ाई के पुत्र याकूब, थद्देयुस और सिमोन को, जो उत्साही कहलाता है;

19) और यदूस इसकारियोती को, जिसने ईसा को पकड़वाया।

📚 मनन-चिंतन

येसु को पवित्र ग्रन्थ में ’दाऊद का पुत्र’ कहा गया है। बाइबिल में राजा दाऊद की विशालता प्रदर्शित की गई है। आज के पहले पाठ में हम देखते हैं कि राजा साऊल दाऊद को मारने के लिए ताक में रहता था। जब साऊल दाऊद को मारने के लिए खोज रहा था, तो दाऊद को प्रतिशोध लेने और उसे आसानी से मारने का एक मौका मिला। लेकिन दाऊद इश्वर पर भरोसा रखने वाले तथा ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करने वाला व्यक्ति थे। उन्होंने साऊल को सब से पहले प्रभु के अभिषिक्त के रूप में देखा, उसके बाद ही एक खतरनाक व्यक्ति के रूप में देखा। साऊल उन्हें मारने की कोशिश कर रहे थे। दाऊद ईर्ष्या या क्रोध से प्रेरित होकर नहीं, बल्कि साऊल को ईश्वर से प्राप्त अभिषेक को ध्यान में रखते हुए व्यवहार करते हैं। दाऊद ने साऊल की मृत्यु तक इस दृष्टिकोण को बनाए रखा। दाऊद साऊल को मार डाल कर राजसत्ता संभालने के इच्छुक नहीं थे। दाऊद हमेशा इस्राएल का राजा बनने के लिए ईश्वर का आभारी था। 2 शमूएल 19: 18-30 में, हम देखते हैं कि दाऊद ने गेरा के पुत्र शिमई पर दया करके उसे क्षमा कर दिया, जिसने उसका अपमान किया था और उनको शाप दिया था। दाऊद ने राजा शाऊल के परिवार के सदस्यों के साथ भी दयामय व्यवहार किया। दाऊद हमेशा इस्राएल का राजा बनने के लिए ईश्वर का आभारी था। ईर्ष्यालु व्यक्ति कृतज्ञ नहीं हो सकता और न बढ़ सकता है। हम भी इस बुराई से दूर रखने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Jesus is known as the Son of David. The magnanimity of David is displayed in the Bible. In today’s first reading we see that King Saul was looking for David to kill him. While Saul was searching for David to kill him, David himself got an opportunity to retaliate and kill him very easily, if he wanted. But David was a God-fearing man. He saw Saul first as an anointed one of the Lord, only then as a dangerous man seeking to kill him. David was not carried away by jealousy or anger but by consideration of Saul as an anointed one of the Lord. This viewpoint he maintained until the death of Saul. David never desired to take over kingship by killing Saul. In 2Samuel 19:18-30, we see that David mercifully forgave Shimei son of Gera who had insulted and cursed him. He also dealt kindly with the family members of King Saul. David was always grateful to God for raising him up to be the king of Israel. A jealous person cannot be grateful and cannot grow.

-Fr. Francis Scaria


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