वर्ष - 2, दूसरा सप्ताह, शनिवार

पहला पाठ: समुएल का दुसरा 1:1-4,11-12, 19:23-27

1) साऊल की मृत्यु के बाद दाऊद ने अमालेकियों को हरा कर सिकलग में दो दिन बिताये।

2) तीसरे दिन साऊल के शिविर से एक आदमी आया। उसके कपडे़ फटे हुए थे और वह सिर पर मिट्टी डाले हुए था। उसने दाऊद के पास पहॅुँचने पर मुँह के बल गिर कर उसे दण्डवत् किया।

3) दाऊद ने उस से कहा, ‘‘कहाँ से आ रहे हो?’’ उसने उत्तर दिया, ‘‘मैं इस्राएलियों के शिविर से भाग निकला हूँ।’’ दाऊद ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ मुझे बताओ!’’

4) उसने कहा, ‘‘सेना रणभूमि से भाग गयी और बहुत-से लोग मर गये। साऊल और उसके पुत्र योनातान की भी मृत्यु हो गयी है।’’

11) दाऊद ने अपने कपड़े फाड़ डाले और उसके साथ के सब लोगों ने ऐसा ही किया।

12) वे विलाप करने और रोने लगे; क्योंकि साऊल, उसका पुत्र योनातान और ईश्वर की प्रजा, इस्राएल का घराना, ये सब तलवार के घाट उतार दिये गये थे और उन्होंने शाम तक उपवास किया।

23) क्या मैं आज यह निश्चिित रूप से नहीं जानता कि मैं इस्राएल का राजा हूँ?’’

24) राजा ने शिमई से कहा,‘‘तुम्हें मृत्युदण्ड नहीं मिलेगा’’ और राजा ने शपथ खा कर उस से यह प्रतिज्ञा की।

25) साऊल का पौत्र मफ़ीबोशेत भी राजा से मिलने आया। राजा के जाने के दिन से उसके सकुशल लौटने के दिन तक उसने अपने पैर नहीं धोये थे। उसने न अपनी दाढ़ी संँवारी थी और न अपने वस्त्र धुलवाये थे।

26) जब वह येरुसालेम से राजा से मिलने आया, तब राजा ने उससे पूछा, ‘‘मफ़ीबोशेत, तुम मेरे साथ क्यों नहीं गये थे?’’

27) उसने उत्तर दिया, ‘‘मेरे स्वामी और राजा! मेरे नौकर ने मुझे धोखा दिया था। आपके इस दास ने उस से कहा था कि मेरे लिए एक गधी कस दो, जिससे मैं सवार हो कर राजा के साथ जा सकूंँ, क्योंकि आपका दास लँगड़ा है

सुसमाचार : सन्त मारकुस 3:20-21

20) वे घर लौटे और फिर इतनी भीड़ एकत्र हो गयी कि उन लोगों को भोजन करने की भी फुरसत नहीं रही।

21) जब ईसा के सम्बन्धियों ने यह सुना, तो वे उन को बलपूर्वक ले जाने निकले; क्योंकि कहा जाता था कि उन्हें अपनी सुध-बुध नहीं रह गयी है।


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