वर्ष - 2, तीसरा सप्ताह, मंगलवार

📒 पहला पाठ: समुएल का दुसरा 6:12b-15, 17,19

12) राजा दाऊद को ख़बर मिली की प्रभु ने ईश्वर की मंजूषा के कारण ओबेद-एदोम के घर वालों और उसकी सम्पत्ति को आशीर्वाद दिया है; इसलिए दाऊद गया और ईश्वर की मंजूषा ओबेद-एदोम के घर से बड़े आनन्द के साथ दाऊदनगर ले आया।

13) जब ईश्वर की मंजूषा ढोने वाले छः क़दम आगे बढ़े थे, तो दाऊद ने एक बैल और एक मोटे बछड़े की बलि चढ़ायी।

14) वह छालटी का अधोवस्त्र पहने प्रभु के सामने उल्लास के साथ नाच रहा था।

15) इस प्रकार दाऊद और सब इस्राएली जयकार करते और तुरही बजाते हुए प्रभु की मंजूषा ले आये।

17) उन्होंने मंजूषा को ला कर उस तम्बू के मध्य में रख दिया, जिसे दाऊद ने उसके लिए खड़ा किया था। इसके बाद दाऊद ने प्रभु को होम और शान्ति के बलिदान चढ़ाये।

19) अन्त में उसने समस्त प्रजा, सभी एकत्र इस्राएली पुरुषों और स्त्रियों को एक-एक रोटी, भुने हुए मांस का एक-एक टुकड़ा और किशमिश की एक-एक टिकिया दी। इसके बाद सब लोग अपने-अपने घर गये।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 3:31-35

31) उस समय ईसा की माता और भाई आये। उन्होंने घर के बाहर से उन्हें बुला भेजा।

32) लोग ईसा के चारों ओर बैठे हुए थे। उन्होंने उन से कहा, ’’देखिए, आपकी माता और आपके भाई-बहनें, बाहर हैं। वे आप को खोज रहे हैं।’’

33) ईसा ने उत्तर दिया, ’कौन है मेरी माता, कौन हैं मेरे भाई?’’

34) उन्होंने अपने चारों ओर बैठे हुए लोगों पर दृष्टि दौड़ायी और कहा, ’’ये हैं मेरी माता और मेरे भाई।

35) जो ईश्वर की इच्छा पूरी करता है, वही है मेरा भाई, मेरी बहन और मेरी माता।’’

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में, प्रभु येसु कहते हैं, "जो ईश्वर की इच्छा पूरी करता है, वही है मेरा भाई, मेरी बहन और मेरी माता।" (मारकुस 3:35)। संत पौलुस हमें बताते हैं हम ईश्वर की इच्छा को कैसे जान सकते हैं। “आप इस संसार के अनुकूल न बनें, बल्कि बस कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें। इस प्रकार आप जान जायेंगे कि ईश्वर क्या चाहता है और उसकी दृष्टि में क्या भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम है।” (रोमियों 12: 2)। ईश्वर की इच्छा वही है जो भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम हो। यदि हम वह करते हैं जो भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम है, तो हम ईश्वर को प्रसन्न कर सकते हैं। 1थेसेलनीकियों 4: 3-6 में संत पौलुस ईश्वर की इच्छा की व्याख्या करते हैं। वे कहते हैं, ईश्वर की इच्छा यह है कि आप लोग पवित्र बनें और व्यभिचार से दूर रहें। आप में प्रत्येक धर्म और औचित्य के अनुसार अपने लिए एक पत्नी ग्रहण करे। गैर-यहूदियों की तरह, जो ईश्वर को नहीं जानते, कोई भी वासना के वशीभूत न हो। कोई भी मर्यादा का उल्लंघन न करे और इस सम्बन्ध में अपने भाई के प्रति अन्याय नहीं करे; क्योंकि प्रभु इन सब बातों का कठोर दण्ड देता है, जैसा कि हम आप लोगों को स्पष्ट शब्दों में समझा चुके हैं।” 1योहन 2:16-17 संसार में जो शरीर की वासना, आंखों का लोभ और धन-सम्पत्ति का घमण्ड है – ये सब ईश्वर की इच्छा के विरुध्द हैं। मीकाह 6:8 के अनुसार ईश्वर की इच्छा है – “न्यायपूर्ण व्यवहार, कोमल भक्ति और ईश्वर के सामने विनयपूर्ण आचरण”। संत याकूब हमें सुझाव देते हैं कि हम अपनी मर्जी का पालन करने के बजाय, यह कहना सीखें - "यदि ईश्वर की इच्छा होगी, तो हम जीवित रहेंगे और यह या वह काम करेंगे"। प्रभु की प्रार्थना में हम प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर की इच्छा जैसे स्वर्ग में वैसे पृथ्वी पर भी होवे। आइए हम अपनी इच्छाएँ परमेश्वार की सर्वोच्च इच्छा के अधीन करें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In today’s Gospel, Jesus says, “Whoever does the will of God is my brother and sister and mother” (Mk 3:35). St. Paul tells us how to discern the Will of God. “Do not be conformed to this world, but be transformed by the renewing of your minds, so that you may discern what is the will of God — what is good and acceptable and perfect (Rom 12:2). The Will of God is what is good and acceptable and perfect. If we do what is good, acceptable and perfect, we can please God. In 1Thess 4:3-6 St. Paul interprets the will of God. He says, “For this is the will of God, your sanctification: that you abstain from fornication; that each one of you know how to control your own body in holiness and honor, not with lustful passion, like the Gentiles who do not know God; that no one wrong or exploit a brother or sister”. According to 1Jn 2:16-17 the world with the desires of the flesh and the desires of the eyes and pride in possessions are opposed to the Will of God. According to Micah, 6:6 the will of God is “to do justice, and to love kindness, and to walk humbly with your God”. St. James suggests that instead of following our own will, we should learn to say always, “If the Lord wishes, we will live and do this or that” (Jam 4:15). In the Lord’s prayer we pray that the Will of God may be done on earth as in heaven. Let us submit our wills to the supreme will of God.

-Fr. Francis Scaria


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!