वर्ष - 2, तीसरा सप्ताह, गुरुवार

📒 पहला पाठ : 2 समुएल 7:18-19, 24-29

18) इसके बाद दाऊद प्रभु के तम्बू में जा कर बैठ गया और उसने कहा, "प्रभु-ईश्वर! मैं क्या हूँ और मेरा वंश क्या है, जो तू मुझे यहाँ तक ले आया है?

19) प्रभु-ईश्वर! यह तेरी दृष्टि में पर्याप्त नहीं हुआ। तू अपने सेवक के वंश के सुदूर भविष्य की प्रतिज्ञा करता है। प्रभु- ईश्वर! क्या यह निरे मनुष्य का भाग्य है?

24) तूने अपनी प्रजा इस्राएल को चुना, जिससे वह सदा के लिए तेरी प्रजा हो और तू, प्रभु, उसका अपना ईश्वर।

25) प्रभु-ईश्वर! तूने अपने सेवक और उसके वंश के विषय में जो वचन दिया है, उसे सदा के लिए बनाये रख और अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर।

26) तब तेरा नाम सदा के लिए महान् होगा। तब लोग यह कहेंगे: विश्वमण्डल का प्रभु-ईश्वर इस्राएल का ईश्वर है’ और तेरे सेवक दाऊद का वंश तेरे सामने सुदृढ़ रहेगा।

27) विश्वमण्डल के प्रभु-ईश्वर! इस्राएल के ईश्वर! तूने अपने सेवक से कहा, ‘मैं तेरा वंश बनाये रखूँगा।’ इसलिए तेरे सेवक को तुझ से यह प्रार्थना करने का साहस हुआ।

28) प्रभु-ईश्वर! तू ईश्वर है और तेरे शब्द विश्वसनीय हैं। तूने अपने सेवक से कल्याण की यह प्रतिज्ञा की है।

29) अब अपने सेवक के वंश को आशीर्वाद प्रदान कर, जिससे वह सदा तेरे सामने बना रहे। प्रभु-ईश्वर! तूने यह प्रतिज्ञा की है। तेरे आशीर्वाद के फलस्वरूप तेरे सेवक का वंश सदा ही फलता-फूलता रहेगा।"

📙 सुसमाचार : मारकुस 4:21-25

21) ईसा ने उन से कहा, "क्या लोग इसलिए दीपक जलाते हैं कि उसे पैमाने अथवा पलंग के नीचे रखें? क्या वे उसे दीवट पर नहीं रखते?

22) ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, जो प्रकट नहीं किया जायेगा और कुछ भी गुप्त नहीं है, जो प्रकाश में नहीं लाया जायेगा।

23) जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले!’

24) ईसा ने उन से कहा, "ध्यान से मेरी बात सुनो। जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जायेगा और सच पूछो तो तुम्हें उस से भी अधिक दिया जायेगा;

25) क्योंकि जिसके पास कुछ है, उसी को और दिया जायेगा और जिसके पास कुछ नहीं है, उस से वह भी ले लिया जायेगा, जो उसके पास है।"

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार के माध्यम से, प्रभु चाहते हैं कि हम यह जान लें कि वे हमारे बारे में सब कुछ जानते हैं। उनसे कुछ भी छिपा हुआ नहीं है। हम उनसे कुछ नहीं छिपा सकते। प्रवक्ता 42:18-19 कहता है, “वह समुद्र और मानव हृदय की थाह लेता और उनके सभी रहस्य जानता है; क्योंकि सर्वोच्च प्रभु सर्वज्ञ है और भविष्य भी उस से छिपा हुआ नहीं। वह भूत और भविष्य, दोनो को प्रकाश में लाता और गूढ़तम रहस्यों को प्रकट करता है।”। इसी तरह स्तोत्र 139 भी मेरे बारे में भगवान के ज्ञान के बारे में बताता है। स्तोत्रकार कहता है, “ मैं कहाँ जा कर तुझ से अपने को छिपाऊँ? मैं कहाँ भाग कर तेरी आँखों से ओझल हो जाऊँ, यदि मैं आकाश तक चढूँ, तो तू वहाँ है। यदि मैं अधोलोक में लेटूँ, तो तू वहाँ है। यदि मैं उषा के पंखों पर चढ़ कर समुद्र के उस पार बस जाऊँ, तो वहाँ भी तेरा हाथ मुझे ले चलता, वहाँ भी तेरा दाहिना हाथ मुझे सँभालता है। यदि मैं कहूँ: "अन्धकार मुझे छिपाये और रात मुझे चारों ओर घेर ले", तो तेरे लिए अन्धकार अंधेरा नहीं है और रात दिन की तरह प्रकाशमान है। अन्धकार तेरे लिए प्रकाश-जैसा है।” (स्तोत्र 139: 7-12) प्रभु हमें यह भी याद दिलाते हैं कि हम जिस नाप से नापते हैं, उसी नाप से हमारे लिए भी नापा जायेगा। हम ही निर्धारित करते हैं कि हमें क्या मिलेगा, क्योंकि यह हमारे देने पर निर्भर करता है।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Through today’s Gospel, the Lord wants us to know that he knows everything about us. There is nothing hidden from him. We cannot hide anything from Him. Sirach 42:18-19 says, “He searches out the abyss and the human heart; he understands their innermost secrets. For the Most High knows all that may be known; he sees from of old the things that are to come”. Similarly Ps 139 also speaks about God’s knowledge about me. The psalmist says, “Where can I go from your spirit? Or where can I flee from your presence? If I ascend to heaven, you are there; if I make my bed in Sheol, you are there. If I take the wings of the morning and settle at the farthest limits of the sea, even there your hand shall lead me, and your right hand shall hold me fast. If I say, “Surely the darkness shall cover me, and the light around me become night,” even the darkness is not dark to you; the night is as bright as the day, for darkness is as light to you.” (Ps 139:7-12) The Lord also reminds us that the measure we give is the measure we get. It is we who determine what we get, because it depends on our giving.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!