वर्ष - 2, चौथा सप्ताह, सोमवार

📒 पहला पाठ: समुएल का दुसरा ग्रन्थ 15:13-14, 30;16:5-13a

13) एक दूत दाऊद को यह सूचना देने आया कि इस्राएलियों ने अबसालोम का पक्ष लिया है।

14) इस पर दाऊद ने येरुसालेम में रहने वाले अपने सब सेवकों से कहा, ‘‘चलो! हम भाग चलें, नहीं तो हम अबसालोम के हाथ से नहीं बच सकेंगे। हम शीघ्र ही चले जायें। कहीं ऐसा न हो कि वह अचानक पहुँच कर हमारा सर्वनाश करे और शहर के निवासियों को तलवार के घाट उतार दे।"

5) जब दाऊद बहूरीम पहुँचा, तो साऊल के वंश का एक व्यक्ति दौड़ता हुआ उसके पास आया। वह गेरा का शिमई नामक पुत्र था। वह कोसते हुए नगर से निकला

6) और दाऊद और उसके सेवकों पर पत्थर फेंकता जा रहा था, यद्यपि दाऊद के दायें और बायें सैनिक और अंगरक्षक चलते थे।

7) शिमई कोसते हुए चिल्लाता था, ‘‘दूर हो, रे हत्यारे! दूर हो, रे नीच!

8) तूने साऊल का राज्य छीन लिया, इसलिए प्रभु ने साऊल के घराने के सारे रक्त का बदला तुझे चुकाया है और तेरे पुत्र अबसालोम के हाथ में राज्य दिया है। रे हत्यारे! तू अपनी करनी का फल भोग रहा है।’’

9) सरूया के पुत्र अबीशय ने राजा से कहा, ‘‘यह मुर्दा कुत्ता मेरे राजा और स्वामी को क्यों कोस रहा है? कृपया मुझे आज्ञा दें कि मैं जा कर उसका सिर उड़ा दूँ।’’

10) राजा ने उत्तर दिया, ‘‘सरूया के पुत्रों! इससे तुमको क्या? यदि वह इसलिए दाऊद को कोसता है कि प्रभु ने उसे ऐसा करने की प्रेरणा दी है, तो कौन पूछ सकता है कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?’’

11) इसके बाद दाऊद ने अबीशय और अपने सेवकों से यह कहा, ‘‘मैंने जिस पुत्र को जन्म दिया, वही मुझे मारना चाहता है, तो यह बेनयामीनवंशी ऐसा क्यों न करे? उसे कोसने दो, क्योंकि प्रभु ने उसे ऐसा करने की प्रेरणा दी है।

12) हो सकता है कि प्रभु मेरी दुर्गति देखकर आज के अभिशाप के बदले मुझे फिर सुख-शान्ति प्रदान करे।’’

13) इसलिए दाऊद और उसके अनुयायी आगे बढ़ते जाते थे। उधर शिमई अभिशाप देता, पत्थर फेंकता और धूल उड़ाता हुआ उसके दूसरी ओर की पहाड़ी की ढलान पर जा रहा था।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 5:1-20

1) वे समुद्र के उस पार गेरासेनियों के प्रदेश पहुँचे।

2) ईसा ज्यों ही नाव से उतरे, एक अपदूतग्रस्त मनुष्य मक़बरों से निकल कर उनके पास आया।

3) वह मक़बरों में रहा करता था। अब कोई उसे जंजीर से भी नहीं बाँध पाता था;

4) क्योंकि वह बारम्बार बेडि़यों और जंजीरों से बाँधा गया था, किन्तु उसने ज़ंजीरों को तोड़ डाला और बेडि़यों को टुकड़े-टुकड़े कर दिया था। उसे कोई भी वश में नहीं रख पाता था।

5) वह दिन रात निरन्तर मक़बरों में और पहाड़ों पर चिल्लाता और पत्थरों से अपने को घायल करता था।

6) वह ईसा को दूर से देख कर दौड़ता हुआ आया और उन्हें दण्डवत् कर

7) ऊँचें स्वर से चिल्लाया, ’’ईसा! सर्वोच्च ईश्वर के पुत्र! मुझ से आप को क्या? ईश्वर के नाम पर प्रार्थना है- मुझे न सताइए।’’

8) क्योंकि ईसा उस से कह रहे थे, ’’अशुद्ध आत्मा! इस मनुष्य से निकल जा’’।

9) ईसा ने उस से पूछा, ’’तेरा नाम क्या है?’’ उसने उत्तर दिया, ’’मेरा नाम सेना है, क्योंकि हम बहुत हैं’’,

10) और वह ईसा से बहुत अनुनय-विनय करता रहा कि हमें इस प्रदेश से नहीं निकालिए।

11) वहाँ पहाड़ी पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था।

12) अपदूतों ने यह कहते हुए ईसा से प्रार्थना की, ’’हमें सूअरों में भेज दीजिए। हमें उन में घुसने दीजिए।’’

13) ईसा ने अनुमति दे दी। तब अपदूत उस मनुष्य से निकल कर सुअरों में जा घुसे और लगभग दो हज़ार का वह झुण्ड तेज़ी से ढाल पर से समुद्र में कूद पड़ा और उस में डूब कर मर गया।

14) सूअर चराने वाले भाग गये। उन्होंने नगर और बस्तियों में इसकी ख़बर फैला दी। लोग यह सब देखने निकले।

15) वे ईसा के पास आये और यह देख कर भयभीत हो गये कि वह अपदूतग्रस्त, जिस में पहले अपदूतों की सेना थी, कपड़े पहने शान्त भाव से बैठा हुआ है।

16) जिन्होंने यह सब अपनी आँखों से देखा था, उन्होंन लोगों को बताया कि अपदूतग्रस्त के साथ क्या हुआ और सूअरों पर क्या-क्या बीती।

17) तब गेरासेनी ईसा से निवेदन करने लगे कि वे उनके प्रदेश से चले जायें।

18) ईसा नाव पर चढ़ ही रहे थे कि अपदूतग्रस्त ने बड़े आग्रह के साथ यह प्रार्थना की- ’’मुझे अपने पास रहने दीजिए’’।

19) उसकी प्रार्थना अस्वीकार करते हुए ईसा ने कहा, ’’अपने लोगों के पास अपने घर जाओ और उन्हें बता दो कि प्रभु ने तुम्हारे लिए क्या-क्या किया है और तुम पर किस तरह कृपा की है’’।

20) वह चला गया और सारे देकापोलिस में यह सुनाता फिरता कि ईसा ने उसके लिए क्या-क्या किया था और सब लोग अचम्भे में पड़ जाते थे।

📚 मनन-चिंतन

गेरासेनियों के क्षेत्र में एक अशुद्ध आत्मा से पीडित व्यक्ति शैतान द्वारा सताया जा रहा था। उसकी स्थिति दयनीय थी क्योंकि वह कब्रों में रहता था और बहुत हिंसक थे। वह येसु की उपस्थिति पर ध्यान देता है। शैतान ने उस खतरे को माना जो येसु ने उसकी उपस्थिति के लिए प्रस्तुत किया था। अशुद्ध आत्माओं को येसु ने सूअरों के झुंड में भगा दिया था। शैतान की विनाशकारी शक्ति हमारे सामने तब अधिक प्रकट होती है जब अशुद्ध आत्माएं दो हज़ार सूअरों के झुंड में प्रवेश करती हैं और फिर सुअरों का झुंठ चट्टान पर चढ़कर नीचे पानी में गिर कर डूब जाता है। जिस व्यक्ति को शैतान की गुलामी से छुड़ाया गया, अब वह येसु से याचना करने लगा कि वे उसे उनके साथ रहने दें। लेकिन येसु उसे अपने लोगों के बीच प्रभु के शक्तिशाली कार्यों की घोषणा करने का मिशन सौंप देते हैं। हर कोई जो येसु की मुक्ति की शक्ति का अनुभव करता है, उसे प्रभु के शक्तिशाली कार्यों की घोषणा करना चाहिए।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

The man with an unclean spirit in the territory of the Gerasenes was being tortured by the devil. His condition was pathetic as he lived in the tombs and was very violent. He takes note of the presence of Jesus. The devil perceived the threat Jesus posed to his presence. The unclean spirits were cast away by Jesus into the herd of pigs. The destructive power of the devil is manifested when the unclean spirits entered into the herd of two thousand pigs that then charged down the cliff into the lake and drowned. The man was released from the possession. Now he begs Jesus to allow him to stay with him. But Jesus gives him the mission to proclaim the mighty works of the Lord among his people. Everyone who experiences the liberative power of Jesus needs to proclaim the mighty works of the Lord.

-Fr. Francis Scaria


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