वर्ष - 2, चौथा सप्ताह, मंगलवार

पहला पाठ: समुएल का दुसरा ग्रन्थ 18:9-10,14b,24-25a,31-19:3

9) दाऊद के कुछ सेवकों ने संयोग से अबसालोम को देखा। जिस खच्चर पर अबसालोम सवार था, वह एक बड़े बलूत की डालियों के नीचे से निकला और अबसालोम का सिर बलूत में अटक गया। खच्चर आगे बढ़ गया और अबसालोम आकाश और पृथ्वी के बीच लटकता रहा।

10) एक व्यक्ति ने उसे देखा और यह कहते हुए योआब को इसकी सूचना दी, ‘‘मैंने अबसालेाम को एक बलूत से लटकता हुआ देखा।’’

14) उसने हाथ में तीन भाले ले लिये और उन्हें अबसालोम के कलेजे में भोंक दिया, जो अब तक जीवित ही बलूत से लटक रहा था।

24) दाऊद शहर के दो फाटकों के बीच बैठा हुआ था। एक पहरेदार दीवार के पास के द्वारमण्डप की छत पर चढ़ा और उसने दृष्टि दौड़ा कर देखा कि एक व्यक्ति अकेला दौड़ता हुआ आ रहा है। पहरेदार ने राजा को इसकी सूचना दी।

25) राजा ने कहा, ‘‘यदि वह अकेला है, तो उसके पास शुभ समाचार है।’’

31) तब कूशी ने पास आकर कहा, ‘‘मैं अपने स्वामी और राजा के लिए अच्छा समाचार ला रहा हूँ। प्रभु ने आज आपको न्याय दिलाया है और आप को उन सब के हाथ से छुड़ा दिया, जिन्होंने आपके विरुद्ध विद्रोह किया था।’’

32) राजा ने कूशी से पूछा, ‘‘क्या नवयुवक अबसालोम सकुशल है?’’ और कूशी ने उत्तर दिया, ‘‘उस नवयुवक की जो दुर्गति हो गयी है, वही मेरे स्वामी और राजा के सब शत्रुओं को प्राप्त हो और उन सबको भी, जो आपके विरुद्ध षड़यंत्र रचते हैं।’’

1) राजा बहुत व्याकुल हो उठा और द्वारमण्डल के ऊपरी कमरे में जाकर रोने लगा। वह यह कहते हुए इधर-उधर टहलता रहा, ‘‘हाय ! मेरे पुत्र अबसालोम! मेरे पुत्र! मेरे पुत्र अबसालोम! अच्छा होता कि तुम्हारे बदले मैं ही मर गया होता! अबसालोम! मेरे पुत्र! मेरे पुत्र!’’

2) योआब को यह सूचना दी गयी, ‘‘राजा रोते और अबसालोम के लिए शोक मनाते हैं।’’

3) जब लोगों ने यह सुना कि राजा अपने पुत्र के कारण दुःखी है, तो उस दिन समस्त प्रजा के लिए विजयोल्लास शोक में बदल गया।

सुसमाचार : सन्त मारकुस 5:21-43

21) जब ईसा नाव से उस पार पहॅूचे, तो समुद्र के तट पर उनके पास एक विशाल जनसमूह एकत्र हो गया।

22) उस समय सभागृह का जैरूस नाम एक अधिकारी आया। ईसा को देख कर वह उनके चरणों पर गिर पड़ा

23) और यह कहते हुए अनुनय-विनय करता रहा, ’’मेरी बेटी मरने पर है। आइए और उस पर हाथ रखिए, जिससे वह अच्छी हो जाये और जीवित रह सके।’’

24) ईसा उसके साथ चले। एक बड़ी भीड़ उनके पीछे हो ली और लोग चारों ओर से उन पर गिरे पड़ते थे।

25) एक स्त्री बारह बरस से रक्तस्राव से पीडि़त थी।

26) अनेकानेक वैद्यों के इलाज के कारण उसे बहुत कष्ट सहना पड़ा था और सब कुछ ख़र्च करने पर भी उसे कोई लाभ नहीं हुआ था।

27) उसने ईसा के विषय में सुना था और भीड़ में पीछे से आ कर उनका कपड़ा छू लिया,

28) क्योंकि वह मन-ही-मन कहती थी, ’यदि मैं उनका कपड़ा भर छूने पाऊॅ, तो अच्छी हो जाऊँगी’।

29) उसका रक्तस्राव उसी क्षण सूख गया और उसने अपने शरीर में अनुभव किया कि मेरा रोग दूर हो गया है।

30) ईसा उसी समय जान गये कि उन से शक्ति निकली है। भीड़ में मुड़ कर उन्होंने पूछा, ’’किसने मेरा कपड़ा छुआ?’’

31) उनके शिष्यों ने उन से कहा, ’’आप देखते ही है कि भीड़ आप पर गिरी पड़ती है। तब भी आप पूछते हैं- किसने मेरा स्पर्श किया?’’

32) जिसने ऐसा किया था, उसका पता लगाने के लिए ईसा ने चारों ओर दृष्टि दौड़ायी।

33) वह स्त्री, यह जान कर कि उसे क्या हो गया है, डरती- काँपती हुई आयी और उन्हें दण्डवत् कर सारा हाल बता दिया।

34) ईसा ने उस से कहा, ’’बेटी! तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चंगा कर दिया है। शान्ति प्राप्त कर जाओ और अपने रोग से मुक्त रहो।’’

35) ईसा यह कह ही रहे थे कि सभागृह के अधिकारी के यहाँ से लोग आये और बोले, ’’आपकी बेटी मर गयी है। अब गुरुवर को कष्ट देने की ज़रूरत ही क्या है?’’

36) ईसा ने उनकी बात सुन कर सभागृह के अधिकारी से कहा, ’’डरिए नहीं। बस, विश्वास कीजिए।’’

37) ईसा ने पेत्रुस, याकूब और याकूब के भाई योहन के सिवा किसी को भी अपने साथ आने नहीं दिया।

38) जब वे सभागृह के अधिकारी के यहाँ पहुँचे, तो ईसा ने देखा कि कोलाहल मचा हुआ है और लोग विलाप कर रहे हैं।

39) उन्होंने भीतर जा कर लोगों से कहा, ’’यह कोलाहल, यह विलाप क्यों? लड़की मरी नहीं, सो रही है।’’

40) इस पर वे उनकी हँसी उड़ाते रहे। ईसा ने सब को बाहर कर दिया और वह लड़की के माता-पिता और अपने साथियों के साथ उस जगह आये, जहाँ लड़की पड़ी हुई थी।

41) लड़की का हाथ पकड़ कर उस से कहा, ’तालिथा कुम’’। इसका अर्थ है- ओ लड़की! मैं तुम से कहता हूँः उठो।

42) लड़की उसी क्षण उठ खड़ी हुई और चलने-फिरने लगी, क्योंकि वह बारह बरस की थी। लोग बड़े अचम्भे में पड़ गये।

43) ईसा ने उन्हें बहुत समझा कर आदेश दिया कि यह बात कोई न जान पाये और कहा कि लड़की को कुछ खाने को दो।


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!