वर्ष - 2, चौथा सप्ताह, गुरुवार

📒 पहला पाठ: राजाओं का पहला ग्रन्थ 2:1-4,10-12

1) जब दाऊद के मरने का समय निकट आया, तो उसने अपने पुत्र सुलेमान को ये अनुदेश दिये,

2) ‘‘मैं भी दूसरे मनुष्यों की तरह मिट्टी में मिलने जा रहा हूँ। धीरज धरो और अपने को पुरुष प्रमाणित करो।

3) तुम अपने प्रभु-ईश्वर के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करो। उसके बताये हुए मार्ग पर चलो; उसकी विधियों, आदेशों, आज्ञाओं और नियमों का पालन करो, जेसा कि मूसा की संहिता में लिखा हुआ है। तब तुम अपने सब कार्यों और उद्योगों में सफलता प्राप्त करोगे और

4) मुझे दी गयी प्रभु की यह प्रतिज्ञा पूरी हो जायेगी: ‘यदि तुम्हारे पुत्र ईमानदार हो कर मेरे सामने सारे हृदय और सारी आत्मा से सन्मार्ग पर चलते रहेंगे, तो इस्राएल के सिंहासन पर सदा ही तुम्हारा कोई वंशज विराजमान होगा।’

10) दाऊद ने अपने पूर्वजों के साथ विश्राम किया और वह दाऊदनगर में क़ब्र में रखा गया।

11) दाऊद ने इस्राएल पर चालीस वर्ष तक राज्य किया- हेब्रोन में सात वर्ष तक और येरुसालेम में तैंतीस वर्ष तक।

12) सुलेमान अपने पिता दाऊद के सिंहासन पर बैठा और उसका राज्य सुदृढ़ होता गया।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 6:7-13

7) ईसा शिक्षा देते हुए गाँव-गाँव घूमते थे। वे बारहों को अपने पास बुला कर और उन्हें अपदूतों पर अधिकार दे कर, दो-दो करके, भेजने लगे।

8) ईसा ने आदेश दिया कि वे लाठी के सिवा रास्ते के लिए कुछ भी नहीं ले जायें- न रोटी, न झोली, न फेंटे में पैसा।

9) वे पैरों में चप्पल बाँधें और दो कुरते नहीं पहनें

10) उन्होंने उन से कहा, ’’जिस घर में ठहरने जाओ, नगर से विदा होने तक वहीं रहो!

11) यदि किसी स्थान पर लोग तुम्हारा स्वागत न करें और तुम्हारी बातें न सुनें, तो वहाँ से निकलने पर उन्हें चेतावनी देने के लिए अपने पैरों की धूल झाड़ दो।’’

12) वे चले गये। उन्होंने लोगों को पश्चात्ताप का उपदेश दिया,

13) बहुत-से अपदूतों को निकाला और बहुत-से रोगियों पर तेल लगा कर उन्हें चंगा किया।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में, हम देखते हैं कि येसु अपने बारह शिष्यों को दो-दो करके भेज रहे हैं। उन्होंने उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया। उन्होंने उन्हें अपने साथ कुछ भी न ले जाने की हिदायत दी। वे चाहते थे कि शिष्य अपनी सुरक्षा और व्यवस्था के लिए प्रभु पर भरोसा करें। उन्हें केवल स्वर्गराज्य का संदेश अपने साथ ले जाना था। येसु की शक्ति उनके साथ थी। उन्होंने स्वयं गांवों का दौरा करने के बाद अपने शिष्यों को भेजा। प्रभु येसु ने अपनी यात्राओं के दौरान जो कार्य किया था, उसी को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने शिष्यों को भेजा। लूकस 10: 1 में हम पढ़ते हैं, "इसके बाद प्रभु ने अन्य बहत्तर शिष्य नियुक्त किये और जिस-जिस नगर और गाँव में वे स्वयं जाने वाले थे, वहाँ दो-दो करके उन्हें अपने आगे भेजा”। प्रभु ने उन स्थानों पर अपने सत्तर शिष्यों को भेजा, जहाँ वे स्वयं जाने वाले थे। वे येसु के लिए रास्ता तैयार करने के लिए भेजे गए प्रतीत होते हैं। येसु के शिष्यों होने के नाते हमें यह याद रखना चाहिए कि उद्घोषणा के हमारे कार्य के पहले और बाद में प्रभु हमारे कार्यों में जो भी कमी है, उसे पूरा करते हैं। इसलिए, हमें वह करने की आवश्यकता है जो हमारे लिए संभव है और बाकी को प्रभु पर छोड़ दें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In today’s gospel, we see Jesus sending out his twelve disciples two by two. He gave them authority over unclean spirits. He instructed them not to carry anything with them. He wanted them to rely on God for their protection and upkeep. They were to take only the message of the Kingdom of God with them. The power of Jesus was accompanying them. He sent them after having made a tour of the villages himself. He now seems to be sending them to follow-up what he had done during his visits. In Lk 10:1 we read, “After this the Lord appointed seventy others and sent them on ahead of him in pairs to every town and place where he himself intended to go”. He sent the seventy disciples prior to his own apostolate in those places. They seem to be sent to prepare the way for Jesus. As the disciples of Jesus we should remember that before and after our work of proclamation the Lord supplements whatever is lacking in our work. Hence, we need to do what is possible for us and leave the rest to the Lord.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!