वर्ष - 2, चौथा सप्ताह, शनिवार

📒 पहला पाठ: राजाओं का पहला ग्रन्थ 3:4-13

4) सुलेमान बलि चढ़ाने गिबओन गया, क्योंकि यह बलि चढ़ाने के मुख्य पहाड़ी थी। सुलेमान ने वहाँ की वेदी पर एक हज़ार होम बलियाँ चढ़ायीं।

5) गिबओन में प्रभु रात को सुलेमान को स्वप्न में दिखाई दिया। ईश्वर ने कहा, ‘‘बताओ, मैं तुम्हें क्या दे दूँ?’’

6) सुलेमान ने यह उत्तर दिया, ‘‘तू मेरे पिता अपने सेवक दाऊद पर बड़ी कृपा करता रहा। वह सच्चाई, न्याय और निष्कपट हृदय से तेरे मार्ग पर चलते रहे, इसलिए तूने उन्हें एक पुत्र दिया, जो अब उनके सिंहासन पर बैठा है।

7) प्रभु! मेरे ईश्वर! तूने अपने इस सेवक को अपने पिता दाऊद के स्थान पर राजा बनाया, लेकिन मैं अभी छोटा हूँ। मैं यह नहीं जानता कि मुझे क्या करना चाहिए।

8) मैं यहाँ तेरी चुनी हुई प्रजा के बीच हूँ। यह राष्ट्र इतना महान् है कि इसके निवासियों की गिनती नहीं हो सकती।

9) अपने इस सेवक को विवेक देने की कृपा कर, जिससे वह न्यायपूर्वक तेरी प्रजा का शासन करे और भला तथा बुरा पहचान सके। नहीं तो, कौन तेरी इस असंख्य प्रजा का शासन कर सकता है?’’

10) सुलेमान का यह निवेदन प्रभु को अच्छा लगा।

11) प्रभु ने उसे से कहा, ‘‘तुमने अपने लिए न तो लम्बी आयु माँगी, न धन-सम्पत्ति और न अपने शत्रुओं का विनाश।

12) तुमने न्याय करने का विवेक माँगा है। इसलिए मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगा। मैं तुम को ऐसी बुद्धि और ऐसा विवेक प्रदान करता हूँ कि तुम्हारे समान न तो पहले कभी कोई था और न बाद में कभी कोई होगा।

13) और जो तुमने नहीं माँगा, मैं वह भी तुम्हें दे देता हूँ, अर्थात् ऐसी धन-सम्पत्ति तथा ऐसा ऐश्वर्य, जिससे कोई भी राजा तुम्हारी बराबरी नहीं कर पायेगा।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 6:30-34

30) प्रेरितो ने ईसा के पास लौट कर उन्हें बताया कि हम लोगों ने क्या-क्या किया और क्या-क्या सिखलाया है।

31) तब ईसा ने उन से कहा, ’’तुम लोग अकेले ही मेरे साथ निर्जन स्थान चले आओ और थोड़ा विश्राम कर लो’’; क्योंकि इतने लोग आया-जाया करते थे कि उन्हें भोजन करने की भी फुरसत नही रहती थी।

32) इस लिए वे नाव पर चढ़ कर अकेले ही निर्जन स्थान की ओर चल दिये।

33) उन्हें जाते देख कर बहुत-से लोग समझ गये कि वह कहाँ जा रहे हैं। वे नगर-नगर से निकल कर पैदल ही उधर दौड़ पड़े और उन से पहले ही वहाँ पहुँच गये।

34) ईसा ने नाव से उतर कर एक विशाल जनसमूह देखा। उन्हें उन लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थे और वह उन्हें बहुत-सी बातों की शिक्षा देने लगे।

📚 मनन-चिंतन

येसु नहीं चाहते कि हम अपने कामों में डूबे रहें। जब प्रेरित अपने व्यस्त प्रेरिताई यात्रा से वापस लौटे, तो उन्होंने उनसे कहा, “तुम लोग अकेले ही मेरे साथ निर्जन स्थान चले आओ और थोड़ा विश्राम कर लो”। यह प्रभु का भी आदत था, उनकी कार्यशैली थी। लोगों के साथ संयुक्त रहना और पीछे लौटना – उनके सार्वजनिक कार्यों की शैली थी। वे ईशर के राज्य के प्रचार में व्यस्त हो जाते थे, बीमार लोगों को चंगा करते थे और अपदूतों को निकालते थे। लेकिन नियमित अंतराल पर वे प्रार्थना करने के लिए एकांत स्थान पर जाते थे, अपने पिता के साथ रहने के लिए। यह उनकी कार्यशैली थी जो वे अपने सभी अनुयायियों के लिए वे निर्धारित करते हैं। हमारे सभी व्यस्त कार्यकलापों के बावजूद भी हमें प्रभु के साथ रहने के लिए समय खोजना चाहिए। अन्यथा हमारे कार्य प्रभावशाली या फलदायी नहीं होंगे।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Jesus does not want us to be workaholic. When the apostles returned from their hectic ministry, he told them to “come away to some lonely place all by yourselves and rest for a while”. This is something that he himself did so often. The style of his ministry was one of involvement and withdrawals. He used to get busy with his ministry of proclaiming the kingdom of God, healing the sick and casting out demons. But at regular intervals he went to a lonely place to pray, to be with his Father. This is the style of ministry that he advocates for all his followers too. In all our busy schedule we need to find time to be with the Lord. Otherwise our ministry will not be effective or fruitful.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!