वर्ष - 2, पाँचवाँ सप्ताह, बुधवार

📒 पहला पाठ: राजाओं का पहला ग्रन्थ 10:1-10

1) शेबा की रानी ने सुलेमान की कीर्ति के विषय में सुना था और वह पहेलियों द्वारा उसकी परीक्षा लेने आयी।

2) वह ऊँटों की लम्बी कतार के साथ येरूसालेम पहुँची, जिन पर सुगन्धित द्रव्य, बहुत-सा सोना और बहुमूल्य रत्न लदे हुए थे। वह सुलेमान के यहाँ अन्दर आयी और उसके मन में जो कुछ था, उसने वह सब सुलेमान को बताया।

3) सुलेमान ने उसके सभी प्रश्नों का उत्तर दिया- उन में एक भी ऐसा नहीं निकला, जिसका सुलेमान सन्तोषजनक उत्तर नहीं दे सका।

4) जब शेबा की रानी ने सुलेमान की समस्त प्रज्ञा, उसके द्वारा निर्मित भवन,

5) उसकी मेज़ के भोजन, उसके साथ खाने वाले दरबारियों, उसके सेवकों की परिचर्या और परिधान, उसके मदिरा पिलाने वालों और प्रभु के मन्दिर में उसके द्वारा चढ़ायी हुई होम-बलियों को देखा, तो उसके होश उड़ गये

6) और उसने राजा से यह कहा, "मैने अपने देश में आपके और आपकी प्रज्ञा के विषय में जो चरचा सुनी थी, वह सच है।

7) जब तक मैंने आ कर अपनी आँखों से नहीं देखा, तब तक मुझे उस पर विश्वास नहीं था। सच पूछिए, तो मुझे आधा भी नहीं बताया गया था। मैंने जो चरचा सुनी थी, उसकी अपेक्षा आपकी प्रज्ञा और आपका वैभव कहीं अधिक श्रेष्ठ है।

8) धन्य है आपकी प्रजा और धन्य हैं आपके सेवक, जो आपके सामने उपस्थित रह कर आपकी विवेकपूर्ण बातें सुनते रहते हैं!

9) धन्य है प्रभु, आपका ईश्वर, जिसने आप पर प्रसन्न होकर आप को इस्राएल के सिंहासन पर बैठाया! इस्राएल के प्रति उसका प्रेम चिरस्थायी है, इसलिए उसने न्याय और धार्मिकता बनाये रखने के लिए आप को राजा के रूप में नियुक्त किया है।"

10) उसने राजा को एक सौ बीस मन सोना, बहुत अधिक सुगन्धित द्रव्य और बहुमूल्य रत्न प्रदान किये। शेबा की रानी ने जितना सुगन्धित द्रव्य सुलेमान को दिया, उतना फिर कभी नहीं लाया गया।

📙 सुसमाचार : मत्ती 7:14-23

14) किन्तु सँकरा है वह द्वार और संकीर्ण है वह मार्ग, जो जीवन की ओर ले जाता है। जो उसे पाते हैं, उनकी संख्या थोड़ी है।

15) "झूठे नबियों से सावधान रहो। वे भेड़ों के वेश में तुम्हारे पास आते हैं, किन्तु वे भीतर से खूँखार भेडि़ये हैं।

16) उनके फलों से तुम उन्हें पहचान जाओगे। क्या लोग कँटीली झाडि़यों से अंगूर या ऊँट-कटारों से अंजीर तोड़ते हैं?।

17) इस तरह हर अच्छा पेड़ अच्छे फल देता है और बुरा पेड़ बुरे फल देता है।

18) अच्छा पेड़ बुरे फल नहीं दे सकता और न बुरा पेड़ अच्छे फल।

19) जो पेड़ अच्छा फल नहीं देता, उसे काटा और आग में झोंक दिया जाता है।

20) इसलिए उनके फलों से तुम उन्हें पहचान जाओगे।

21) "जो लोग मुझे ’प्रभु ! प्रभु ! कह कर पुकारते हैं, उन में सब-के-सब स्वर्ग-राज्य में प्रवेश नहीं करेंगे। जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा।

22) उस दिन बहुत-से लोग मुझ से कहेंगे, ’प्रभु ! क्या हमने आपका नाम ले कर भविष्यवाणी नहीं की? आपका नाम ले कर अपदूतों को नहीं निकला? आपका नाम ले कर बहुत-से चमत्कार नहीं दिखाये?’

23) तब मैं उन्हें साफ-साफ बता दूँगा, ’मैंने तुम लोगों को कभी नहीं जाना। कुकर्मियों! मुझ से दूर हटो।’

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार के माध्यम से प्रभु येसु हमें सिखाते हैं कि वास्तविक सफाई जो मायने रखती है, वह बाहरी स्वच्छता नहीं है, बल्कि आंतरिक स्वच्छता है। यहूदी लोगों के पास खुद को शुद्ध करने के लिए कई अनुष्ठान थे। येसु दिल की शुद्धता की माँग करते हैं। वे कहते हैं, "जो मुहँ में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता है; बल्कि जो मुँह से निकालता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है" (मत्ती 15:11)। सभी पापों की कल्पना किसी न किसी व्यक्ति के दिल में की जाती है। येसु कहते हैं, "धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल हैं! वे ईश्वर के दर्शन करेंगे” (मत्ती 5:8)। शारीरिक और आध्यात्मिक स्वच्छता मानव जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रकाशना ग्रन्थ एक सौ चवालीस हजार लोगों के बारे में कहता है, “ये वे लोग हैं, जो स्त्रियों के संसर्ग से दूषित नहीं हुए हैं, ये कुँवारे हैं। जहाँ कहीं भी मेमना जाता है, ये उसके साथ चलते हैं। ईश्वर और मेमने के लिए प्रथम फल के रूप में इन्हें मनुष्यों में से खरीदा गया है। इनके मुख में झूठ नहीं पाया गयाः ये अनिन्द्य हैं।" (प्रकाशना 14: 4-5) संत पौलुस कहते हैं,"हमें इस प्रकार की प्रतिज्ञाएँ मिली हैं। इसलिए हम शरीर और मन के हर प्रकार के दूषण से अपने को शुद्ध करें और ईश्वर पर श्रद्धा रखते हुए पवित्रता की परिपूर्णता तक पहुँचने का प्रयत्न करते रहें।" (2कुरिन्थियों 7:1)।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Through today’s gospel Jesus teaches us that the real cleanliness that matters is not so much external cleanliness, but internal cleanliness. The Jewish people had many ritual ablutions to cleanse themselves. Jesus demands purity of heart. He says, “it is not what goes into the mouth that defiles a person, but it is what comes out of the mouth that defiles” (Mt 15:11). All sins are conceived in the heart of a person. Jesus says, “Blessed are the pure in heart, for they will see God” (Mt 5:8). Physical and spiritual cleanliness is very important for human life. The Book of Revelation speaks about one hundred and forty-four thousand people “who have not defiled themselves with women, for they are virgins; these follow the Lamb wherever he goes. They have been redeemed from humankind as first fruits for God and the Lamb, 5 and in their mouth no lie was found; they are blameless.” (Rev 14:4-5) St. Paul says, “Therefore, having these promises, beloved, let us cleanse ourselves from all defilement of flesh and spirit, perfecting holiness in the fear of God” (2Cor 7:1).

-Fr. Francis Scaria


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