वर्ष - 2, पाँचवाँ सप्ताह, शनिवार

📒 पहला पाठ: राजाओं का पहला ग्रन्थ 12:26-32;13:33-34

26) यूरोबआम ने अपने मन में यह कहा, ‘‘मेरा राज्य फिर दाऊद के घराने के अधिकार में आ जायेगा।

27) यदि वह प्रजा प्रभु के मन्दिर में बलि चढ़ाने के लिए येरुसालेम जाती रहेगी, तो उसका हृदय उसके स्वामी, यूदा के राजा रहबआम की ओर आकर्षित हो जायेगा। ये लोग मेरी हत्या करेंगे और यूदा के राजा रहबआम के पास लौटेंगे।’’

28) इस बात पर विचार करने के बाद राजा ने सोने के दो बछड़े बनवाये और लोगों से कहा, ‘‘तुम लोग बहुत समय तक येरुसालेम जाते रहे। इस्राएलियों! ये ही वे देवता हैं, जो तुम लोगों को मिस्र से निकाल लाये।’’

29) उसने एक मूर्ति बेतेल में स्थापित की और दूसरी मूर्ति दान में।

30) यह लोगों के लिए पाप का कारण बना; क्योंकि वे उन मूर्तियों की उपासना करने के लिए बेतेल और दान जाया करते थे।

31) राजा ने पहाड़ियों पर भी पूजास्थान बनवाये और उनके लिए जनसाधारण में ऐसे लोगों को पुरोहित के रूप में नियुक्त किया, जो लेवीवंशी नहीं थे।

32) यरोबआम ने आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन एक पर्व का भी प्रवर्तन किया, जो यूदा में होने वाले पर्व के सदृश था। उस अवसर पर उसने अपने द्वारा बेतेल में स्थापति वेदी पर उन बछड़ों की बलि चढ़ायी, जिन्हें उसने बनवाया था। उसने पहाड़ियों पर बनवाये पूजास्थानों के पुरोहितों को बेतेल में नियुक्त किया।

33) फिर भी यरोबआम ने अपना पापाचरण नहीं छोड़ा। वह पहाड़ी पूजास्थानों के लिए जनसाधारण में से पुरोहितों को नियुक्त करता जाता था। जो भी चाहता था, यरोबआम उसका किसी पहाड़ी पूजास्थान के पुरोहित के रूप में अभिशेक करता था।

34) यही यरोबआम के घराने के लिए पाप का अवसर बना और यही कारण है कि आगे चल कर उसके राज्य का पतन हुआ और पृथ्वी पर से उसका अस्तित्व मिला दिया गया है।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 8:01-10

1) उस समय फिर एक विशाल जन-समूह एकत्र हो गया था और लोगों के पास खाने को कुछ भी नहीं था। ईसा ने अपने शिष्यों को अपने पास बुला कर कहा,

2) ’’मुझे इन लोगों पर तरस आता है। ये तीन दिनों से मेरे साथ रह रहे हैं और इनके पास खाने को कुछ भी नहीं है।

3) यदि मैं इन्हें भूखा ही घर भेजूँ, तो ये रास्ते में मूच्र्छित हो जायेंगे। इन में कुछ लोग दूर से आये हैं।’’

4) उनके शिष्यों ने उत्तर दिया, ’’इस निर्जन स्थान में इन लोगों को खिलाने के लिए कहाँ से रोटियाँ मिलेंगी?’’

5) ईसा ने उन से पूछा, ’’तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?’’ उन्होंने कहा, ’’सात’’।

6) ईसा ने लोगों को भूमि पर बैठ जाने का आदेश दिया और वे सात रोटियाँ ले कर धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी, और वे रोटियाँ तोड़-तोड़ कर शिष्यों को देते गये, ताकि वे लोगों को परोसते जायें। शिष्यों ने ऐसा ही किया।

7) उनके पास कुछ छोटी मछलियाँ भी थीं। ईसा ने उन पर आशिष की प्रार्थना पढ़ी और उन्हें भी बाँटने का आदेश दिया।

8) लोगों ने खाया और खा कर तृप्त हो गये और बचे हुए टुकड़ों से सात टोकरे भर गये।

9) खाने वालों की संख्या लगभग चार हज़ार थी। ईसा ने लोगों को विदा कर दिया।

10) वे तुरन्त अपने शिष्यों के साथ नाव पर चढ़े और दलमनूथा प्रान्त पहॅुँचे।

📚 मनन-चिंतन

येसु को भीड़ पर तरस आया और वे अपनी करुणा से रोटियों का चमत्कार करते हैं। शून्य से एक चमत्कार करने के बजाय, वे उनसे मांग करते हैं कि उनके पास जो कुछ भी है वे उसे आगे लायें। सात रोटियों और कुछ छोटी मछलियों के साथ येसु ने चार हजार से अधिक लोगों को भोजन कराया। सात रोटियां और कुछ छोटी मछलियां सिर्फ एक या दो व्यक्तियों को खिलाने के लिए पर्याप्त होती। लेकिन जब उन्हें ईश्वर के हाथों में रखा जाता है, तो यह पूरी भीड़ के लिए पर्याप्त होता है। बचे हुए टुकड़ों से सात टोकरियाँ भरी गयी। पाँच रोटियों और दो मछलियों के चमत्कार में भी हम येसु को शिष्यों से माँग करते हुए पाते हैं कि उनके पास जो कुछ भी है उसे बाहर लायें। काना में जब येसु ने चमत्कार किया, तो वे चाहते थे कि नौकर पानी से मटके भरें। जब मानवीय उदारता ईश्वरीय प्रबंध से मिलती है, तो चमत्कार होता ही है। आइए हम ईश्वर और दूसरे लोगों के प्रति उदार बनें ताकि हम अपने दैनिक जीवन में चमत्कारों का अनुभव कर सकें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Jesus had compassion for the crowd and that compassion makes him multiply bread for them. Instead of working a miracle from nothing, he demands them to bring forward whatever they had. With seven loaves and a few small fishes Jesus fed over four thousand people. Seven loaves and a few small fishes would have been just enough to feed one or two persons. But when they are placed in the hands of God, it is sufficient for the whole crowd. The leftovers filled seven baskets. In the multiplication of the five loaves and two fish too we find Jesus demanding the disciples to bring out whatever they have. At Cana when Jesus worked the miracle, he wanted the servants to fill the jars with water. When human generosity meets divine providence, there is a miracle. Let us be generous to God and His people so that we can experience miracles in our daily lives.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!