वर्ष - 2, छठवाँ सप्ताह, सोमवार

📒 पहला पाठ: याकूब का पत्र 1:1-11

1) यह पत्र ईश्वर और प्रभु ईसा मसीह के सेवक याकूब की ओर से है। संसार भर में बिखरे हुए बारह वंशों को नमस्कार!

2) भाइयो! जब आप लोगों को अनेक प्रकार की विपत्तियों का सामना करना पड़े, तो अपने को धन्य समझिए।

3) आप जानते हैं कि आपके विश्वास का इस प्रकार का परीक्षण धैर्य उत्पन्न करता है।

4) धैर्य को पूर्णता तक पहुँचने दीजिए, जिससे आप लोग स्वयं पूर्ण तथा अनिन्द्य बन जायें और आप में किसी बात की कमी नहीं रहे।

5) यदि आप लोगों में किसी में प्रज्ञा का अभाव हो, तो वह ईश्वर से प्रार्थना करे और उसे प्रज्ञा मिलेगी; क्योंकि ईश्वर खुले हाथ और खुशी से सबों को देता है।

6) किन्तु उसे विश्वास के साथ और सन्देह किये बिना प्रार्थना चाहिए; क्योंकि जो सन्देह करता है, वह समुद्र की लहरों के सदृश है, जो हवा से इधर-उधर उछाली जाती हैं।

7) ऐसा व्यक्ति यह न समझे कि उसे ईश्वर की ओर से कुछ मिलेगा;

8) क्योंकि उसका मन अस्थिर और उसका सारा आचरण अनिश्चित है।

9) जो भाई दरिद्र है, वह ईश्वर द्वारा प्रदत्त अपनी श्रेष्ठता पर गौरव करे।

10) जो धनी है, वह अपनी हीनता पर गौरव करे; क्योंकि वह घास के फूल की तरह नष्ट हो जायेगा।

11) जब सूर्य उगता है और लू चलने लगती है, तो घास मुरझाती है, फूल झड़ता है और उसकी कान्ति नष्ट हो जाती है। इसी तरह धनी और उसका सारा कारबार समाप्त हो जायेगा।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 8:11-13

11) फ़रीसी आ कर ईसा से विवाद करने लगे। उनकी परीक्षा लेने के लिए वे स्वर्ग की ओर का कोई चिन्ह माँगते थे।

12) ईसा ने गहरी आह भर कर कहा, ’’यह पीढ़ी चिन्ह क्यों माँगती है? मैं तुम लोगों से यह कहता हॅू- इस पीढ़ी को कोई भी चिन्ह नहीं दिया जायेगा।’’

13) इस पर ईसा उन्हें छोड़ कर नाव पर चढ़े और उस पार चले गये।

📚 मनन-चिंतन

नबी इसायाह के ग्रन्थ के अध्याय 7 में प्रभु राजा आहाज़ से कोई चिह्न माँगने को कहते हैं, परन्तु अहाज़ ने चिह्न माँग कर प्रभु की परीक्षा लेने से इनकार किया। यह येसु के दुनिया में आने के बारे में एक भविष्यवाणी का अवसर बन जाता है जिसे हम इसायाह 7:14 में देखते हैं। आज के सुसमाचार में फरीसी येसु से एक चिह्न की मांग करते हैं। प्रभु येसु उनकी माँग नहीं मानते हैं क्योंकि वे जो उन सबके सामने थे, ईश्वर का सब से बडा चिह्न थे। येसु अदृश्य ईश्वर का दृश्य रूप थे। यही कारण है कि लूकस 11:29 में, येसु कहते हैं, “यह एक विधर्मी पीढ़ी है। यह एक चिह्न माँगती है, परन्तु नबी योनस के चिन्ह को छोड़ इसे और कोई चिन्ह नहीं दिया जायेगा।” विश्वास प्रभु का एक वरदान है जो प्रभु के प्रति खुले लोगों को प्राप्त होता है। फरीसी ईश्वर के प्रति खुले नहीं थे और इसलिए उन्हें विश्वास नहीं होता कि कौन-से संकेत उन्हें दिए गए थे। अमीर और लाज़रुस के दृष्टांत में, इब्राहीम अमीर आदमी को उसके भाइयों के बारे में बताते हैं, "जब वे मूसा और नबियों की नहीं सुनते, तब यदि मुरदों में से कोई जी उठे, तो वे उसकी बात भी नहीं मानेंगे’"(लूकस 16: 31)। क्या हमारे मन और हृदय समय के संकेतों के लिए खुले हैं?

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In Isaiah 7 we find God telling Ahaz to ask for a sign, but Ahaz refused to put the Lord to test by asking a sign. This becomes the occasion for a prophecy about Jesus’ coming into the world which we see in Is 7:14. In today’s gospel the Pharisees demanded a sign from Jesus. Jesus simply did not entertain their request because Jesus who was before their very eyes was the greatest sign of God. Jesus was the visible form of the invisible God. That is why in Lk 11:29, Jesus says, “This generation is an evil generation; it asks for a sign, but no sign will be given to it except the sign of Jonah.” Faith is a gift of God which people who are open to God receive. The Pharisees were not open to God and so they would not believe even if signs were given to them. In the parable of the rich man and Lazarus, Abraham tells the rich man about the rich man’s brothers, “If they do not listen to Moses and the prophets, neither will they be convinced even if someone rises from the dead” (Lk 16:31). Are we open to the signs of the times?

-Fr. Francis Scaria


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