वर्ष - 2, छठवाँ सप्ताह, मंगलवार

📒 पहला पाठ: याकूब का पत्र 1:12-18

12) धन्य है वह, जो विपत्ति में दृढ़ बना रहता है; परीक्षा में खरा उतरने पर उसे जीवन का वह मुकुट प्राप्त होगा, जिसे प्रभु ने अपने भक्तों को देने की प्रतिज्ञा की है।

13) प्रलोभन में पड़ा हुआ कोई भी व्यक्ति यह न कहे कि ईश्वर मुझे प्रलोभन देता है। ईश्वर न तो बुराई के प्रलोभन में पड़ सकता और न किसी को प्रलोभन देता है।

14) जो प्रलोभन में पड़ता है, वह अपनी ही वासना द्वारा खींचा और बहकाया जाता है।

15) वासना के गर्भ से पाप का जन्म होता है और पाप विकसित हो कर मृत्यु को जन्म देता है।

16) प्रिय भाइयो! आप गलती न करें।

17) सभी उत्तम दान और सभी पूर्ण वरदान ऊपर के हैं और नक्षत्रों के उस सृष्टिकर्ता के यहाँ से उतरते हैं, जिसमें न तो केाई परिवर्तन है और न परिक्रमा के कारण कोई अन्धकार।

18) उसने अपनी ही इच्छा से सत्य की शिक्षा द्वारा हम को जीवन प्रदान किया, जिससे हम एक प्रकार से उसकी सृष्टि के प्रथम फल बनें।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 8:14-21

14) शिष्य रोटियाँ लेना भूल गये थे, और नाव में उनके पास एक ही रोटी थी।

15) उस समय ईसा ने उन्हें यह चेतावनी दी, ’’सावधान रहो। फ़रीसियों के ख़मीर और हेरोद के ख़मीर से बचते रहो’’।

16) इस पर वे आपस में कहने लगे, ’’हमारे पास रोटियाँ नहीं है, इसलिए यह ऐसा कहते हैं’’।

17) ईसा ने यह जान कर उन से कहा, ’’तुम लोग यह क्यों सोचते हो कि हमारे पास रोटियाँ नहीं है, इसलिए यह ऐसा कहते है? क्या तुम अब तक नहीं जान सके हो? नही समझ गये हो? क्या तुम्हारी बुद्धि मारी गयी है?

18) क्या आँखें रहते भी तुम देखते नहीं? और कान रहते भी तुम सुनते नहीं? क्या तुम्हें याद नही है-

19) जब मैने उन पाँच हज़ार लोगों के लिए पाँच रोटियाँ तोड़ीं, तो तुमने टूकड़ों के कितने टोकरे भरे थे?’’ शिष्यों ने उत्तर दिया, ’’बारह’’।

20) ’’और जब मैंने चार हज़ार लोगों के लिए सात रोटियाँ तोड़ीं, तो तुमने टुकड़ों के कितने टोकरे भरे थे?’’ उन्होंने उत्तर दिया, ’’सात’’।

21) इस पर ईसा ने उन से कहा, ’’क्या तुम लोग अब भी नहीं समझ सके?’’

📚 मनन-चिंतन

येसु ने अपने शिष्यों को फरीसियों की मानसिकता से प्रभावित होने के खिलाफ चेतावनी दी। येसु की अभिव्यक्ति पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, " सावधान रहो। फ़रीसियों के ख़मीर और हेरोद के ख़मीर से बचते रहो" (मारकुस 8:15)। फरीसी पाखंड और आत्म-धार्मिक दृष्टिकोण से संक्रमित थे। हेरोद अपनी दुनियादारी और अपने पद की राजनीतिक शक्ति के दुरुपयोग के लिए कुख्यात था। आटा की एक बड़ी मात्रा के लिए खमीर की एक छोटी मात्रा का उपयोग किया जाता है। खमीर की छोटी मात्रा पूरे आटे को प्रभावित करती है। येसु अपने शिष्यों को चेतावनी देना चाहते हैं कि थोड़ी-सी भी फ़ारीसियों की मानसिकता या हेरोद की जीवन-शैली उनके जीवन को बर्बाद कर सकती है। उन्हें इन प्रभावों के खिलाफ चौकस रहने के लिए कहा गया है। इस विषय में, संत पौलुस कहते हैं, "आप पुराना ख़मीर निकाल कर शुद्ध हो जायें, जिससे आप नया सना हुआ आटा बन जायें। आप को बेख़मीर रोटी-जैसा बनना चाहिए क्योंकि हमारा पास्का का मेमना अर्थात् मसीह बलि चढ़ाये जा चुके हैं। इसलिए हमें न तो पुराने खमीर से और न बुराई और दुष्टता के खमीर से बल्कि शुद्धता और सच्चाई की बेख़मीर रोटी से पर्व मनाना चाहिए।“ (1कुरिन्थियों 5: 7-8)। हमें बुराई के प्रभाव को दूर रखना चाहिए। प्रवक्ता 21: 2-3 में हम पढ़ते हैं, “साँप के सामने की तरह पाप से दूर भाग जाओ। यदि पास आओगे, तो वह तुम को काटेगा। उसके दाँत सिंह के दाँतो-जैसे हैं; वे मनुष्य की आत्माओें का विनाश करते हैं।” हमें समाज के नकारात्मक प्रभावों के सामने सतर्क रहना चाहिए।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Jesus warned his disciples against being influenced by the Pharisaic mentality. It is significant to note the expression of Jesus. He said, “Watch out—beware of the yeast of the Pharisees and the yeast of Herod” (Mk 8:15). The Pharisees were infected by hypocrisy and self-righteous attitude. Herod was notorious for his worldliness and abuse of the political power of his office. A small quantity of yeast is used for a large quantity of dough. The small quantity of yeast ferments and influences the whole dough. Jesus wants to warn his disciples that even a small bit of pharisaic mentality or the life-style of Herod can ruin their life. They were told to be watchful against these influences. In this line, St. Paul says, “Clean out the old yeast so that you may be a new batch, as you really are unleavened. For our paschal lamb, Christ, has been sacrificed. Therefore, let us celebrate the festival, not with the old yeast, the yeast of malice and evil, but with the unleavened bread of sincerity and truth.” (1Cor 5:7-8). Evil influences should be kept away. In Sirach 21:2-3 we read, “Flee from sin as from a snake; for if you approach sin, it will bite you. Its teeth are lion’s teeth, and can destroy human lives. All lawlessness is like a two-edged sword; there is no healing for the wound it inflicts.” We need to be careful to be cautioned by evil influences in society.

-Fr. Francis Scaria


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!