वर्ष - 2, छठवाँ सप्ताह, बुधवार

📒 पहला पाठ: याकूब का पत्र 1:19-27

19) प्रिय भाइयो! आप यह अच्छी तरह समझ लें। प्रत्येक व्यक्ति सुनने के लिए तत्पर रहे, किन्तु बोलने और क्रोध में देर करें;

20) क्योंकि मनुष्य का क्रोध उस धार्मिकता में सहायक नहीं होता, जिसे ईश्वर चाहता है।

21) इसलिए आप लोग हर प्रकार की मलिनता और बुराई को दूर कर नम्रतापूर्वक ईश्वर का वह वचन ग्रहण करें, जो आप में रोपा गया है और आपकी आत्माओं का उद्धार करने में समर्थ है।

22) आप लोग अपने को धोखा नहीं दें। वचन के श्रोता ही नहीं, बल्कि उसके पालनकर्ता भी बनें।

23) जो व्यक्ति वचन सुनता है, किन्तु उसके अनुसार आचरण नहीं करता, वह उस मनुष्य के सदृश है, जो दर्पण में अपना चेहरा देखता है।

24) वह अपने को देख कर चला जाता है और उसे याद नहीं रहता कि उसका अपना स्वरूप कैसा है।

25) किन्तु जो व्यक्ति इस संहिता को, जो पूर्ण है और हमें स्वतन्त्रता प्रदान करती है, ध्यान से देता है और उसका पालन करता है, वह उस श्रोता के सदृश नहीं, जो तुरन्त भूल जाता है, बल्कि वह कर्ता बन जाता और उस संहिता को अपने जीवन में चरितार्थ करता है। वह अपने आचरण के कारण धन्य होगा।

26) यदि कोई अपने को धार्मिक मानता है, किन्तु अपनी जीभ पर नियन्त्रण नहीं रखता, तो वह अपने को धोखा देता है और उसका धर्माचरण व्यर्थ है।

27) हमारे ईश्वर और पिता की दृष्टि में शुद्ध और निर्मल धर्माचरण यह है- विपत्ति में पड़े हुए अनाथों और विधवाओं की सहायता करना और अपने को संसार के दूषण से बचाये रखना।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 8:22-26

22) वे बेथसाइदा पहुँचे। लोग एक अन्धे को ईसा के पास ले आये और उन से यह प्रार्थना की कि आप उस पर हाथ रख दीजिए।

23) वे अन्धे का हाथ पकड़ कर उसे गाँव के बाहर ले गये। वहाँ उन्होंने उसकी आँखों पर अपना थूक लगा कर और उस पर हाथ रख कर उस से पूछा, "क्या तुम्हें कुछ दिखाई दे रहा है?"

24) अन्धा कुछ-कुछ देखने लगा था, इसलिए उसने उत्तर दिया, "मैं लोगों को देखता हूँ। वे पेड़ों-जैसे लगते, लेकिन चलते हैं।"

25) तब उन्होंने फिर अन्धे को आँखों पर हाथ रख दिये और वह अच्छी तरह देखने लगा। वह चंगा हो गया और दूर तक सब कुछ साफ़-साफ़ देख सकता था।

26) ईसा ने यह कहते हुए उसे घर भेजा, "इस गाँव में पैर मत रखना"।

📚 मनन-चिंतन

आज का सुसमाचार बताता है कि कैसे येसु ने बेथसाइदा में एक अंधे व्यक्ति को चंगा किया था। वे अन्धे का हाथ पकड़ कर उसे गाँव के बाहर ले जाते हैं। वे उसे चरणों में चंगा करते हैं। अंधा आदमी धीरे-धीरे देखने लगता है। शुरू में वह अस्पष्ट देखता है। अंत में, वह सब कुछ स्पष्ट रूप से देखता है। फिर येसु ने उसे गाँव में न जाने को कहा। इस तथ्य से कि येसु ने उसे गाँव से निकाल दिया और उसे चेतावनी दी कि वह गाँव में न जाए, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि गाँव के वातावरण का उसके दुर्भाग्य से कुछ लेना-देना है। संभवतः येसु गांव के बुरे प्रभावों और ताकतों के खिलाफ चेतावनी दे रहे थे। बेथसाइदा उन स्थानों में से एक है जहाँ येसु ने ईश्वर के कार्य का सहयोग न देने के बारे में चेतावनी दी थी। मत्ती 11:21-22 में प्रभु कहते हैं, “"धिक्कार तुझे, खोराज़िन! धिक्कार तुझे, बेथसाइदा! जो चमत्कार तुम में किये गये हैं, यदि वे तीरूस और सिदोन में किये गये होते, तो उन्होंने न जाने कब से टाट ओढ़ कर और भस्म रमा कर पश्चाताप किया होता। इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, न्याय के दिन तेरी दशा की अपेक्षा तीरूस और सिदोन की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी।“ येसु शायद हमें बुरी परिस्थितियों और दोस्ती के खिलाफ चेतावनी देते हैं, जिनसे हमें ख्रीस्तीय जीवन में बचने की जरूरत है।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Today’s gospel narrates how Jesus healed a blind man at Bethsaida. He leads the blind man by the hand outside the village. He heals him in stages. The blind man receives healing in a gradual process. Initially he sees dimly and vaguely. Finally, he sees everything plainly and distinctly. At the end Jesus tells him not to go into the village. From the fact that Jesus took him out of the village and warned him not to go into the village, we can conclude that the atmosphere in the village has something to do with his misfortune. Probably Jesus was warning against the evil influences and forces in the village. Bethsaida is one of the places Jesus warned about for not responding to the work of God. In Mt 11:21-22, Jesus says, “Woe to you, Chorazin! Woe to you, Bethsaida! For if the deeds of power done in you had been done in Tyre and Sidon, they would have repented long ago in sackcloth and ashes. But I tell you, on the day of judgment it will be more tolerable for Tyre and Sidon than for you.” Jesus probably warns us against evil circumstances and friendships that we need avoid in Christian life.

-Fr. Francis Scaria


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