वर्ष - 2, छठवाँ सप्ताह, गुरुवार

📒 पहला पाठ: याकूब का पत्र 2:1-9

19) प्रिय भाइयो! आप यह अच्छी तरह समझ लें। प्रत्येक व्यक्ति सुनने के लिए तत्पर रहे, किन्तु बोलने और क्रोध में देर करें;

20) क्योंकि मनुष्य का क्रोध उस धार्मिकता में सहायक नहीं होता, जिसे ईश्वर चाहता है।

21) इसलिए आप लोग हर प्रकार की मलिनता और बुराई को दूर कर नम्रतापूर्वक ईश्वर का वह वचन ग्रहण करें, जो आप में रोपा गया है और आपकी आत्माओं का उद्धार करने में समर्थ है।

22) आप लोग अपने को धोखा नहीं दें। वचन के श्रोता ही नहीं, बल्कि उसके पालनकर्ता भी बनें।

23) जो व्यक्ति वचन सुनता है, किन्तु उसके अनुसार आचरण नहीं करता, वह उस मनुष्य के सदृश है, जो दर्पण में अपना चेहरा देखता है।

24) वह अपने को देख कर चला जाता है और उसे याद नहीं रहता कि उसका अपना स्वरूप कैसा है।

25) किन्तु जो व्यक्ति इस संहिता को, जो पूर्ण है और हमें स्वतन्त्रता प्रदान करती है, ध्यान से देता है और उसका पालन करता है, वह उस श्रोता के सदृश नहीं, जो तुरन्त भूल जाता है, बल्कि वह कर्ता बन जाता और उस संहिता को अपने जीवन में चरितार्थ करता है। वह अपने आचरण के कारण धन्य होगा।

26) यदि कोई अपने को धार्मिक मानता है, किन्तु अपनी जीभ पर नियन्त्रण नहीं रखता, तो वह अपने को धोखा देता है और उसका धर्माचरण व्यर्थ है।

27) हमारे ईश्वर और पिता की दृष्टि में शुद्ध और निर्मल धर्माचरण यह है- विपत्ति में पड़े हुए अनाथों और विधवाओं की सहायता करना और अपने को संसार के दूषण से बचाये रखना।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 8:27-33

27) ईसा अपने शिष्यों के साथ कैसरिया फि़लिपी के गाँवों की ओर गये। रास्ते में उन्होंने अपने शिष्यों से पूछा, "मैं कौन हूँ, इस विषय में लोग क्या कहते हैं?"

28) उन्होंने उत्तर दिया, "योहन बपतिस्ता; कुछ लोग कहते हैं- एलियस, और कुछ लोग कहते हैं- नबियों में से कोई"।

29) इस पर ईसा ने पूछा, "और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?" पेत्रुस ने उत्तर दिया, "आप मसीह हैं"।

30) इस पर उन्होंने अपने शिष्यों को कड़ी चेतावनी दी कि तुम लोग मेरे विषय में किसी को भी नहीं बताना।

31) उस समय से ईसा अपने शिष्यों को स्पष्ट शब्दों में यह समझाने लगे कि मानव पुत्र को बहुत दुःख उठाना होगा; नेताओं, महायाजकों और शास्त्रियों द्वारा ठुकराया जाना, मार डाला जाना और तीन दिन के बाद जी उठना होगा।

32) पेत्रुस ईसा को अलग ले जा कर फटकारने लगा,

33) किन्तु ईसा ने मुड़ कर अपने शिष्यों की ओर देखा, और पेत्रुस को डाँटते हुए कहा, "हट जाओ, शैतान! तुम ईश्वर की बातें नहीं, बल्कि मनुष्यों की बातें सोचते हो"।

📚 मनन-चिंतन

कैसरिया फिलिप्पी राजनीतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण शहर था। शहर का नाम ही हमंभ महान राजनीतिक हस्तियों की याद दिलाता है। ऐतिहासिक रूप से भी कैसरिया फिलिप्पी एक महत्वपूर्ण स्थान था। यह कई मंदिरों और वेदियों का शहर था। येसु चाहते हैं कि इस प्रकार की जगह पर उनके शिष्य यह व्यक्त करें कि वे उनके लिए कौन हैं; यानि उनके बारे में वे क्या समझते हैं। कुछ लोगों का यह मानना था योहन बपतिस्ता, जिनका सिर काट दिया गया था, वापस आ गए। कुछ लोग यह सोच रहे थे इ नबी एलिय्याह, जो आग के रथ में उठा लिये गए थे, जीवन में वापस आ गए हैं। कुछ लोग येसु को नबी मानते थे। लेकिन संत पेत्रुस ने पवित्र आत्मा के प्रभाव से कहा, "आप मसीह हैं"। येसु चाहते थे कि शिष्य आगे यह भी समझ लें कि मसीह के लिए दुख और मृत्यु आवश्यक है। शैतान येसु को अपने क्रूस से हटाने की हर संभव कोशिश कर रहा था। इस प्रकार वह स्वर्गिक पिता की योजना को बिगाड़ना चाहता था। प्रभु येसु चाहते है कि पेत्रुस और उसके साथी बुराई के संकेतों के बारे में सतर्क रहें और जहां भी शैतान खुद को प्रस्तुत करता है, वहाँ वे उसका विरोध करें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Caesarea Philippi was a politically, historically and religiously important town. The name of the town itself reminds us of great political figures. Historically too Caesarea Philippi was an important place. It was a town of a number of temples and shrines. It is in this place that Jesus wanted his disciples to express what they had understood about him. Some people thought that John the Baptist who had been beheaded had come back to life. Some thought that Elijah the Prophet who had been taken up in the fiery chariot had come back to life. Some believed Jesus to be a prophet. But under the influence of the Spirit of the Living God Peter proclaimed, “You are the Christ”. Jesus wanted the disciples to understand further that suffering and death were essential for the Christ. The devil would have liked to divert Jesus from his cross, and thereby spoil the plan of the Heavenly Father to redeem humanity. Jesus wants Peter and his companions to be alert about the promptings of the evil one and resist him wherever he presents himself.

-Fr. Francis Scaria


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!