वर्ष - 2, छठवाँ सप्ताह, शनिवार

📒 पहला पाठ: याकूब का पत्र 3:1-10

1) भाइयो! आप लोगों में बहुत लोग गुरु न बनें, क्योंकि आप जानते हैं कि हम गुरुओं से अधिक कड़ाई से लेखा मांगा जायेगा।

2) हम सब बारम्बार गलत काम करते हैं। जो कभी गलत बात नहीं कहता, वह पहुँचा हुआ मनुष्य है और वह अपने पूर्ण शरीर को नियन्त्रण में रख सकता है।

3) यदि हम घोड़ों को वश में रखने के लिए उनके मुंह में लगाम लगाते हैं, तो उनके सारे शरीर को इधर-उधर घुमा सकते हैं।

4) जहाज का उदाहरण लीजिए। वह कितना ही बड़ा क्यों न हो और तेज हवा से भले ही बहाया जा रहा हो, तब भी वह कर्णधार की इच्छा के अनुसार एक छोटी सी पतवार से चलाया जाता है।

5) इसी प्रकार जीभ शरीर का एक छोटा-सा अंग है, किन्तु वह शक्तिशाली होने का दावा कर सकती है। देखिए, एक-छोटी-सी चिनगारी कितने विशाल वन में आग लगा सकती है।

6) जीभ भी एक आग है, जो हमारे अंगों के बीच हर प्रकार की बुराई का स्रोत है। वह हमारा समस्त शरीर दूषित करती और नरकाग्नि से प्रज्वलित हो कर हमारे पूरे जीवन में आग लगा देती है।

7) हर प्रकार के पशु और पक्षी, रेंगने वाले और जलचर जीवजन्तु- सब-के-सब मानव जाति द्वारा वश में किये जा सकते हैं या वश में किये जा चुके हैं,

8) किन्तु कोई मनुष्य अपनी जीभ को वश में नहीं कर सकता। वह एक ऐसी बुराई है, जो कभी शान्त नहीं रहती और प्राणघातक विष से भरी हुई है।

9) हम उस से अपने प्रभु एवं पिता की स्तुति करते हैं और उसी से मनुष्यों को अभिशाप देते हैं, जिन्हें ईश्वर ने अपना प्रतिरूप बनाया है।

10) एक ही मुख से स्तुति भी निकलती है और अभिशाप भी। मेरे भाइयो! यह उचित नहीं है।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 9:2-13

2) छः दिन बाद ईसा ने पेत्रुस, याकूब और योहन को अपने साथ ले लिया और वह उन्हें एक ऊँचे पहाड़ पर एकान्त में ले चले। उनके सामने ही ईसा का रूपान्तरण हो गया।

3) उनके वस्त्र ऐसे चमकीले और उजले हो गये कि दुनिया का कोई भी धोबी उन्हें उतना उजला नहीं कर सकता।

4) शिष्यों को एलियस और मूसा दिखाई दिये-वे ईसा के साथ बातचीत कर रहे थे।

5) उस समय पेत्रुस ने ईसा से कहा, "गुरुवर! यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है! हम तीन तम्बू खड़े कर दें- एक आपके लिए, एक मूसा और एक एलियस के लिए।"

6) उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे, क्योंकि वे सब बहुत डर गये थे।

7) तब एक बादल आ कर उन पर छा गया और उस बादल में से यह वाणी सुनाई दी, "यह मेरा प्रिय पुत्र है। इसकी सुनो।"

8) इसके तुरन्त बाद जब शिष्यों ने अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ायी, तो उन्हें ईसा के सिवा और कोई नहीं दिखाई पड़ा।

9) ईसा ने पहाड़ से उतरते समय उन्हें आदेश दिया कि जब तक मानव पुत्र मृतकों में से न जी उठे, तब तक तुम लोगों ने जो देखा है, उसकी चर्चा किसी से नहीं करोगे।

10) उन्होंने ईसा की यह बात मान ली, परन्तु वे आपस में विचार-विमर्श करते थे कि ’मृतकों में से जी उठने’ का अर्थ क्या हो सकता है।

11) उन्होंने ईसा से पूछा, "शास्त्री यह क्यों कहते हैं कि पहले एलियस को आना है?"

12) ईसा ने उत्तर दिया, "एलियस अवश्य पहले सब ठीक करने आता है। फिर मानव पुत्र के विषय में यह क्यों लिखा है कि वह बहुत दुःख उठायेगा और तिरस्कृत किया जायेगा?

13) मैं तुम से कहता हूँ - एलियस आ चुका है और उसके विषय में जैसे लिखा है, उन्होंने उसके साथ वैसा ही मनमाना व्यवहार किया है।"


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