वर्ष - 2, सातवाँ सप्ताह, सोमवार

📒 पहला पाठ : याकूब 3:13-18

13) आप लोगों में जो ज्ञानी और समझदार होने का दावा करते हैं, वह अपने सदाचरण द्वारा, अपने नम्र तथा बुद्धिमान व्यवहार द्वारा इस बात का प्रमाण दें।

14) यदि आपका हृदय कटु ईर्ष्या और स्वार्थ से भरा हुआ है, तो डींग मार कर झूठा दावा मत करें।

15) इस प्रकार की बुद्धि ऊपर से नहीं आती, बल्कि वह पार्थिव, पाशविक और शैतानी है।

16) जहाँ ईर्ष्या और स्वार्थ है, वहाँ अशान्ति और हर तरह की बुराई पायी जाती है।

17) किन्तु उपर से आयी हुई प्रज्ञा मुख्यतः पवित्र है और वह शान्तिप्रिय, सहनशील, विनम्र, करुणामय, परोपकारी, पक्षपातहीन और निष्कपट भी है।

18) धार्मिकता शान्ति के क्षेत्र में बोयी जाती है और शान्ति स्थापित करने वाले उसका फल प्राप्त करते हैं।

📙 सुसमाचार : मारकुस 9:14-29

14) जब वे शिष्यों के पास लौटे, तो उन्होंने देखा कि बहुत-से लोग उनके चारों और इकट्ठे हो गये हैं और कुछ शास्त्री उन स विवाद कर रहे हैं।

15) ईसा को देखते ही लोग अचम्भे में पड़ गये और दौड़ते हुए उन्हें प्रणाम करने आये।

16) ईसा ने उन से पूछा, "तुम लोग इनके साथ क्या विवाद कर रहे हो?"

17) भीड़ में से एक ने उत्तर दिया, "गुरुवर! मैं अपने बेटे को, जो एक गूँगे अपदूत के वश में है, आपके पास ले आया हूँ।

18) वह जहाँ कहीं उसे लगता है, उसे वहीं पटक देता है और लड़का फेन उगलता है, दाँत पीसता है और उसके अंग अकड़ जाते हैं। मैंने आपके शिष्यों से उसे निकालने को कहा, परन्तु वे ऐसा नहीं कर सके।"

19) ईसा ने उत्तर दिया, "अविश्वासी पीढ़ी! मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँ? कब तक तुम्हें सहता रहूँ? उस लड़के को मेरे पास ले आओ।"

20) वे उसे ईसा के पास ले आये। ईसा को देखते ही अपदूत ने लड़के को मरोड़ दिया। लड़का गिर गया और फेन उगलता हुआ भूमि पर लोटता रहा।

21) ईसा ने उसके पिता से पूछा, "इसे कब से ऐसा हो जाया करता है?" उसने उत्तर दिया, "बचपन से ही।

22) अपदूत ने इसका विनाश करने के लिए इसे बार-बार आग अथवा पानी में डाल दिया है। यदि आप कुछ कर सकें, तो हम पर तरस खा कर हमारी सहायता कीजिए।"

23) ईसा ने उस से कहा, "यदि आप कुछ कर सकें! विश्वास करने वाले के लिए सब कुछ सम्भव है।"

24) इस पर लड़के के पिता ने पुकार कर कहा, "मैं विश्वास करता हूँ, मेरे अल्प विश्वास की कमी पूरी कीजिए"।

25) ईसा ने देखा कि भीड़ बढ़ती जा रही है, इसलिए उन्होंने अशुद्ध आत्मा को यह कहते हुए डाँटा, "बहरे-गूँगे आत्मा! मैं तुझे आदेश देता हूँ- इस से निकल जा और इस में फिर कभी नहीं घुसना"।

26) अपदूत चिल्ला कर और लड़के को मरोड़ कर उस से निकल गया। लड़का मुरदा-सा पड़ा रहा, इसलिए बहुत-से लोग कहते थे, "यह मर गया है"।

27) परन्तु ईसा ने उसका हाथ पकड़ कर उसे उठाया और वह खड़ा हो गया।

28) जब ईसा घर पहुँचे, तो उनके शिष्यों ने एकान्त में उन से पूछा, "हम लोग उसे क्यों नहीं निकाल सके?"

29) उन्होंने उत्तर दिया, "प्रार्थना और उपवास के सिवा और किसी उपाय से यह जाति नहीं निकाली जा सकती।"

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में हम एक ऐसे व्यक्ति को पाते हैं जो गूँगेपन के अपदूत से पीडित अपने पुत्र को येसु के पास ले आता है। जब वह येसु को नहीं खोज पाता है, तो वह उसे चंगाई के लिए येसु के शिष्यों के पास ले जाता है। लेकिन शिष्य अपदूत को नहीं निकाल पाते हैं। जब येसु ने इसके बारे में सुना, तो उन्होंने उन्हें विश्वास की कमी के लिए डाँटा। तब लड़के के पिता ने येसु से कहा, "यदि आप कुछ कर सकें, तो हम पर तरस खा कर हमारी सहायता कीजिए"। इस अनुरोध से पता चला कि लड़के के पिता में भी अधिक विश्वास नहीं था। उन्हें यकीन नहीं था कि येसु इस तरह का चमत्कार कर सकते हैं। लेकिन नम्रता के साथ उन्होंने येसु से यह भी कहा, "मेरे अल्प विश्वास की कमी पूरी कीजिए"। इससे पता चलता है कि न तो शिष्यों में विश्वास था और न ही लड़के के पिता में कोई विश्वास था। स्वयं पीड़ित लड़का किसी भी विश्वास के प्रदर्शन करने की स्थिति में नहीं था। लेकिन हमारे प्रभु की महिमा इस में है कि उन्होंने उस लड़के को इस तथ्य के बावजूद भी चंगा किया कि बुरी आत्मा के पीड़ित लड़के से जुड़े किसी भी व्यक्ति में विश्वास नहीं पाया गया था। हमारे उदार ईश्वर दयालु और अनुकम्पामय हैं। आइए हम उनके दयालु प्रेम पर भरोसा करें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In today’s gospel we find a man bringing his son possessed by a spirit of dumbness to Jesus. When he could not find Jesus, he took him to the disciples of Jesus for healing. But the disciples could not drive it out. When Jesus heard about it, he chided them for their lack of faith. Then the boy’s father said to Jesus, “if you can do anything, have pity on us and help us”. This request revealed that the boy’s father too did not have much faith. He was not sure whether Jesus could do such a healing. But in humility he said to Jesus, “Help my lack of faith”. This shows that neither the disciples nor the father of the boy had any faith. The boy possessed by the demon himself was not in a position to demonstrate any faith. Normally Jesus demands faith for healing. But the magnanimity of our Lord is that he healed that boy in spite of the fact that there was no faith in any of the persons connected to the boy who was possessed by the evil spirit. Our generous God is compassionate and merciful. Let us rely on his merciful love.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!