वर्ष - 2, आठवाँ सप्ताह, सोमवार

पहला पाठ : पेत्रुस का पहला पत्र 1:3-9

3) धन्य है ईश्वर, हमारे प्रभु ईसा मसीह का पिता! मृतकों में से ईसा मसीह के पुनरुत्थान द्वारा उसने अपनी महती दया से हमें जीवन्त आशा से परिपूर्ण नवजीवन प्रदान किया।

4) आप लोगों के लिए जो विरासत स्वर्ग में रखी हुई है, वह अक्षय, अदूषित तथा अविनाशी है।

5) आपके विश्वास के कारण ईश्वर का सामर्थ्य आप को उस मुक्ति के लिए सुरक्षित रखता है, जो अभी से प्रस्तुत है और समय के अन्त में प्रकट होने वाली है।

6) यह आप लोगों के लिए बड़ेे आनन्द का विषय है, हांलांकि अभी, थोड़े समय के लिए, आपको अनेक प्रकार के कष्ट सहने पड़ रहे हैं।

7) यह इसलिए होता है कि आपका विश्वास परिश्रमिक खरा निकले। सोना भी तो आग में तपाया जाता है और आपका विश्वास नश्वर सोने से कहीं अधिक मूल्यवान है। इस प्रकार ईसा मसीह के प्रकट होने के दिन आप लोगों को प्रशंसा, सम्मान तथा महिमा प्राप्त होगी।

8) (8-9) आपने उन्हें कभी नहीं देखा, फिर भी आप उन्हें प्यार करते हैं। आप अब भी उन्हें नहीं देखते, फिर भी उन में विश्वास करते हैं। जब आप अपने विश्वास का प्रतिफल अर्थात् अपनी आत्मा की मुक्ति प्राप्त करेंगे, तो एक अकथनीय तथा दिव्य उल्लास से आनन्दित हो उठेंगे।

सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 10:17-27

17) ईसा किसी दिन प्रस्थान कर ही रहे थे कि एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और उनके सामने घुटने टेक कर उसने यह पूछा, ’’भले गुरु! अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?’’

18) ईसा ने उस से कहा, ’’मुझे भला क्यों कहते हो? ईश्वर को छोड़ कोई भला नहीं।

19) तुम आज्ञाओं को जानते हो, हत्या मत करो, व्यभिचार मत करो, चोरी मत करो, झूठी गवाही मत दो, किसी को मत ठगो, अपने माता-पिता का आदर करो।’’

20) उसने उत्तर दिया, ’’गुरुवर! इन सब का पालन तो मैं अपने बचपन से करता आया हूँ’’।

21) ईसा ने उसे ध्यानपूर्वक देखा और उनके हृदय में प्रेम उमड़ पड़ा। उन्होंने उस से कहा, ’’तुम में एक बात की कमी है। जाओ, अपना सब कुछ बेच कर ग़रीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हारे लिए पूँजी रखी रहेगी। तब आ कर मेरा अनुसरण करों।“

22) यह सुनकर उसका चेहरा उतर गया और वह बहुत उदास हो कर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।

23) ईसा ने चारों और दृष्टि दौड़ायी और अपने शिष्यों से कहा, ’’धनियों के लिए ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन होगा!

24) शिष्य यह बात सुन कर चकित रह गये। ईसा ने उन से फिर कहा, ’’बच्चों! ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है!

25) सूई के नाके से हो कर ऊँट निकलना अधिक सहज है, किन्तु धनी का ईश्वर के राज्य में प्रवेश़्ा करना कठिन है?’’

26) शिष्य और भी विस्मित हो गये और एक दूसरे से बोले, ’’तो फिर कौन बच सकता है?’’

27) उन्हें स्थिर दृष्टि से देखते हुए ईसा ने कहा, ’’मनुष्यों के लिए तो यह असम्भव है, ईश्वर के लिए नहीं; क्योंकि ईश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है’’।


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