वर्ष - 2, आठवाँ सप्ताह, बुधवार

पहला पाठ : पेत्रुस का पहला पत्र 1:18-25

18) आप लोग जानते हैं कि आपके पूर्वजों से चली आयी हुई निरर्थक जीवन-चर्या से आपका उद्धार सोने-चांदी जैसी नश्वर चीजों की कीमत पर नहीं हुआ है,

19) बल्कि एक निर्दोष तथा निष्कलंक मेमने अर्थात् मसीह के मूल्यवान् रक्त की कीमत पर।

20) वह संसार की सृष्टि से पहले ही नियुक्त किये गये थे, किन्तु समय के अन्त में आपके लिए प्रकट हुए।

21) आप लोग अब उन्हीं के द्वारा ईश्वर में विश्वास करते हैं। ईश्वर ने उन्हें मृतकों में से जिलाया और महिमान्वित किया; इसलिए आपका विश्वास और आपका भरोसा ईश्वर पर आधारित है।

22) आप लोगों ने आज्ञाकारी बन कर सत्य को स्वीकार किया और इस प्रकार अपनी आत्माओं को पवित्र कर लिया है; इसलिए अब आप लोगों को निष्कपट भ्रातृ-भाव, सारे हृदय और सच्ची लगन से एक दूसरे को प्यार करना चाहिए।

23) आपने दुबारा जन्म लिया है। आप लोगों का यह जन्म नश्वर जीवन-तत्व से नहीं, बल्कि ईश्वर के जीवन्त एवं शाश्वत वचन से हुआ है;

24) क्योंकि लिखा है -समस्त शरीरधारी घास के सदृश हैं और उनका सौन्दर्य घास के फूल की तरह। घास मुरझाती है और फूल झड़ता है,

25) किन्तु ईश्वर का वचन युग-युगों तक बना रहता है और यह वचन वह सुसमाचार है, जो आप को सुनाया गया है।

सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 10:32-45

32) वे येरुसालेम के मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे। ईसा शिष्यों के आगे-आगे चलते थे। शिष्य बहुत घबराये हुए थे और पीछे आने वाले लोग भयभीत थे। ईसा बारहों को फिर अलग ले जा कर उन्हें बताने लगे कि मुझ पर क्या-क्या बीतेगी,

33) ’’देखो, हम येरुसालेम जा रहे हैं। मानव पुत्र महायाजकों और शास्त्रियों के हवाले कर दिया जायेगा। वे उसे प्राणदण्ड की आज्ञा सुना कर गै़र-यहूदियों के हवाले कर देंगे,

34) उसका उपहास करेंगे, उस पर थूकेंगे, उसे कोड़े लगायेंगे और मार डालेंगे; लेकिन तीसरे दिन वह जी उठेगा।’’

35) ज़ेबेदी के पुत्र याकूब और योहन ईसा के पास आ कर बोले, ’’गुरुवर ! हमारी एक प्रार्थना है। आप उसे पूरा करें।’’

36) ईसा ने उत्तर दिया, ’’क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?’’

37) उन्होंने कहा, ’’अपने राज्य की महिमा में हम दोनों को अपने साथ बैठने दीजिए- एक को अपने दायें और एक को अपने बायें’’।

38) ईसा ने उन से कहा, ’’तुम नहीं जानते कि क्या माँग रहे हो। जो प्याला मुझे पीना है, क्या तुम उसे पी सकते हो और जो बपतिस्मा मुझे लेना है, क्या तुम उसे ले सकते हो?’’

39) उन्होंने उत्तर दिया, ’’हम यह कर सकते हैं’’। इस पर ईसा ने कहा, ’’जो प्याला मुझे पीना है, उसे तुम पियोगे और जो बपतिस्मा मुझे लेना है, उसे तुम लोगे;

40) किन्तु तुम्हें अपने दायें या बायें बैठने देने का अधिकार मेरा नहीं हैं। वे स्थान उन लोगों के लिए हैं, जिनके लिए वे तैयार किये गये हैं।’’

41) जब दस प्रेरितों को यह मालूम हुआ, तो वे याकूब और योहन पर क्रुद्ध हो गये।

42) ईसा ने उन्हें अपने पास बुला कर कहा, ’’तुम जानते हो कि जो संसार के अधिपति माने जाते हैं, वे अपनी प्रजा पर निरंकुश शासन करते हैं और सत्ताधारी लोगों पर अधिकार जताते हैं।

43) तुम में ऐसी बात नहीं होगी। जो तुम लोगों में बड़ा होना चाहता है, वह तुम्हारा सेवक बने

44) और जो तुम में प्रधान होना चाहता है, वह सब का दास बने;

45) क्योंकि मानव पुत्र भी अपनी सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने और बहुतों के उद्धार के लिए अपने प्राण देने आया है।’’


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