वर्ष - 2, आठवाँ सप्ताह, शुक्रवार

पहला पाठ : पेत्रुस का पहला पत्र 4:7-13

7) सृष्टि का अन्त निकट आ गया है। आप लेाग सन्तुलन तथा संयम रखें, जिससे आप प्रार्थना कर सकें।

8) मुख्य बात यह है कि आप आपस में गहरा भ्रातृप्रेम बनाये रखें, क्योंकि प्रेम बहुत-से पाप ढांक देता है।

9) आप खुशी से एक दूसरे का आतिथ्यसत्कार करें।

10) जिसे जो वरदान मिला है, वह ईश्वर के बहुविध अनुग्रह के सुयोग्य भण्डारी की तरह दूसरों की सेवा में उसका उपयोग करें।

11) जो प्रवचन देता है, उसे स्मरण रहे कि वह ईश्वर के शब्द बोल रहा है। जो धर्मसेवा करता है वह जान ले कि ईश्वर की उसे बल प्रदान करता है। इस प्रकार सब बातों में ईसा मसीह द्वारा ईश्वर की महिमा प्रकट हो जायेगी। उसी को युग-युगों तक महिमा तथा अधिकार! आमेन!

12) प्यारे भाइयो! आप लोगों की परीक्षा अग्नि से ली जा रही है। आप इस पर आश्चर्य नहीं करें, मानो यह कोई असाधारण घटना हो।

13) यदि आप लोगों पर अत्याचार किया जाये, तो मसीह के दुःख-भोग के सहभागी बन जाने के नाते प्रसन्न हों। जिस दिन मसीह की महिमा प्रकट होगी, आप लोग अत्यधिक आनन्दित हो उठेंगे।

सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 11:11-26

11) ईसा ने येरूसालेम पहुँच कर मन्दिर में प्रवेश किया। वहाँ सब कुछ अच्छी तरह देख कर वह अपने शिष्यों के साथ बेथानिया चले गये, क्योंकि सन्ध्या हो चली थी।

12) दूसरे दिन जब वे बेथानिया से आ रहे थे, तो ईसा को भूख लगी।

13) वे कुछ दूरी पर एक पत्तेदार अंजीर का पेड़ देख कर उसके पास गये कि शायद उस पर कुछ फल मिलें; किन्तु पास आने पर उन्होंने पत्तों के सिवा और कुछ नहीं पाया, क्योंकि वह अंजीर का मौसम नहीं था।

14) ईसा ने पेड़ से कहा, "फिर कभी कोई तेरे फल न खाये"। उनके शिष्यों ने उन्हें यह कहते सुना।

15) वे येरूसालेम पहुँचे। मन्दिर में प्रवेश कर ईसा वहाँ से बेचने और ख़रीदने वालों को बाहर निकालने लगे। उन्होंने सराफ़ों की मेज़ें और कबूतर बेचने वालों की चैकियाँ उलट दीं

16) और वे किसी को भी घड़ा लिये मन्दिर से हो कर आने-जाने नहीं देते थे।

17) उन्होंने, लोगों को शिक्षा देते हुए कहा, "क्या यह नहीं लिखा है- मेरा घर सब राष्ट्रों के लिए प्रार्थना का घर कहलायेगा; परन्तु तुम लोगों ने उसे लुटेरों का अड्डा बनाया है"।

18) महायाजकों तथा शास्त्रियों को इसका पता चला और वे ईसा के सर्वनाश का उपाय ढूँढ़ते रहे। वे उन से डरते थे, क्योंकि लोग मन्त्रमुग्ध हो कर उनकी शिक्षा सुनते थे।

19) सन्ध्या हो जाने पर वे शहर के बाहर चले जाते थे।

20) प्रातः जब वे उधर से आ रहे थे, तो शिष्यों ने देखा कि अंजीर का वह पेड़ जड़ से सूख गया है।

21) पेत्रुस को वह बात याद आयी और उसने कहा, "गुरुवर! देखिए, अंजीर का वह पेड़, जिसे आपने शाप दिया था, सूख गया है"।

22) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, "ईश्वर में विश्वास करो।

23) मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - यदि कोई इस पहाड़ से यह कहे, ’उठ, समुद्र में गिर जा’ , और मन में सन्देह न करे, बल्कि यह विश्वास करे कि मैं जो कह रहा हूँ, वह पूरा होगा, तो उसके लिए वैसा ही हो जायेगा।

24) इसलिए मैं तुम से कहता हूँ - तुम जो कुछ प्रार्थना में माँगते हो, विश्वास करो कि वह तुम्हें मिल गया है और वह तुम्हें दिया जायेगा।

25) "जब तुम प्रार्थना के लिए खड़े हो और तुम्हें किसी से कोई शिकायत हो, तो क्षमा कर दो,

26) जिससे तुम्हारा स्वर्गिक पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा कर दे।"


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Praise the Lord!