वर्ष - 2, नौवाँ सप्ताह, शनिवार

पहला पाठ : 2 तिमथी 4:1-8

1) मैं ईश्वर को और जीवितों तथा मृतकों के न्यायकर्ता ईसा मसीह को साक्षी बना कर मसीह के पुनरागमन तथा उनके राज्य के नाम पर तुम से यह अनुरोध करता हूँ-

2) सुसमाचार सुनाओ, समय-असमय लोगों से आग्रह करते रहो। बड़े धैर्य से तथा शिक्षा देने के उद्देश्य से लोगों को समझाओ, डाँटो और ढारस बँधाओ;

3) क्योंकि वह समय आ रहा है, जब लोग हितकारी शिक्षा नहीं सुनेंगे, बल्कि मनमाना आचरण करेंगे और अपने पास चाटुकार उपदेशकों की भीड़ जमा करेंगे।

4) वे सच्चाई के प्रति अपने कान बन्द करेंगे और कल्पित कथाओं के पीछे दौड़ेंगे।

5) परन्तु तुम सब बातों में सन्तुलित बने रहो, धैर्य से कष्ट सहो, सुसमाचार के प्रचार में लगे रहो और अपने सेवा-कार्य के सब कर्तव्य पूरे करते जाओ।

6) मैं प्रभु को अर्पित किया जा रहा हूँ। मेरे चले जाने का समय आ गया है।

7) मैं अच्छी लड़ाई लड़ चुका हूँ, अपनी दौड़ पूरी कर चुका हूँ और पूर्ण रूप से ईमानदार रहा हूँ।

8) अब मेरे लिए धार्मिकता का वह मुकुट तैयार है, जिसे न्यायी विचारपति प्रभु मुझे उस दिन प्रदान करेंगे - मुझ को ही नहीं, बल्कि उन सब को, जिन्होंने प्रेम के साथ उनके प्रकट होने के दिन की प्रतीक्षा की है।

सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 12:38-44

38) ईसा ने शिक्षा देते समय कहा, "शास्त्रियों से सावधान रहो। लम्बे लबादे पहन कर टहलने जाना, बाज़ारों में प्रणाम-प्रणाम सुनना,

39) सभागृहों में प्रथम आसनों पर और भोजों में प्रथम स्थानों पर विराजमान होना- यह सब उन्हें बहुत पसन्द है।

40) वे विधवाओं की सम्पत्ति चट कर जाते और दिखावे के लिए लम्बी-लम्बी प्रार्थनाएँ करते हैं। उन लोगों को बड़ी कठोर दण्डाज्ञा मिलेगी।"

41) ईसा ख़जाने के सामने बैठ कर लोगों को उस में सिक्के डालते हुए देख रहे थे। बहुत-से धनी बहुत दे रहे थे।

42) एक कंगाल विधवा आयी और उसने दो अधेले अर्थात् एक पैसा डाल दिया।

43) इस पर ईसा ने अपने शिष्यों को बुला कर कहा, "मैं तुम से यह कहता हूँ - ख़जाने में पैसे डालने वालों में से इस विधवा ने सब से अधिक डाला है;

44) क्योंकि सब ने अपनी समृद्धि से कुछ डाला, परन्तु इसने तंगी में रहते हुए भी जीविका के लिए अपने पास जो कुछ था, वह सब दे डाला।"

📚 मनन-चिंतन

ईश्वर के नाम पर पाखण्ड और आडम्बर कोई नयी बात नहीं है। स्वर्गराज्य और मनुष्य की दृष्टि में प्रत्येक सिद्धांत और बात का अलग-अलग महत्व और मूल्य है। आज के सुसमाचार में येसु दो परस्पर विरोधाभासी व्यक्तियों को हमारे समाने रखते हैं। प्रथम तरह के लोग उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जो स्वयं को दूसरों से अधिक महत्वपूर्ण समझते थे। वे लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिये अपने धार्मिक कार्यों का प्रदर्शन करते थे। वे ईश्वरऔर ईष्वरीय कार्यों एवं वस्तुओं को सांसारिक लाभ के लिये इस्तेमाल करते हैं। येसु उनके इस पाखण्ड और आडम्बर की निंदा करते हुये उन्हें चेतावनी देते हुये कहते हैं, "उन लोगों को बडी कठोर दण्डाज्ञा मिलेगी।’’

ऐसे घमण्डी और ढींग मारने वाले लोगों के सामने एक गरीब विधवा के आचरण की ओर येसु हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। वह विधवा ईश्वर के सामने विनम्रता तथा श्रद्धा के साथ खडी है। वह ईश्वर पर श्रद्धा रखती थी तथा जानती थी कि वह उनके मंदिर और उपस्थिति में खडी है। वह जानती थी कि ईश्वरको कुछ चढावा देना उसका कर्तव्य था। इस तंगहाली में भी वह ईश्वर के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करना जानती थी। ऐसी मनोस्थिति तथा दृष्टिकोण ईश्वर की दृष्टि में प्रशंसनीय है क्योंकि ईश्वर सबके हृदयों को जानता है। येसु उस विधवा के भाव एवं व्यवहार की प्रशंसा करते हुये कहते हैं, "इस कंगाल विधवा ने उन सब से अधिक डाला है।’’

ये दो प्रकार के व्यवहार हमारी नैतिकता, संपन्नता तथा ईश्वरके साथ हमारे रिष्तों को इंगित करते हैं। ये आज भी हमारे लिये चुनौती है। हमें सावधानीपूर्वक अपने अंतरत्तम की विवेचना करना चाहिये क्योंकि ये दोनों व्यवहार हमारे अंदर है।

-फादर रोनाल्ड वाँन, भोपाल


📚 REFLECTION

Hypocrisy in the name of God is not an alien thing. The things that are valued in the Kingdom of God differ from the human realm. In today’s passage Jesus puts the behaviour of two contrasting people for our consideration. First are those who think they are more important than everyone else. They do everything to draw people’s attention and starve for publicadulation. They considered themselves self-important, arrogant, and self-aggrandizing. They use God and godly things for worldly gains. Jesus denounces them and their hypocrisy with warning, “The more severe will be the sentence they receive.”

Against such boastful and arrogant behaviour is a poor widow. Who stands before God in humility and fear. She has the fear of God and was aware of his presence. Therefore, she knew that she has an obligation to offer God something, even if it were her last penny. Such a stance is highly admirable both in the sight of man and God who knows the inner motivation. Jesus appreciated her sincerity, “this poor widow has put more in than all who have contributed to the treasury.”

These two sets of behaviours deal with the issues of morality, wealth and God that are still challenging today. We need to carefully examine our own conscious as we too are involved with these issues.

-Rev. Fr. Ronald Vaughan, Bhopal


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!