वर्ष - 2, ग्यारहवाँ सप्ताह, सोमवार

पहला पाठ : राजाओं का पहला ग्रन्थ 21:1-16

1) यिज़्रएली नाबोत की एक दाखबारी थी, जो समारिया के राजा अहाब के महल से लगी हुई थी।

2) अहाब ने किसी दिन नाबोत से कहा, ‘‘अपनी दाखबारी मुझे दे दो। मैं उसे सब्जी का बाग बनाना चाहता हूँ, क्योंकि वह मेरे महल से लगी हुई है। मैं उसके बदले तुम्हें उस से अच्छी दाखबारी दे दूँगा या यदि तुम चाहो, तो मैं तुम्हें उसका मूल्य चुका दूँगा।’’

3) किन्तु नाबोत ने अहाब से कहा, ‘‘ईश्वर यह न होने दे कि मैं आप का अपने पुरखों की विरासत दे दूँ’’।

4) अहाब उदास और क्रुद्ध हो कर अपने घर चला गया, क्योंकि यिज़्रएली नाबोत ने उसे कहा था, ‘‘मैं तुम्हें अपने पुरखों की विरासत नहीं दूँगा’’। उसने अपने पलंग पर लेट कर मुँह फेर दिया और भोजन करने से इनकार कर दिया।

5) उसकी पत्नी ईज़ेबेल ने उसके पास आ कर पूछा, ‘‘आप क्यों उदास हैं और भोजन करना नहीं चाहते?’’

6) उसने उत्तर दिया, ‘‘मैंने यिज्ऱएली नाबोत से कहा, ‘रुपया ले कर मुझे अपनी दाखबारी दो या यदि तुम चाहो, तो मैं उसके बदले तुम को एक दूसरी दाखबारी दे दूँगा’। उसने उत्तर में कहा, ‘मैं आप को अपनी दाखबारी नहीं दूँगा’।’’

7) इस पर उसकी पत्नी ईज़ेबेल ने कहा, ‘‘वाह! आप इस्राएल के कैसे राजा हैं? उठ कर भोजन करें और प्रसन्न हों। मैं आप को यिज्ऱएली नाबोत की दाखबारी दिलाऊँगी।’’

8) उसने अहाब के नाम से पत्र लिखे, उन पर उसकी मुहर लगायी और उन्हें नाबोत के नगर में रहने वाले नेताओं और प्रतिष्ठित लोगों के पास भेज दिया।

9) उसने पत्रों में यह लिखा, ‘‘उपवास घोषित करो और लोगों की सभा में नाबोत को प्रथम स्थान पर बैठाओ।

10) तब उसके सामने दो गुण्डों को बैठा दो, जो उस पर यह अभियोग लगायें कि उसने ईश्वर और राजा को अभिशाप दिया है। इसके बाद उसे नगर से बाहर ले जा कर पत्थरों से मरवा डालो।’’

11) नाबोत ने नगर में रहने वाले नेताओं और प्रतिष्ठित लागों ने ईज़ेबेल के उस आदेश का पालन किया, जो उनके पास भेजे हुए ईज़ेबेल के पत्रों में लिखा हुआ था।

12) उन्होंने उपवास घोषित किया और लोगों की सभा में नाबोत को प्रथम स्थान पर बैठाया।

13) इसके बाद दो गुण्डे आये, नाबोत के सामने बैठ गये और यह कहते हुए लोगों की सभा में नाबोत के विरुद्ध साक्ष्य देने लगे, ‘‘नाबोत ने ईश्वर और राजा को अभिशाप दिया है’’। लोगों ने नाबोत को नगर के बाहर ले जा कर पत्थरों से मारा और वह मर गया।

14) इसके बाद उन्होंने ईज़ेबेल के पास यह कहला भेजा, ‘‘नाबोत को पत्थरों से मारा गया और उसका देहान्त हो गया है’’।

15) ईज़ेबेल ने ज्यों ही सूना कि नाबोत पत्थरों में मार डाला गया है, वह अहाब से बोली, ‘‘उठिए और यिज्ऱएली नाबोत की दाखबारी को अपने अधिकार में कर लीजिए। जो नाबोत दाम ले कर आप को अपनी दाखबारी नहीं देना चाहता था, वह अब जीवित नहीं रहा; वह मर चुका है।"

16) यह सुन कर कि नाबोत मर चुका है, अहाब तुरन्त यिज्ऱएली नाबोत की दाखबारी को अपने अधिकार में करने के लिए चल पड़ा।

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 5:38-42

(38) तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है- आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत।

(39) परंतु मैं तुम से कहता हूँ दुष्ट का सामना नहीं करो। यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड मारे, तो दूसरा भी उसके सामने कर दो।

(40) जो मुक़दमा लड़ कर तुम्हारा कुरता लेना चाहता है, उसे अपनी चादर भी ले लेने दो।

(41) और यदि कोई तुम्हें आधा कोस बेगार में ले जाये, तो उसके साथ कोस भर चले जाओ।

(42) जो तुम से माँगता है, उसे दे दो जो तुम से उधार लेना चाहता है, उस से मुँह न मोड़ो।

📚 मनन-चिंतन

अहाब राजा था और स्वाभाविक तौर पर वह बहुत ही अमीर था। इसके बावजूद भी वह संतुष्ट नहीं था। उसको नाबोत की दाखबारी की कोई आवश्यकता नहीं थी। वह उसमें केवल सब्जियॉ उगाना चाहता था।वह लालची राजा था। जब उसकी लालसा पूरी नहीं हुयी तो वह क्षुब्द्ध हो गया और अपनी जुगाडू पत्नी के झाल में फंस गया। इस प्रकार उसने इस जमीन के टुकडे के लिये अपने अपराधों की फेरिस्त में षडयंत्र और हत्या को भी जोड लिया। किसी की लालच को कभी भी संतुष्ट नहीं किया जा सकता है। नैतिकता के सिद्धांत, मर्यादा, भाईचारे का भाव उसके अंतरतम से सदा के लिये विदा हो जाता है। लालच मनुष्य को उसकी इच्छित वस्तु पाने केे लिये विवश करती है। अहाब और उसकी पत्नी में भी यही लक्षण देखने को मिलते हैं। संत पौलुस तिमथी के नाम अपने पहले पत्र में लिखते हैं, ’’जो लोग धन बटोरना चाहते हैं, वे प्रलोभन और फन्दे में पड़ जाते हैं और ऐसी मूर्खतापूर्ण तथा हानिकर वासनाओं के शिकार बनते हैं, जो मनुष्यों को पतन और विनाश के गर्त में ढकेल देती हैं, क्योंकि धन का लालच सभी बुराईयों की जड़ है। इसी लालच में पड़ कर कई लोग विश्वास के मार्ग से भटक गये और उन्होंने बहुत-सी यन्त्रणाएँ झेलीं।’’ (1तिमथी 6:9-10)

अपनी लालच के कारण अहाब राजा के तौर पर अपने कर्त्तव्य तथा लोगों की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारी को भूल गया। उसे न्याय की व्यवस्था तथा दरिद्रों और असहायों की मदद करना चाहिये था किन्तु इसके विपरीत वह उसने दूसरों को भी जघन्य अपराध में भागी बनाया। उसकी पत्नी रानी ईजेबेल ने नेताओं तथा प्रतिष्ठित लोगों का पत्र लिखकर नाबोत के विरूद्ध षडयंत्र करने के लिये उकसाया। जब तब नाबोत की पत्थरों के मार-मार कर हत्या हुयी तब तक कई लोगों इस साजिश का हिस्सा बन चुके थे। पाप के दुष्चक्र ने कईयों को पाप का भागी बनाया।

हमें अपनी इच्छाओं पर काबू रखना चाहिये अन्यथा वह लालच का रूप धारण कर लेती है। पाप करना ही गलत है और जब हम दूसरों को भी उस पाप का भागी बनाते है तो मामला और भी ज्यादा गंभीर हो जाता है।

-फादर रोनाल्ड वाँन, भोपाल


📚 REFLECTION

Ahab was a King and immensely wealthy. Yet Ahab wasn’t content.He has no real need for the vineyard of Naboth. It was just wanted to make it a vegetable garden.He was a greedy, covetous king, and when he didn’t get what he wanted, he sulked; then he was easily manipulated by his conniving Queen. So he added conspiracy and murder to his long list of crimes…and all this for a piece of land. Greed can never be satisfied. A greedy person becomes blind to his greed. The ethos of morality, propriety and civic sense take permanent leave from the conscious of a greedy person. The person would do anything to get what he desires. That’s what the case is with Ahab and his wily wife. St. Paul wrote in 1 Timothy, “People who want to get rich fall into temptation and a trap and into many foolish and harmful desires that plunge men into ruin and destruction. For the love of money is a root of all kinds of evil. Some people, eager for money, have wandered from the faith and pierced themselves with many griefs” 1 Tim. 6:9-10.

In his greed Ahab forgot his duties as a king and responsibility to protect his people. He was to establish justice and equality and defend the poor and helpless. On the contrary his greed made many people take part in this heinous crime. Jezebel his wife wrote a letter to the leaders and other well-meaning people of the place to plot against Naboth. By the time Naboth was stoned to death. The vicious circle of sin had involved many people into it. They pulled in too many people to corporate with them in hatching and executing the conspiracy of lying, stealing and lynching.

We should always be aware of our own desires. Before they turn into greed, we must control them. Moreover, we should not cause others to sin. To sin itself is so bad and to involve others into it makes the matter worse.

-Rev. Fr. Ronald Vaughan, Bhopal


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