वर्ष - 2, चौथहवाँ सप्ताह, सोमवार

पहला पाठ : होशेआ का ग्रन्थ 2:16,17b-18,21-22

16) ’’प्रभु की यह वाणी हैः उस समय तुम मुझे ’अपना पति’ कह कर पुकारोगी। तुम फिर कभी मुझे ’अपना बाल’ कह कर नहीं पुकारोगी।

17) जिससे वे फिर कभी याद नहीं रहेंगे।

18) उस समय मैं इस्राएल के पक्ष से वन के पशु-पक्षियों और भूमि पर रेंगेन वाले प्राणियों के साथ व्यवस्थापन स्थापित करूँगा। मैं धनुष, तलवार और युद्धास्त्र तोड दूँगा, जिससे तुम सुख-चैन से जीवन व्यतीत कर सको।

21) ’’प्रभु की यह वाणी हैः मैं उस दिन उत्तर दूँगा। मैं आकाश को आदेश दूँगा कि वह पृथ्वी पर वर्षा करे;

22) मैं पृथ्वी को आदेश दूँगा, कि वह अन्न, अंगूरी और तेल उत्पन्न करे; मैं यिज्रएल को धनसंपन्न बनाऊँगा।

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 9:18-26

18) ईसा उन से ये बातें कह ही रहे थे कि एक अधिकारी आया। उसने यह कहते हुए उन्हें दण्डवत् किया, ’’मेरी बेटी अभी-अभी मर गयी है। आइए, उस पर हाथ रखिए और वह जी जायेगी।’’

19) ईसा उठ कर अपने शिष्यों के साथ उसके पीछे हो लिये।

20) उस समय एक स्त्री ने, जो बारह बरस से रक्तस्राव से पीडि़त थी, पीछे से आ कर ईसा के कपडे़ का पल्ला छू लिया;

21) क्योंकि वह मन-ही-मन कहती थी- यदि मैं उनका कपड़ा भर छूने पाऊँ, तो चंगी हो जाऊॅंगी।

22) ईसा ने मुड़ कर उसे देख लिया और कहा ’’बेटी, ढारस रखो। तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चंगा कर दिया है।’’ और वह स्त्री उसी क्षण चंगी हो गई।

23) ईसा ने अधिकारी के घर पहुँच कर बाँसुरी बजाने वालों और लोगों को रोते-पीटते देखा और

24) कहा, ’’हट जाओ। लड़की नहीं मरी है, सो रही है।’’ इस पर वे उनकी हॅंसी उड़ाते रहे।

25) भीड़ बाहर कर दी गयी। तब ईसा ने भीतर जा कर लड़की का हाथ पकड़ा और वह उठ खड़ी हुई।

26) इस बात की चरचा उस इलाक़े के कोने-कोने में फैल गयी।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में एक आधिकारि की मृत बेटी को प्रभु येसु द्वारा जीवन-दान का विवरण है। इसी घटना के बीच बारह साल से रक्तस्राव से पीड़ित महिला की प्रभु येसु द्वारा चंगाई का भी विवरण है। रक्तस्राव वाली महिला को यहूदी लोगों द्वारा अशुद्ध माना जाता था (देखिए लेवी 15:25)। उसे केवल तभी शुध्द माना जाएगा जब लगातार सात दिनों तक रक्तस्राव न हो। बारह लंबे वर्षों तक लगातार रक्तस्राव के कारण, महिला को एक लंबे सामाजिक और धार्मिक अलगाव तथा तिरस्कार का सामना करना पड़ा। चूँकि वह इस पीड़ा से गुज़र रही है, संभव है कि वह उम्मीद खो देगी, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उसने अपनी आशा को जीवित रखा और ऐसी निराशाजनक परिस्थिति के बीच भी उसे असके गहरे विश्वास के लिए पुरस्कृत किया गया। अधिकारी तो किसी की चंगाई के लिए प्रभु येसु के पास नहीं जा रहा था, लेकिन वह गया था - अपनी मृत बेटी का जीवन वापस माँगने के लिए। यह पवित्र बाइबिल की एकमात्र ऐसी घटना है जब कोई व्यक्ति येसु से ऐसा अनुरोध करता है। दो अन्य अवसरों पर येसु ने मृतकों को जिलाया। उन्होंने लाज़रुस को जीवन वापस दिया, जो बेथानिया निवासी मार्था और मरियम का भाई था। प्रभु येसु ने नाईन की विधवा के बेटे को भी जीवन-दान दिया। लेकिन किसी ने भी वास्तव में उन दोनों अवसरों पर मृतक को जिलाने का अनुरोध नहीं किया। प्रभु ने उनकी दयनीय स्थिति को देखते हुए मृतक को जीवन में वापस लाने के लिए चमत्कार किया। आज के सुसमाचार में वर्णित अधिकारी वह एकमात्र व्यक्ति है जिसने सीधे येसु से अपनी बेटी को जिलाने का अनुरोध किया। हम अक्सर मृत्यु को सभी संभावनाओं का अंत मानते हैं। जब कोई मर जाता है, तो हम किसी भी संभावना के सपने देखने की हिम्मत नहीं करते हैं। हम सभी दवा तथा परिचर्या को समाप्त करते हैं और मृत्यु की वास्तविकता को स्वीकार करने की कोशिश करते हैं। हम यह मानने लगते हैं कि सभी कोशिशों को विराम देने का समय आ गया है। लेकिन यह अधिकारी मृत्यु को अंत मानने के लिए तैयार नहीं था। इन दोनों व्यक्तियों - रक्तस्रावी महिला और अधिकारी - ने गहरा और मज़बूत विश्वास दिखाया और दोनों को पुरस्कृत किया गया। प्रभु ईश्वर के लिए कोई निराशाजनक स्थिति नहीं है। ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In today’s Gospel we have the narrative of the raising of the official’s daughter and an intercalated or sandwich narrative of the healing of the woman with bleeding amid a large crowd. A woman with bleeding was considered to be unclean by the Jewish people (cf. Lev 15:25). She would be considered as clean only if the bleeding does not occur for seven consecutive days. Because of continuous bleeding for twelve long years, the woman suffered a long social and religious isolation. Since she has been going through this agony it is possible that she would lose hope, but surprisingly she kept her hope alive and was rewarded for her faith even in the midst of such a hopeless situation. The official was not approaching Jesus for a healing but for raising his dead daughter back to life. This is the only incident when a person makes such a request to Jesus. On two other occasions Jesus raised the dead. He raised Lazarus, the brother of Martha and Mary in Bethany. He also raised the widow’s son. But no one really requested him to raise the dead on those occasions. Jesus seeing their pathetic condition performed a miracle to bring the dead back to life. The official mentioned in today’s Gospel is the only person who straightaway requested Jesus to raise his daughter. We often consider death as the end of all possibilities. We do not dare to dream of any possibility when one is dead. We end all medication and try to accept the reality that we have come to the end of the road. But this official was not ready to accept death as the end. Both these persons – the bleeding woman and the official – demonstrated great faith and both of them were rewarded. There is no hopeless situation for God. Nothing is impossible for God.

-Fr. Francis Scaria


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