वर्ष - 2, पन्द्रहवाँ सप्ताह, सोमवार

पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 1:10-17

10) सोदोम के शासको! प्रभु की वाणी सुनो। गोमारा की प्रजा! ईश्वर की शिक्षा पर ध्यान दो।

11) प्रभु यह कहता है: “तुम्हारे असंख्य बलिदानों से मुझ को क्या? में तुम्हारे मेढ़ों और बछड़ों की चरबी से ऊब गया हूँ। मैं साँड़ों, मेमनों और बकरों का रक्त नहीं चाहता।

12) जब तुम मेरे दर्शन करते आते हो, तो कौन तुम से यह सब माँगता है? तुम मेरे प्रांगण क्यों रौंदते हो?

13) मेरे पास व्यर्थ का चढ़ावा लिये फिर नहीं आना। तुम्हारे लोबान से मुझे घृणा हो गयी है। अमावस, विश्राम-दिवस और तुम्हारी धर्म-सभाएँ। मैं अन्याय के कारण ये सब समारोह सहन नहीं करता।

14) तुम्हारे अमावस और अन्य पर्वों से मुझे घृणा हो गयी है, ये मेरे लिए असह्य भार बन गये हैं।

15) जब तुम अपने हाथ फैलाते हो, तो मैं तुम्हारी ओर से आँख फेर लेता हूँ। मैं तुम्हारी असंख्य प्रार्थनाओं को अनसुना कर देता हूँ। तुम्हारे हाथ रक्त से रँगे हुए हैं।

16) स्नान करो, शुद्ध हो जाओ। अपने कुकर्म मेरी आँखों के सामने से दूर करो। पाप करना छोड़ दो,

17) भलाई करना सीखो। न्याय के अनुसार आचरण करो, पद्दलितों को सहायता दो, अनाथों को न्याय दिलाओ और विधवाओं की रक्षा करो।“

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 10:34-11:1

34) ’’यह न समझो कि मैं पृथ्वी पर शांति लेकर आया हूँ। मैं शान्ति नहीं, बल्कि तलवार लेकर आया हूँ।

35) मैं पुत्र और पिता में, पुत्री और माता में, बहू और सास में फूट डालने आया हूँ।

36) मनुष्य के घर वाले ही उसके शत्रु बन जायेंगे।

37) जो अपने पिता या अपनी माता को मुझ से अधिक प्यार करता है, वह मेरे योग्य नहीं है। जो अपने पुत्र या अपनी पुत्री को मुझ से अधिक प्यार करता है, वह मेरे योग्य नहीं।

38) जो अपना क्रूस उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरे योग्य नहीं।

39) जिसने अपना जीवन सुरक्षित रखा है, वह उसे खो देगा और जिसने मेरे कारण अपना जीवन खो दिया है, वह उसे सुरक्षित रख सकेगा।

40) ’’जो तुम्हारा स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है और जो मेरा स्वागत करता है वह उसका स्वागत करता है, जिसने मुझे भेजा है।

41) जो नबी का इसलिए स्वागत करता है कि वह नबी है, वह नबी का पुरस्कार पायेगा और जो धर्मी का इसलिए स्वागत करता है कि वह धर्मी है, वह धर्मी का पुरस्कार पायेगा।

42) ’’जो इन छोटों में से किसी को एक प्याला ठंडा पानी भी इसलिए पिलायेगा कि वह मेरा शिष्य है, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह अपने पुरस्कार से वंचित नहीं रहेगा।

1) अपने बारह शिष्यों को ये उपदेश देने के बाद ईसा यहूदियों के नगरों में शिक्षा देने और सुसमाचार का प्रचार करने वहाँ से चल दिये।

📚 मनन-चिंतन - 1

प्रभु येसु ने अपने उपदेश में, हमारी सारी आत्मा, हमारे सारे हृदय, हमारे सारे मन और हमारी सारी शक्ति से प्रभु ईश्वर से प्रेम करने की सबसे बड़ी आज्ञा को दोहराया। यह प्रभु को पहला स्थान और केवल प्रभु को स्थान देने के बारे में है। अपने शिष्यों से प्रभु येसु यह पहला स्थान माँगता है - पिता, माता, पुत्री, पुत्र, बहन, भाई या मित्र से पहले का स्थान। यदि किसी शिष्य को दुनिया के किसी व्यक्ति और येसु के बीच चयन करना पड़ता है, तो उसे अनिवार्य रूप से येसु को ही चुनना होगा। कभी-कभी हम एक ऐसी स्थिति का सामना कर सकते हैं जहाँ येसु के साथ हमारा संबंध हमारे प्रिय जन के लिए हम से नफरत करने का कारण बन सकता है। इस तरह के मामले में भी, येसु के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को हमें बनाये रखना चाहिए। संत क्लारा और उनकी बहन एग्नेस को अपने परिवार के विरोध का सामना करना पड़ा जब उन्होंने प्रभु के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया। संत थॉमस एक्विनास को अपने परिवार के विरोध का सामना करना पड़ा था जब उन्होंने अपना जीवन प्रभु को अर्पित करने का निर्णय लिया। जब वे रोम जा रहे थे, तब उन्हें उनके भाइयों ने पकड़ लिया और उन्हें दो साल तक एक कमरे में बंद रखा गया, जिस दौरान उनके माता-पिता और भाइयों ने उन्हें उनके निर्णय से पीछे हटाने की कोशिश की और उन्हें प्रलोभन देने के लिए एक वेश्या को भी उनके पास भेजा। लेकिन आखिरकार संत थॉमस का दृढ़ संकल्प जीत गया। प्रभु हमें अपने जीवन में ईश्वर की प्रधानता को समझने और स्वीकार करने के लिए ज्ञान दें और उसके अनुसार जीवन बिताने की कृपा दें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Jesus in his teaching reiterated the greatest command to love the Lord God with all our soul, all our heart, all our mind and all our strength. It is about giving the first place to God and only place to God. From his disciples Jesus demands this first place – a place before father, mother, daughter, son, sister, brother or friend. If a disciple has to make a choice between anyone in the world and Jesus, she/he has to inevitably choose Jesus. Sometimes we may face a situation where our friendship with Jesus may make our dear ones to hate us. Even in such a case, our commitment to Jesus needs to be uncompromising. St. Clare and her sister Agnes had to face opposition from their family when they decided to dedicate their lives for God. St. Thomas Aquinas had to face opposition from his family when he wanted to offer his life to God. When he was going to Rome he was captured by his brothers and he was kept locked for two years during which his parents and brothers tried to dissuade him and even sent a prostitute to tempt him. But finally the determination of St. Thomas won. May the Lord give us wisdom to understand and accept the primacy of God in our lives.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!