वर्ष - 2, पन्द्रहवाँ सप्ताह, मंगलवार

पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 7:1-9

1) जब योतान का पुत्र और उज़्ज़ीया का पौत्र आहाज़ यूदा का राजा था, तो उस समय अराम का राजा रसीन और रमल्या का पुत्र इस्राएल का राजा पेकह, दोनों मिल कर येरुसालेम पर आक्रमण करने निकले, किन्तु वे उसे जीतने में असमर्थ रहे।

2) दाऊदवंशी राजा को यह समाचार मिला कि अरामियों ने एफ्ऱईम में पड़ाव डाला है। यह सुन कर राजा और उसकी प्रजा इस प्रकार काँपने लगे, जिस प्रकार जंगल के पेड़ आँधी में काँपते हैं।

3) किन्तु प्रभु ने इसायाह से कहा, “तुम अपने पुत्र शआर-याशूब के साथ रंगरेज के खेत की सड़क पर, जहाँ नहर ऊपरी तालाब से निकलती है, आहाज़ से मिलने जाओ

4) और उस से यह कहो- सावधान रहो! धीरज धर कर मत डरो। अरामी रसीन और रमल्या के पुत्र का क्रोध प्रज्वलित हो उठा है। वे तो दो धुँआते लुआठों के सदृश हैं। उनके कारण मत घबराओ।

5) उन्हें यह कहते हुए षड्यन्त्र रचने दो -

6) हम यूदा पर चढ़ाई करने जा रहे हैं। हम उसे पछाड़ कर पराजित कर देंगे और वहाँ टाबएल के पुत्र को राजा बनायेंगे।

7) प्रभु-ईश्वर यह कहता है- यह नहीं होगा! कभी नहीं होगा!

8 )8-9) जिस तरह अराम की राजधानी दमिश्क है, दमिश्क का राजा रसीन; एफ्ऱईम की राजधानी समारिया है और समारिया का राजा रमल्या का पुत्र, उसी तरह पैंसठ वर्ष बाद एफ्ऱईम कुचल दिया जायेगा और वह राष्ट्र नहीं रह जायेगा। यदि तुम्हारा विश्वास दृढ़ नहीं है, तो तुम निश्चय ही विचलित हो जाओगे।''

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 11:20-24

20) तब ईसा उन नगरों को धिक्कारने लगे, जिन्होंने उनके अधिकांश चमत्कार देख कर भी पश्चाताप नहीं किया था,

21) ’’धिक्कार तुझे, खोंराजि़न! धिक्कार तुझे, बेथसाइदा! जो चमत्कार तुम में किये गये हैं, यदि वे तीरूस और सिदोन में किये गये होते, तो उन्होंने न जाने कब से टाट ओढ़ कर और भस्म रमा कर पश्चाताप किया होता।

22) इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, न्याय के दिन तेरी दशा की अपेक्षा तीरूस और सिदोन की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी।

23) ’’और तू, कफ़रनाहूम! क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा उठाया जायेगा? नहीं! तू अधोलोक तक नीचे गिरा दिया जायेगा; क्योंकि जो चमत्कार तुझ में किये गये हैं, यदि वे सोदोम में किये गये होते, तो वह आज तक बना रहता।

24) इसलिए मैं तुझ से कहता हूँ, न्याय के दिन तेरी दशा की अपेक्षा सोदोम की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी।’’

📚 मनन-चिंतन - 1

आज के सुसमाचार में, हमें उन तीन शहरों से परिचित कराया गया है जिनमें प्रभु येसु के अधिकांश चमत्कार किए गए थे। उन शहरों के नाम हैं - खोराजि़न, बेथसाइदा और कफ़रनाहूम। यह बहुत अजीब बात है कि प्रभु येसु के अधिकांश प्रवचनों को सुनने वाले, उनके अधिकांश चमत्कारों को देखने वाले इन तीन शहरों ने येसु की शिक्षाओं का अस्वीकार किया। उन्होंने प्रभु येसु के चमत्कारों के फलों का आनंद लिया लेकिन अपने जीवन को नहीं बदला। संत योहन चमत्कारों को ’चिह्न’ कहते हैं। येसु के चमत्कार ईश्वर के राज्य के आगमन के संकेत थे। वे मुख्य रूप से कुछ व्यक्तियों को कुछ अल्पकालिक राहत देने के लिए नहीं थे, बल्कि लोगों को अपने जीवन को बदलने हेतु आमंत्रित करने के लिए थे। प्रभु कहते हैं कि इन शहरों के लोगों की प्रतिक्रिया तीरुस, सिदोन और सोदोम से भी बदतर थी। परमेश्वर के वचन को सुनना या किसी चमत्कार को देखना या पवित्र भूमि पर जाना या कोई धार्मिक अनुभव प्राप्त करना स्वर्ग की गारंटी नहीं देता है। हमें अपने जीवन को बदलने और येसु की शिक्षाओं का पालन करने की आवश्यकता है। इसलिए मत्ती 7:21-23 में प्रभु कहते हैं, “जो लोग मुझे ’प्रभु ! प्रभु ! कह कर पुकारते हैं, उन में सब-के-सब स्वर्ग-राज्य में प्रवेश नहीं करेंगे। जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा। उस दिन बहुत-से लोग मुझ से कहेंगे, ’प्रभु ! क्या हमने आपका नाम ले कर भविष्यवाणी नहीं की? आपका नाम ले कर अपदूतों को नहीं निकला? आपका नाम ले कर बहुत-से चमत्कार नहीं दिखाये?’ तब मैं उन्हें साफ-साफ बता दूँगा, ’मैंने तुम लोगों को कभी नहीं जाना। कुकर्मियों! मुझ से दूर हटो।’” धार्मिक प्रथाओं और अनुभवों को हमें उसी तक ले जाना चाहिए।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In today’s gospel, we are introduced to three towns in which most of Jesus’ miracles had been performed. They are Chorazin, Bethsaida and Capernaum. It is very strange that these three towns which witnessed most of Jesus’ miracles did not respond properly to the teachings of Jesus. They enjoyed the fruits of Jesus’ miracles but did not change their lives. St. John uses the term ‘sign’ to refer to miracles. Jesus’ miracles were signs of the coming of the Kingdom of God. They were not primarily meant to give some temporary relief to some persons, but meant to invite people to change their lives. Jesus says that the response of the people of these towns was worse than that of Tyre, Sidon and Sodom. Listening to the Word of God or witnessing a miracle or visiting the holy land or obtaining a religious experience does not guarantee heaven. We need to change our lives and follow the teachings of Jesus. That is why Jesus says, “Not everyone who says to me, ‘Lord, Lord,’ will enter the kingdom of heaven, but only the one who does the will of my Father in heaven. On that day many will say to me, ‘Lord, Lord, did we not prophesy in your name, and cast out demons in your name, and do many deeds of power in your name?’ Then I will declare to them, ‘I never knew you; go away from me, you evildoers.’” (Mt 7:21-23) Religious practices and experiences should lead us to that.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!