वर्ष - 2, पन्द्रहवाँ सप्ताह, शनिवार

पहला पाठ : मीकाह का ग्रन्थ 2:1-5

1) धिक्कार उन लोगों को, जो अधर्म की योजना बनाते और शय्या पर पडे हुए बुराई सोचा करते हैं! वे उठते ही ऐसा करते हैं, क्योंकि उनके हाथ में शक्ति हैं।

2) यदि वे किसी खेत के लिए लालच करते हैं, तो उसे ले लेते हैं; यदि किसी घर पर उनकी आँख लग जाती, तो वे उसे हथियाते हैं। वे मनुय और उसके घर को, मालिक और उसकी सम्पत्ति को अपने अधिकार में कर लेते हैं।

3) इसलिए प्रभु उन लोगों से यह कहता है- मैं तुम पर एक ऐसी विपत्ति भेजने की सोच रहा हूँ, जिसका भार तुम अपने कंधों से उतार नहीं सकोगे और फिर सीधे हो कर चल नहीं सकोगे। यह तुम्हारे लिए घोर संकट का समय होगा।

4) उस दिन लोग तुम्हारे विषय में उपहास का गीत गायेंगे और तुम लोग इस तरह विलाप करोगे- हमारा सर्वनाश हो गया है। प्रभु ने अपनी प्रजा की भूमि को विदेशियों को दे दिया। उसने विधार्मियों में हमारे खेत बाँट दिये। कौन हमें हमारे खेत लौटा सकेगा?

5) तब कोई नहीं होगा, जो चिट्ठी डाल कर तुम्हें प्रभु की सभा में विरासत दिलायेगा।

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 12:14-21

14) इस पर फ़रीसियों ने बाहर निकल कर ईसा के विरुद्ध यह परामर्श किया कि हम किस तरह उनका सर्वनाश करें।

15) ईसा यह जान कर वहाँ से चले गये। बहुत-से लोग ईसा के पीछे हो लिये। वे सबों को चंगा करते थे,

16) किन्तु साथ-साथ यह चेतावनी देते थे कि तुम लोग मेरा नाम नहीं फैलाओ।

17) इस प्रकार नबी इसायस का यह कथन पूरा हुआ-

18) यह मेरा सेवक है, इसे मैने चुना है; मेरा परमप्रिय है, मैं इस पर अति प्रसन्न हूँ। मैं इसे अपना आत्मा प्रदान करूँगा और यह गैर-यहूदियों में सच्चे धर्म का प्रचार करेगा।

19) यह न तो विवाद करेगा और न चिल्लायेगा, और न बाज़ारों में कोई इसकी आवाज सुनेगा।

20) यह न तो कुचला हुआ सरकण्डा ही तोडे़गा, और न धुँआती हुई बत्ती ही बुझायेगा, जब तक वह सच्चे धर्म को विजय तक न ले जाये।

21) इसके नाम पर गैर-यहूदी भरोसा रखेंगे।

📚 मनन-चिंतन - 1

मत्ती 11:29 में प्रभु येसु कहते हैं, "मैं हृदय से विनीत और विनम्र हूँ"। आज के सुसमाचार-पाठ से हमें प्रभु येसु के अलौकिक और विनम्र व्यक्तित्व का पता चलता है। अतुलनीय शक्ति और अधिकार के साथ न्याय और धार्मिकता की घोषणा करने के अपने कार्य को अंजाम देते हुए, उन्होंने कभी भी मानव से मान्यता और लोकप्रियता नहीं मांगी। उनके बारे में पवित्र वचन कहता है, "यह न तो कुचला हुआ सरकण्डा ही तोडे़गा, और न धुँआती हुई बत्ती ही बुझायेगा " (मत्ती 12:20)। यह कथन उनकी विनम्रता और सज्जनता की सीमा को दर्शाता है। यह प्रभु येसु पर लागू ईश्वर के पीड़ित सेवक के बारे में नबी इसायाह का एक बयान है। विनम्रता और सज्जनता वास्तविक सेवकों के गुण हैं। मूसा के बारे में कहा जाता है, "मूसा अत्यन्त विनम्र था। वह पृथ्वी के सब मनुष्यों में सब से अधिक विनम्र था।" (गणना 12: 3)। संत अगस्तीन कहते हैं, "अगर आप मुझसे सवाल करते कि ईश्वर के तरीके क्या हैं, तो मैं आपको बताऊंगा कि पहला विनम्रता है, दूसरा विनम्रता है और तीसरा विनम्रता है। ऐसा नहीं है कि देने के लिए कोई अन्य उपदेश नहीं है, लेकिन अगर विनम्रता पूर्वक वह सब कार्य हम नहीं करते हैं जो हम करते हैं, हमारे प्रयास बेकार हैं।" केवल एक विनम्र व्यक्ति ही खुद को दूसरों के सेवक के रूप में देख सकता है। यही कारण है कि, यीशु ने अपने शिष्यों को सेवक बनने के लिए कहा। संत अगस्तीन आगे कहते हैं, "क्या आप उठना चाहते हैं? उतर कर शुरू करो। आप एक टॉवर की योजना बनाते हैं जो बादलों को छेद देगा? तो विनम्रता की नींव रखो। विनम्रता के गुण के बिना कोई भी ख्रीस्तीय जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है। इस दुनिया में शक्ति या सफलता प्राप्त करना अपने आप में बुराई नहीं है। लेकिन अगर स्वयं की प्रधानता के आधार पर आदर्श जीवन के सपने देखने से किसी का दिल बहल जाता है, तो वह ईसाई जीवन में उत्कृष्टता के विपरीत है। आइए हम अपने जीवन में नम्रता का गुण पैदा करने के लिए प्रभु से मदद माँगे।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In Mt 11:29 Jesus says, “I am gentle and humble in heart”. Today’s Gospel passage reveals the unassuming and humble personality of Jesus. While carrying out his task of proclaiming justice and righteousness with unmatchable power and authority, he never sought recognition and popularity from human beings. The statement – “He will not break a bruised reed or quench a smoldering wick” (Mt 12:20) – shows the extent of his humility and gentleness. This is a statement of Prophet Isaiah about the suffering servant of Yahweh, applicable to Jesus. Humility and gentleness are qualities of real servants. Regarding Moses, it is said, “Now the man Moses was very humble, more so than anyone else on the face of the earth” (Num 12:3). St. Augustine says, “If you should ask me what are the ways of God, I would tell you that the first is humility, the second is humility, and the third is humility. Not that there are no other precepts to give, but if humility does not precede all that we do, our efforts are fruitless.” Only a humble person can consider himself / herself as a servant of others. That is the reason, Jesus asked his disciples to be servants. St. Augustine says further, “Do you wish to rise? Begin by descending. You plan a tower that will pierce the clouds? Lay first the foundation of humility.” One cannot think of Christian life without the virtue of humility. Having power or success in this world is not evil in itself. But letting one’s heart be carried away by dreams of an ideal life based on the primacy of self is the opposite of excellence in Christian life. Let us ask the Lord to help us to cultivate the virtue of humility in our lives.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!