वर्ष - 2, सोलहवाँ सप्ताह, सोमवार

पहला पाठ : मीकाह का ग्रन्थ 6:1-4,6-8

1) प्रभु का यह कहना सुनो- ’’उठो! पहाड़ों के सामने अपनी सफाई दो। पहाडियों को अपनी बात सुनाओ।’’

2) पर्वतों! पृृथ्वी को सँभालने वाले चिरस्थायी खंबो! प्रभु का मुकदमा सुनो। वह इस्राएल पर अभियोग लगा रहा है:

3) ’’मेरी प्रजा! मैंने तुम्हारा क्या अपराध किया? मैंने तुम को क्या कष्ट दिया? मुझे उत्तर दो।

4) मैं तुम को मिस्र से निकाल लाया, मैंने तुम को दासता के घर से छुडाया। मैंने पथप्रदर्शक के रूप में मूसा, हारून और मिरयम को तुम्हारे पास भेजा।

6) ’’मैं क्या ले कर प्रभु के सामने आऊँगा और सर्वोच्य ईश्वर को दण्डवत करूँगा? क्या मैं होम ले कर उसके सामने आऊँगा? अथवा एक वर्ष के बछड़ों को?

7) क्या ईश्वर हज़ारों मेढ़ों से प्रसन्न होगा? अथवा तेल की कोटि-कोटि धाराओं से? क्या मैं अपने अपराध के प्राश्श्चित्तस्वरूप आपने पहलौठे को अपने पाप के बदले में अपने शरीर के फल को अर्पित करूँगा?’’

8) ’’मनुय! तुम को बताया गया है कि उचित क्या है और प्रभु तुम से क्या चाहता है। यह इतना ही है- न्यायपूर्ण व्यवहार, कोमल भक्ति और ईश्वर के सामने विनयपूर्ण आचरण।’’

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 12:38-42

38) उस समय कुछ शास्त्री और फ़रीसी ईसा से बोले, ’’गुरुवर! हम आपके द्वारा प्रस्तुत कोई चिन्ह देखना चाहते हैं’’।

39) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, ’’यह दुष्ट और विधर्मी पीढ़ी एक चिन्ह माँगती है, परंतु नबी योनस के चिन्ह को छोड़ कर कोई चिन्ह नहीं दिया जायेगा।

40) जिस प्रकार योनस तीन दिन और तीन रात मच्छ के पेट में रहा, उसी प्रकार मानव पुत्र भी तीन दिन और तीन रात पृथ्वी के गर्भ में रहेगा।

41) न्याय के दिन निनिवे के लोग इस पीढ़ी के साथ जी उठेंगे और इसे दोषी ठहरायेंगे, क्योंकि उन्होंने योनस का उपदेश सुन कर पश्चात्ताप किया था, और देखो यहाँ वह है, जो योनस से भी महान् हैं।

42) न्याय के दिन दक्षिण की रानी इस पीढ़ी के साथ जी उठेगी और इसे दोषी ठहरायेगी; क्योंकि वह सुलेमान की प्रज्ञा सुनने के लिए पृथ्वी के सीमान्तों से आयी थी, और देखो-यहाँ वह है, जो सुलेमान से भी महान् है।

📚 मनन-चिंतन - 1

आज के पहले पाठ में प्रभु ईश्वर अपनी प्रजा इस्राएल के खिलाफ अपने मामले की सुनवाई के लिए पहाड़ों, पहाड़ियों और पृथ्वी को सँभालने वाले चिरस्थायी खंबो को गवाह बनाते है। प्रभु अपने लोगों के प्रति वफादार रहे हैं और बदले में उन्होंने उन से केवल "न्यायपूर्ण व्यवहार, कोमल भक्ति और ईश्वर के सामने विनयपूर्ण आचरण" की माँग रखी थी। सुसमाचार-पाठ में प्रभु येसु चाहते हैं कि हम उनकी ईश्वरीयता को पहचानें। प्रभु येसु सबसे बडे रहस्य के सबसे महान चिह्न हैं। यह चिह्न योना तथा सुलेमान से भी महान है। नबी योना के उपदेश पर, नीनीवे के लोगों ने उपवास किया, पश्चाताप किया और अपने पापमय जीवन को छोड़ दिया। प्रभु येसु जो योना के सन्देश से महान संदेश देते हैं, चाहते हैं कि उनके श्रोता अपने दुष्ट तरीकों से दूर हो जाएं और ईश्वर की ओर मुड़ कर मुक्ति पायें। बहुत से लोग सुलैमान की बुद्धि की प्रशंसा करते हुए दूर-दूर से उनसे प्रज्ञा की बातें सुनने आते थे। येसु चाहते हैं कि वे उनमें सुलैमान से भी महान रहस्य को पहचानें और उन से सुनने और सीखने के लिए उत्सुक रहें। पृथ्वी के पहाड़, पहाड़ियाँ और पृथ्वी को सँभालने वाले चिरस्थायी खंबे भी येसु की महानता के साक्षी हैं क्योंकि "उसके द्वारा सब कुछ उत्पन्न हुआ। और उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ" (योहन 1: 3)। प्रभु हमें इस रहस्य को समझने और उसे पूरे दिल से स्वीकार करने में मदद करें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In today’s first reading, God calls mountains, hills and foundations of the earth to witness his case against his people. God has been faithful to his people and in return he demanded “Only this, to do what is right, to love loyalty and to walk humbly with your God”. In the Gospel passage, Jesus wants us to recognize his divinity – a mystery greater than Jonah and than Solomon. At the preaching of Jonah, the people of Nineveh fasted, repented and turned away from their evil ways. Jesus who is greater than Jonah, offering a message greater than that of Jonah wants the listeners to turn away from their wicked ways and trace their way back to God. So many people came to listen to the wisdom of Solomon from far and wide. Jesus wants his listeners to recognize his greatness and be eager to listen to him and learn from him. The mountains, hills and foundations of the earth are witnesses to the greatness of Jesus because “All things came into being through him, and without him not one thing came into being what has come into being” (Jn 1:3). May the Lord help us to understand this mystery and accept Him with whole heart.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!