वर्ष - 2, सोलहवाँ सप्ताह, मंगलवार

पहला पाठ : मीकाह का ग्रन्थ 7:14-15,18-20

14) तू अपना डण्डा ले कर अपनी प्रजा, अपनी विरासत की भेडें चराने की कृपा कर। वे जंगल और बंजर भूमि में अकेली ही पडी हुई है। प्राचीन काल की तरह उन्हें बाशान तथा गिलआद में चरने दे।

15) जिन दिनों तू हमें मिस्र से निकाल लाया, उन्हीं दिनों की तरह हमें चमत्कार दिखा।

18) तेरे सदृश कौन ऐसा ईश्वर है, जो अपराध हरता और अपनी प्रजा का पाप अनदेखा करता हैं; जो अपना क्रोध बनाये नहीं रखता, बल्कि दया करना चाहता हैं?

19) वह फिर हम पर दया करेगा, हमारे अपराध पैरों तले रौंद देगा और हमारे सभी पाप गहरे समुद्र में फेंकेगा।

20) तू याकूब के लिए अपनी सत्यप्रतिज्ञता और इब्राहीम के लिए अपनी दयालुता प्रदर्शित करेगा, जैसी कि तूने शपथ खा कर हमारे पूर्वजों से प्रतिज्ञा की है।

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 12:46-50

46) ईसा लोगों को उपदेश दे रहे थे कि उनकी माता और भाई आये। वे घर के बाहर थे और उन से मिलना चाहते थे।

47) किसी ने ईसा से कहा, ’’देखिए, आपकी माता और आपके भाई बाहर हैं। वे आप से मिलना चाहते हैं।’’

48) ईसा ने उस से कहा, ’’कौन है मेरी माता? कौन है मेरे भाई?

49) और हाथ से अपने शिष्यों की ओर संकेत करते हुए उन्होंने कहा, ’’देखो, ये हैं मेरी माता और मेरे भाई!

50) क्योंकि जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही मेरा भाई है, मेरी बहन और मरी माता।’’

📚 मनन-चिंतन - 1

आज्ञाकारिता नम्र प्रेम या विनीत प्रेम का एक प्रमाण है। हमें उन लोगों के प्रति विनम्र प्रेम रखना चाहिए जिन्हें हमारे ऊपर अधिकार और जिम्मेदारी दी जाती है। यद्यपि पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा पावन त्रित्व में एक समान हैं, पुत्र पिता से विनीत प्रेम या विनम्र प्रेम करते हैं। इस सत्य को संत पौलुस फिलिप्पियों के पत्र 2:5-8 में स्पष्ट करते हैं, जब वे कहते हैं, "आप लोग अपने मनोभावों को ईसा मसीह के मनोभावों के अनुसार बना लें। वह वास्तव में ईश्वर थे और उन को पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करें, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया और उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने के बाद मरण तक, हाँ क्रूस पर मरण तक, आज्ञाकारी बन कर अपने को और भी दीन बना लिया।“

इस तरह प्रभु येसु ने अपना पुत्रानुरूप प्रेम प्रदर्शित किया। इसी प्रकार के प्रेम की वकालत करते हुए आज के सुसमाचार में, वे कहते हैं, " जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही मेरा भाई है, मेरी बहन और मरी माता" (मत्ती 12:50)। पिता ईश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए माता मरियम ईश्वर के पुत्र, येसु ख्रीस्त की माँ बन गई। पिता ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, “देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ, आपका कथन मुझ में पूरी हो जाये” (लूकस 1:38)। हम पिता की आज्ञा मानकर और उनकी इच्छा को पूरा करके पवित्र त्रिएक ईश्वर के साथ एक स्थायी संबंध स्थापित करें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

One of the proofs of the docile love or submissive love is obedience. Submissive love is due to those who are given authority and responsibility over us. Although the Father, the Son and the Holy Spirit are equal in the Holy Trinity, the Son practises submissive love or docile love in relation to the Father. This is clearly described by St. Paul in Phil 2:5-8 when he says, “Let the same mind be in you that was in Christ Jesus, who though he was in the form of God, did not regard equality with God as something to be exploited, but emptied himself, taking the form of a slave, being born in human likeness. And being found in human form, he humbled himself and became obedient to the point of death— even death on a cross.” This is how the Son demonstrates the filial love. This is what he advocates when, in today’s Gospel, he says, “whoever does the will of my Father in heaven is my brother and sister and mother” (Mt 12:50). Mary became the mother of Jesus, the Son of God by her obedience to the will of the Father which she expressed in the words, “Here am I, the servant of the Lord; let it be with me according to your word” (Lk 1:38). We shall establish a lasting relationship with the Holy Trinity by obeying the Father and carrying out his will.

-Fr. Francis Scaria


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