वर्ष - 2, सत्रहवाँ सप्ताह, मंगलवार

पहला पाठ : यिरमियाह का ग्रन्थ 14:17-22

17) “तुम उन्हें यह कहोगे: ’मैं दिन-रात निरन्तर आँसू बहाता रहता हूँ, क्योंकि मेरी पुत्री विपत्ति की मारी है, मेरी प्रजा घोर संकट में पड़ी हुई है।

18) यदि मैं खेतों की ओर जाता हूँ, तो तलवार से मारे हुए लोगों को देखता हूँ और यदि मैं नगर में आता हूँ, तो उन्हें भूखों मरते देखता हूँ। नबी और याजक भी देश में मारे-मारे फिरते हैं और नहीं समझते हैं कि क्या हो रहा है?।“

19) क्या तूने यूदा को त्याग दिया है? क्या तुझे सियोन से घृणा हो गयी है? तूने हमें क्यों इस प्रकार मारा है, कि अब उपचार असम्भव हो गया है। हम शान्ति की राह देखते रहे, किन्तु वह मिली नहीं। हम कल्याण की प्रतीक्षा करते रहे, किन्तु आतंक बना रहा।

20) प्रभु! हम अपनी दुष्टता और अपने पूर्वजों का अपराध स्वीकार करते हैं। हमने तेरे विरुद्ध पाप किया है।

21) अपने नाम के कारण हमें न ठुकरा; अपने महिमामय सिंहासन का अपमान न होने दे। हमारे लिए अपने विधान को न भुला और उसे भंग न कर।

22) क्या राष्ट्रों के देवताओं में कोई पानी बरसा सकता है? क्या आकाश अपने आप वर्षा कर सकता है? हमारे प्रभु-ईश्वर! तुझ में ही यह सामर्थ्य है। इसलिए हमें तेरा भरोसा है; क्योंकि तू ही यह सब करता है।

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 13:36-43

36) ईसा लोगों को विदा कर घर लौटे। उनके शिष्यों ने उनके पास आ कर कहा, ’’खेत में जंगली बीज का दृष्टान्त हमें समझा दीजिए’’।

37) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, ’’अच्छा बीज बोने बाला मानव पुत्र हैं;

38) खेत संसार है; अच्छा बीज राज्य की प्रजा है; जंगली बीज दृष्ट आत्मा की प्रजा है;

39) बोने बाला बैरी शैतान है; कटनी संसार का अंत है; लुनने वाले स्वर्गदूत हैं।

40) जिस तरह लोग जंगली बीज बटोर कर आग में जला देते हैं, वैसा ही संसार के अंत में होगा।

41) मानव पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा और वे उसके राज्य क़़ी सब बाधाओं और कुकर्मियों को बटोर कर आग के कुण्ड में झोंक देंगें।

42) वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।

43) तब धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य की तरह चमकेंगे। जिसके कान हों, वह सुन ले।

📚 मनन-चिंतन - 1

खेत के जंगली बीज के दृष्टांत के माध्यम से प्रभु येसु हमें यह बताना चाहते हैं कि हम इस दुनिया में जीवन भर अच्छे और बुरे के बीच संघर्ष में शामिल हैं। प्रभु ईश्वर अच्छे बीज बोते रहते हैं। शैतान जंगली बीज बोता रहता है। हमें, जो ज्ञान और विवेक के साथ सृष्ट किये गये हैं, लगभग हर समय अच्छे और बुरे के बीच वास्तविक चयन करना पडता है। धर्मियों को अंत में, अच्छाई की अंतिम जीत पर पुरस्कृत किया जाएगा। दृष्टान्त तब अधिक जटिल हो जाता है जब हम सीखते हैं कि जिस जंगली बीज का ज़िक्र प्रभु येसु करते हैं, वह गेहूँ की तरह ही दिखता है। दाने दिखाई देने पर ही अंतर स्पष्ट हो जाता है। सन्देश स्पष्ट है - शैतान हमें धोखा देने की कोशिश करता है। जब तक हम सतर्क और सावधान नहीं रहेंगे, हम उसके धोखे के शिकार बने रहेंगे। सूक्ति 14:12 में हम पढ़ते हैं, "कुछ लोग अपना आचरण ठीक समझते हैं, किन्तु वह अन्त में उन्हें मृत्यु की ओर ले जाता है"। संत पौलुस कहते हैं, "यह आश्चर्य की बात नहीं, क्योंकि स्वयं शैतान ज्योतिर्मय स्वर्गदूत का स्वाँग रचता है" (2 कुरिन्थियों 11:14)। 2 कुरिन्थियों 11: 3 में वे कहते हैं कि शैतान "ने अपनी धूर्तता से हेवा को धोखा दिया था”। प्रकाशना 12: 9 में शैतान को सारे संसार को भटकाने वाला कहा गया है। इस प्रकार आज का सुसमाचार ख्रीस्तीय जीवन में सावधानी और सतर्कता का आह्वान करता है।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Through the parable of the weeds of the field, Jesus wants us to know that we are constantly involved in a conflict between good and evil throughout our lives in this world. God keeps sowing the good seeds. The devil keeps sowing weeds. We who are gifted with reasoning and discernment are to make real choices between good and evil almost all the time. The righteous will be rewarded at the end of the battle, at the ultimate victory of goodness. The parable becomes more complex when we learn that the darnel is a weed that looks like wheat. The differences become apparent only when the grains appear. Hence the devil tries to deceive us. Unless we are alert and careful, we shall be cheated by him. In Prov 14:12 we read, “There is a way that seems right to a person, but its end is the way to death”. St. Paul says, “Even Satan disguises himself as an angel of light” (2 Cor 11:14). In 2Cor 11:3 he speaks about the devil who deceived Eve “by his craftiness”. Rev 12:9 refers to Satan as one “who deceives the whole world”. This calls for caution and alertness.

-Fr. Francis Scaria


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