वर्ष - 2, सत्रहवाँ सप्ताह, शुक्रवार

पहला पाठ : यिरमियाह का ग्रन्थ 26:1-9

1) योशीया के पुत्र यूदा के राजा यहोयाकीम के शासनकाल के प्रारम्भ में यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः

2) “प्रभु यह कहता है- प्रभु के मन्दिर के प्रांगण में खड़ा हो कर यूदा के सब नगरों के निवासियों को सम्बोधित करो, जो वहाँ आराधना करने आते हैं। जो कुछ मैं तुम्हें बताऊँगा, यह सब उन्हें सुनाओगे- एक शब्द भी नहीं छोड़ोगे।

3) हो सकता है कि वे सुनें और अपना कुमार्ग छोड़ कर मेरे पास लौट आयें। तब मैं भी अपना मन बदल कर उनके पापों के कारण उन पर विपत्ति भेजने का अपना विचार छोड़ दूँगा।

4) इसलिए उन से कहो: प्रभु यह कहता है -यदि तुम लोग मेरी बात नहीं सुनोगे और उस संहिता का पालन नहीं करोगे, जिसे मैंने तुम को दिया है;

5) यदि तुम मेरे सेवकों की उन नबियों की बात नहीं सुनोगे, जिन्हें मैं व्यर्थ ही तुम्हारे पास भेजता रहा,

6) तब मैं इस मन्दिर के साथ वही करूँगा, जो मैंने शिलो के साथ किया और मैं इस नगर को पृथ्वी के राष्ट्रों की दृष्टि में अभिशाप की वस्तु बना दूँगा।“

7) याजकों, नबियों और सभी लोगों ने प्रभु के मन्दिर में यिरमियाह का यह भाषण सुना।

8) जब यिरमियाह प्रभु के आदेश के अनुसार जनता को यह सब सुना चुका था, तो याजक, नबी और सब लोग यह कहते हुए उस पर टूट पड़े: “तुम को मरना ही होगा।

9) तुमने क्यों प्रभु के नाम पर भवियवाणी की है कि यह मन्दिर शिलो के सदृश और यह नगर एक निर्जन खँडहर हो जायेगा?“ सब लोगों ने प्रभु के मन्दिर में यिरमियाह को घेर लिया।

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 13:54-58

54) वे अपने नगर आये, जहाँ वे लोगों को उनके सभाग्रह में शिक्षा देते थे। वे अचम्भे में पड़ कर कहते थे, ’’इसे यह ज्ञान और यह सामर्थ्य कहाँ से मिला?

55) क्या यह बढ़ई का बेटा नहीं है? क्या मरियम इसकी माँ नहीं? क्या याकूब, यूसुफ, सिमोन और यूदस इसके भाई नहीं?

56) क्या इसके सब बहनें हमारे बीच नहीं रहतीं? तो यह सब इसे कहाँ से मिला?’’

57) पर वे ईसा में विश्वास नहीं कर सके। ईसा ने उन से कहा, ’’अपने नगर और अपने घर में नबी का आदर नहीं होता।’’

58) लोगों के अविश्वास के कारण उन्होंने वहाँ बहुत कम चमत्कार दिखाये।

📚 मनन-चिंतन - 1

प्रभु येसु ईश्वर हैं। अपने देहधारण के द्वारा वे सभी बातों में हमारे जैसे बन गये। इब्रानियों का पत्र कहता है, "हमारे प्रधानयाजक हमारी दुर्बलताओं में हम से सहानुभूति रख सकते हैं, क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उनकी परीक्षा हमारी ही तरह ली गयी है।" (4:15) अपने सांसारिक जीवन के दौरान, वे मनुष्यों के सभी दर्दनाक अनुभवों से गुजरे। हमारे समाज में लोगों को विभिन्न प्रकार के भेदभाव को झेलना पड़ता है। उनमें से एक है माता-पिता की जाति या उनके धन्धे को लेकर भेदभाव। निम्न जाति या वर्ग के लोगों और साधारण सेवा-कार्य करने वाले लोगों को इस प्रकार के भेदभाव का सामना पड़ता है। आज के सुसमाचार-भाग में, हम देखते हैं कि यद्यपि यीसु ने अपार ज्ञान की बात की थी, लेकिन उन्हें उनके परिवार की पैतृक पृष्ठभूमि और सामाजिक स्थिति के आधार पर आंका गया था। लोगों ने उन पर विश्वास नहीं किया और फलस्वरूप उन्होंने उनके लिए ज़्यादा चमत्कार नहीं किए। नबी इसायाह ने इसके बारे में भविष्यवाणी की थी: “वह मनुष्यों द्वारा निन्दित और तिरस्कृत था, शोक का मारा और अत्यन्त दुःखी था। लोग जिन्हें देख कर मुँह फेर लेते हैं, उनकी तरह ही वह तिरस्कृत और तुच्छ समझा जाता था। ”(इसायाह 53: 3)। हमारा समाज उन लोगों के प्रति निर्दयी है जो निम्न सामाजिक स्थिति के हैं। हममें से कई लोग शारीरिक, मानसिक या मनोवैज्ञानिक रूप से पीड़ित लोगों के प्रति कठोर मनोभाव अपनाते हैं। आइए हम हर जगह अच्छाई और सच्चाई को पहचानने और स्वीकार करने के लिए अपने मन और हृदय को खुले रखना सीखें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Jesus is God. By incarnation he became like us in all things. The Letter to the Hebrews says, “For we do not have a high priest who is unable to sympathize with our weaknesses, but we have one who in every respect has been tested as we are, yet without sin.” (4:15) During his earthly life, he went through all painful experiences of human beings. One of the ways in which people suffer in our society is humiliation and discrimination based on parental background. This is suffered by people belonging lower caste or class and those doing menial jobs. In today’s Gospel passage, we see that although Jesus spoke unmatchable wisdom, he was judged on the basis of parental background and social status of his family. The people did not believe in him and consequently he did not work many miracles for them. Prophet Isaiah had foretold about it : “He was despised and rejected by others; a man of suffering and acquainted with infirmity; and as one from whom others hide their faces he was despised, and we held him of no account” (Is 53:3). Our society is unkind towards those who are of lower social status. Many of us are also harsh towards those with physical, mental or psychological disability. Let us learn to be open to recognize and accept goodness and truth anywhere.

-Fr. Francis Scaria


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